**भजन संहिता 17 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**
**शीर्षक: “धर्मी की प्रार्थना और परमेश्वर का उत्तर”**
प्राचीन समय में यहूदा के पहाड़ी प्रदेश में एक धर्मी व्यक्ति रहता था, जिसका नाम एलीआव था। वह परमेश्वर की सेवा में पूरे मन से लगा रहता था और उसके हृदय में धार्मिकता की ज्योति सदैव प्रज्वलित रहती थी। किन्तु उसके आसपास के लोग अधर्मी थे, जो झूठ और हिंसा से भरे हुए थे। वे एलीआव की सच्चाई से ईर्ष्या करते थे और उसे नीचा दिखाने के लिए सदैव षड्यंत्र रचते रहते थे।
एक दिन, जब एलीआव अपने खेत में काम कर रहा था, तो उसके पड़ोसियों ने झूठा आरोप लगाकर उसकी भूमि पर कब्जा करने की योजना बनाई। उन्होंने झूठी गवाही देकर न्यायाधीश के समक्ष उसके विरुद्ध मुकदमा दायर कर दिया। एलीआव ने देखा कि उसके शत्रु उसे घेर रहे हैं, मानो एक भूखा सिंह अपने शिकार को नोचने के लिए तैयार हो। उसका हृदय विषाद से भर गया, किन्तु उसने अपना विश्वास परमेश्वर पर बनाए रखा।
उस रात, जब अंधकार ने संसार को ढक लिया, एलीआव अपने कमरे में अकेला बैठा हुआ था। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, और उसने अपने हृदय की पीड़ा को परमेश्वर के सामने रखा। उसने प्रार्थना की, **”हे यहोवा, मेरी दलील सुन! मेरी विनती पर ध्यान दे, जो झूठे होंठों से नहीं निकली। मेरा न्याय तेरे सामने हो; तेरी आँखें सच्चाई को देखें। तूने मेरे हृदय की जाँच की है, रात को मुझे परखा है, किन्तु मुझमें कोई अधर्म नहीं पाया। मैंने अपने मुँह से पाप नहीं किया।”**
एलीआव की प्रार्थना धरती से स्वर्ग तक पहुँची, और परमेश्वर ने उसकी पुकार सुनी। उसी रात, परमेश्वर ने न्यायाधीश को स्वप्न में दर्शन दिया और उसे एलीआव के विषय में सच्चाई प्रकट की। न्यायाधीश जाग उठा और उसके मन में भय समा गया, क्योंकि उसे ज्ञात हुआ कि वह एक निर्दोष के विरुद्ध झूठे साक्ष्य पर विश्वास करने वाला था।
अगले दिन, जब न्यायालय में सभा हुई, तो न्यायाधीश ने सत्य को उजागर किया और एलीआव के शत्रुओं को दंडित किया गया। परमेश्वर ने एलीआव की रक्षा की, जैसे पलक की छाया में पक्षी को सुरक्षा मिलती है। एलीआव ने आनन्दित होकर परमेश्वर का धन्यवाद दिया और कहा, **”मैं तेरे मुखारविंद का दर्शन करूँगा, तेरे उद्धार से तृप्त होकर जागूँगा!”**
इस प्रकार, भजन संहिता 17 का सन्देश स्पष्ट हुआ कि परमेश्वर धर्मी की पुकार सुनता है और उसकी रक्षा करता है। जो लोग सच्चाई के मार्ग पर चलते हैं, अंत में उन्हें विजय मिलती है, क्योंकि परमेश्वर उनका न्यायी और शरण है।
**समाप्त।**