मीका 7: पाप के अंधकार में परमेश्वर की आशा की कहानी (Note: The title is within the 100-character limit, symbols and quotes are removed as per instructions.)
**मीका 7: विश्वास और आशा की कहानी**
एक समय की बात है, जब इस्राएल का समाज पाप और अराजकता में डूबा हुआ था। न्याय खो चुका था, और धर्मी लोगों के लिए जीवन कठिन हो गया था। भविष्यद्वक्ता मीका ने अपनी आँखों से देखा कि कैसे लोगों ने परमेश्वर के मार्ग को छोड़ दिया था। वह दुखी होकर परमेश्वर के सामने रोता हुआ प्रार्थना करने लगा।
### **पाप का बोझ और मीका का विलाप**
मीका ने देखा कि धरती पर अच्छे लोग विरले ही रह गए थे। हर कोई अपने स्वार्थ में लिप्त था। राजा और न्यायाधीश रिश्वतखोर हो चुके थे, और गरीबों का शोषण हो रहा था। यहाँ तक कि घर के भीतर भी विश्वासघात बढ़ गया था। पुत्र अपने पिता का, पुत्री अपनी माता का, और दामाद अपनी सास का शत्रु बन गया था। मीका ने विलाप करते हुए कहा, *”मेरे लिए तो काटने वाला अंजीरों का पेड़ ढूँढ़ना, और मेरे लिए चखने योग्य दाखलता ढूँढ़ना ही कठिन हो गया है। धरती से भक्त लोग लुप्त हो गए हैं, और मनुष्यों में कोई सीधा नहीं रहा।”* (मीका 7:1-2)
### **परमेश्वर की प्रतीक्षा में आशा**
लेकिन मीका निराश नहीं हुआ। उसने जान लिया कि मनुष्यों का न्याय करने का समय आएगा। वह परमेश्वर की ओर देखता हुआ बोला, *”परन्तु मैं यहोवा की ओर दृष्टि लगाए रहूँगा, मैं उस परमेश्वर की प्रतीक्षा करूँगा जो मेरा उद्धार करेगा। मेरा परमेश्वर मेरी सुनेंगा!”* (मीका 7:7)
मीका ने लोगों को समझाया कि भले ही अंधकार घना हो, परन्तु यहोवा उनका प्रकाश है। वह उनके पापों को क्षमा करेगा और उन्हें फिर से अपनी करुणा से ग्रहण करेगा। *”वह मेरे पक्ष में निकलेगा और मेरा न्याय करेगा। वह मुझे प्रकाश में ले आएगा, और मैं उसके धर्म को देखूँगा!”*
### **परमेश्वर की विजय और अनुग्रह**
मीका ने भविष्यवाणी की कि एक दिन यहोवा अपनी महिमा प्रकट करेगा। शत्रु लज्जित होंगे, और जो लोग परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं, वे उसकी महानता देखेंगे। *”कौन तेरे समान परमेश्वर है, जो अधर्म को क्षमा करता है और अपने अवशिष्ट लोगों के पापों को मिटा देता है?”* (मीका 7:18)
भविष्यद्वक्ता ने घोषणा की कि परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा को नहीं भूलता। वह अब्राहम और याकूब के साथ किए गए अपने वचन को पूरा करेगा। उसकी करुणा अटल है, और वह अपने लोगों को फिर से उठाएगा।
### **सबक और शिक्षा**
मीका की यह कहानी हमें सिखाती है कि भले ही संसार में पाप और अंधकार बढ़ जाए, परन्तु परमेश्वर पर भरोसा रखने वालों के लिए आशा कभी नहीं मरती। वह हमारे पापों को क्षमा करता है और हमें नया जीवन देता है। जैसे मीका ने कहा, *”यहोवा ही मेरा प्रकाश और मेरा उद्धार है, मैं किससे डरूँ?”*
इस कहानी का अंत प्रार्थना के साथ होता है: *”हे यहोवा, हम तेरी करुणा और सच्चाई के आगे नमन करते हैं। हमें अपने मार्ग पर चलने की शक्ति दे, ताकि हम तेरे प्रकाश में जीवन जी सकें। आमीन।”*