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होशे 6: प्रेम और पश्चाताप की मार्मिक कथा

**होशे 6: प्रेम और पश्चाताप की कहानी**

उस समय, इस्राएल के लोगों का हृदय भटक चुका था। वे यहोवा की उपस्थिति से दूर हो गए थे और मूर्तियों की पूजा में लीन हो चुके थे। उनके पापों ने उन्हें परमेश्वर से अलग कर दिया था, परन्तु यहोवा का प्रेम अटल था। वह चाहता था कि उसके लोग पश्चाताप करें और उसकी ओर लौट आएं।

### **भोर का प्रकाश: पश्चाताप की पुकार**

एक सुबह, जब सूर्य की पहली किरणें गिलाद की पहाड़ियों पर चमक रही थीं, एक समूह लोग यरूशलेम की ओर जा रहे थे। उनके चेहरे पर उदासी थी, क्योंकि उनका देश संकट में था। अश्शूर के आक्रमणकारियों ने उनकी भूमि को लूट लिया था, और अब वे समझ चुके थे कि उनकी मूर्खता ने उन्हें इस दुःख में डाल दिया था।

उनमें से एक बूढ़ा व्यक्ति, जिसका नाम एलीआजर था, धीरे से बोला, *”हमने यहोवा को छोड़ दिया, और अब हमारी स्थिति यह हो गई है। परन्तु क्या हम फिर से उसकी ओर मुड़ सकते हैं?”*

एक युवक, जिसका नाम मीका था, ने होशे नबी के वचनों को याद किया और कहा, *”हाँ! यहोवा ने कहा है—’आओ, हम यहोवा की ओर लौट चलें; क्योंकि उसने फाड़ डाला है, परन्तु वही हमें चंगा भी करेगा; उसने मारा है, परन्तु वही हमारी पट्टी भी बाँधेगा।'”* (होशे 6:1)

लोगों ने सिर हिलाया। उन्हें विश्वास था कि यहोवा उन्हें क्षमा करेगा, भले ही उन्होंने उसे ठुकरा दिया हो। वे मंदिर की ओर चल पड़े, अपने पापों का अंगीकार करने और अनुग्रह माँगने।

### **तीसरे दिन का चमत्कार: नया जीवन**

जैसे-जैसे दिन बीतते गए, लोगों ने प्रार्थना और उपवास किया। होशे ने उन्हें समझाया, *”यहोवा हमारे लिए भोर के प्रकाश की तरह है। जैसे भोर निश्चित रूप से आता है, वैसे ही वह हमारे पास आएगा। वह हम पर वर्षा की तरह बरसेगा, जो पृथ्वी को नया जीवन देती है।”* (होशे 6:3)

और फिर, तीसरे दिन, एक अद्भुत घटना घटी। जब लोग प्रार्थना में एकत्रित थे, तो आकाश से एक मधुर वर्षा होने लगी। सूखी भूमि नम हो गई, और लोगों के हृदयों में आशा जाग उठी। वे समझ गए कि यहोवा ने उनकी प्रार्थना सुन ली थी।

### **सच्ची भक्ति बनाम बाहरी धार्मिकता**

परन्तु होशे ने उन्हें चेतावनी दी, *”हे इस्राएल, तेरा प्रेम बादल के समान है, जो क्षण भर में गायब हो जाता है। तुम मेरे पास आते हो, परन्तु तुम्हारा हृदय वास्तव में मेरे साथ नहीं होता। मैं तुम्हारे बलिदानों से नहीं, बल्कि तुम्हारी वफादारी से प्रसन्न होता हूँ।”* (होशे 6:4-6)

लोगों ने महसूस किया कि उनकी पूजा केवल दिखावा थी। उन्होंने सच्चे मन से पश्चाताप किया और यहोवा की इच्छा को जानने का प्रयास किया।

### **अंतिम आशीष: पुनर्मिलन की आशा**

जब उन्होंने अपने मन को बदला, तो यहोवा ने उन पर दया की। उसने उनके शत्रुओं को पीछे हटने के लिए विवश किया और देश में शांति लौट आई। होशे ने घोषणा की, *”यहोवा तुम्हें फिर से बुलाएगा। जैसे भोर का उजियाला अंधकार को दूर करता है, वैसे ही वह तुम्हारे पापों को मिटा देगा।”*

और इस्राएल के लोगों ने सीखा कि यहोवा का प्रेम अटल है। भले ही वे उसे भूल जाएँ, वह हमेशा उन्हें वापस बुलाने के लिए तैयार रहता है।

**समाप्त।**

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