पवित्र बाइबल

Here’s a concise and impactful Hindi title within 100 characters: **विविधता में एकता: रोमियों 14 की प्रेरक कहानी** (Translation: *Unity in Diversity: The Inspiring Story of Romans 14*) – **Character count**: 52 (well under the limit) – **Removed symbols/formatting** as requested. – **Highlights** the core theme of unity amid differing beliefs, aligning with the story’s message. Let me know if you’d like any adjustments!

**एकता में विश्वास: रोमियों 14 की कहानी**

एक छोटे से गाँव में, दो मसीही परिवार रहते थे—एलिय्याह और स्तेफनस। दोनों प्रभु यीशु से गहरा प्रेम रखते थे, परंतु उनकी आस्था और व्यवहार में कुछ अंतर थे। एलिय्याह और उसका परिवार यहूदी परंपराओं का पालन करते थे। वे शनिवार को विश्राम दिन मानते, केवल शुद्ध भोजन ही ग्रहण करते, और त्योहारों को पुराने नियम के अनुसार मनाते। वहीं स्तेफनस और उसके घराने ने नई वाचा की स्वतंत्रता को अपनाया था। वे सभी दिनों को समान मानते, हर प्रकार का भोजन करते, और अनुग्रह के उत्सव में जीवन बिताते।

एक दिन, गाँव में एक बड़ा भोज आयोजित किया गया। सभी विश्वासी एकत्र हुए, परंतु जब भोजन परोसा गया, तो तनाव बढ़ गया। एलिय्याह ने देखा कि मेज़ पर सुअर का मांस रखा हुआ है, जो उसकी आस्था के अनुसार अशुद्ध था। उसने नाराज़गी से कहा, “क्या हम परमेश्वर की व्यवस्था को भूल गए हैं? यह भोजन हमारे विश्वास के विरुद्ध है!”

स्तेफनस ने शांति से उत्तर दिया, “भाई, प्रभु ने सभी वस्तुओं को शुद्ध किया है। हम अनुग्रह के अधीन हैं, व्यवस्था के नहीं।”

एलिय्याह का हृदय दुखी हुआ। उसने सोचा, “क्या ये लोग परमेश्वर का आदर नहीं करते?” वहीं स्तेफनस के मन में भी शंका उठी, “क्या यह व्यक्ति विश्वास की स्वतंत्रता को नहीं समझता?”

गाँव के बुजुर्ग और बुद्धिमान प्रेरित मत्तित्याह ने यह विवाद सुना। वह दोनों परिवारों के पास गया और प्रेम से बोला, “हे प्रियों, सुनो! प्रभु यीशु ने हमें एक दूसरे को ग्रहण करना सिखाया है। कोई व्यक्ति एक दिन को दूसरे से बढ़कर मानता है, तो कोई सभी दिनों को समान। कोई सब्ज़ियाँ ही खाता है, तो कोई सभी प्रकार का भोजन। परंतु महत्वपूर्ण यह है कि हम सब प्रभु के लिए जीते हैं।”

उसने रोमियों 14 के वचनों को स्मरण दिलाया—_”जो खाता है, वह प्रभु के लिए खाता है, क्योंकि वह परमेश्वर का धन्यवाद करता है; और जो नहीं खाता, वह प्रभु के लिए नहीं खाता, और वह भी परमेश्वर का धन्यवाद करता है… हम में से कोई भी अपने लिए नहीं जीता, और न अपने लिए मरता है। यदि हम जीते हैं, तो प्रभु के लिए जीते हैं; और यदि मरते हैं, तो प्रभु के लिए मरते हैं।”_

एलिय्याह और स्तेफनस ने इन वचनों पर मनन किया। एलिय्याह ने स्वीकार किया, “मैं अपने भाई को न्याय नहीं कर सकता, क्योंकि प्रभु ही उसका न्याय करेगा।” स्तेफनस ने भी कहा, “मुझे अपने भाई की दुर्बलता को समझना चाहिए और उसके विश्वास का आदर करना चाहिए।”

उस दिन के बाद, दोनों परिवारों ने एक-दूसरे के विश्वास का सम्मान करना सीखा। भोज के समय, अब सभी के लिए अलग-अलग व्यंजन परोसे जाते, ताकि किसी की आस्था ठेस न पहुँचे। वे एक-दूसरे के साथ प्रेम और समझदारी से रहने लगे।

अंत में, मत्तित्याह ने सभा को याद दिलाया, _”इसलिए हम एक दूसरे पर दोष न लगाएँ, बल्कि यह निश्चय करें कि किसी के लिए ठोकर या ठेस का कारण न बने।”_

और इस प्रकार, उस छोटे से गाँव में, रोमियों 14 का सिद्धांत जीवंत हो उठा—विश्वास की विविधता में भी एकता, प्रेम और परमेश्वर की महिमा।

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