**1 इतिहास 29 का विस्तृत कथा-वर्णन**
**दाऊद का परमेश्वर के लिए उदार हृदय**
राजा दाऊद अपने महल के विशाल कक्ष में खड़े थे, जहाँ से उन्हें यरूशलेम का विहंगम दृश्य दिखाई दे रहा था। उनकी आँखों में एक गहरी भावना थी—वह जानते थे कि उनका समय समाप्ति के निकट है, और उन्हें परमेश्वर के भवन, मंदिर के निर्माण के लिए अपने पुत्र सुलैमान को तैयार करना है। उस दिन, उन्होंने इस्राएल के सभी प्रमुखों, अधिकारियों, और सेनापतियों को एकत्रित किया। भीड़ के सामने खड़े होकर उन्होंने गंभीर स्वर में कहा:
“मेरे पुत्र सुलैमान, जिसे परमेश्वर ने चुना है, वह अभी युवा और अनुभवहीन है। परन्तु यह कार्य महान है, क्योंकि यह मनुष्यों के लिए नहीं, बल्कि स्वयं परमेश्वर यहोवा के लिए भवन है।”
दाऊद ने अपने हाथों में सोने-चाँदी के आभूषण, कीमती पत्थर, और अन्य बहुमूल्य वस्तुएँ उठाईं। उनकी आँखें चमक उठीं जब उन्होंने कहा, “मैंने अपने परमेश्वर के भवन के लिए अपने निजी धन से सोना, चाँदी, पीतल, लोहा, लकड़ी, और रत्न दिए हैं। अब मैं तुमसे पूछता हूँ—कौन है जो आज परमेश्वर के सामने स्वेच्छा से अपना दान देगा?”
**लोगों की उदारता**
यह सुनकर सभा में उपस्थित लोगों के हृदय प्रभु के प्रेम से भर गए। पहले तो सरदारों और कुलीनों ने अपने धन अर्पित किए, फिर सामान्य जन भी आगे बढ़े। कुछ ने सोने के सिक्के दिए, तो कुछ ने चाँदी के बर्तन। किसी ने कीमती रत्न भेंट किए, तो किसी ने बढ़िया लकड़ी। धन, आभूषण, और सामग्री का ढेर लगता गया। वह दृश्य अद्भुत था—हर व्यक्ति का मन प्रसन्नता से झूम उठा, क्योंकि वे जानते थे कि यह सब परमेश्वर की महिमा के लिए है।
दाऊद ने आनंदित होकर परमेश्वर की स्तुति की: “हे यहोवा, हमारे पितर अब्राहम, इसहाक, और इस्राएल के परमेश्वर, तू युगानुयुग धन्य है! यह सब कुछ तेरा ही है, और हमने तेरे हाथ से जो कुछ पाया है, वही तुझे अर्पित किया है। हम तेरे सामने परदेशी और मुसाफिर हैं, जैसे हमारे पुरखे थे। हमारा जीवन छाया के समय है, और सब कुछ तेरे हाथ में है।”
**सुलैमान का राज्याभिषेक**
इसके बाद, दाऊद ने सुलैमान को अपने सामने खड़ा किया और सारे इस्राएल के सामने उसे अगला राजा घोषित किया। लोगों ने जयजयकार करते हुए सुलैमान का समर्थन किया। दाऊद ने युवा सुलैमान को आशीर्वाद दिया: “परमेश्वर तेरे साथ रहे, और तू उसके मार्गों पर चलता रहे। उसने तुझे चुना है—अब तू उसके भवन को पूरा कर।”
फिर दाऊद ने सभी को आज्ञा दी कि वे परमेश्वर के सामने झुककर उसकी आराधना करें। सबने मिलकर बलिदान चढ़ाए और उस दिन बड़ी खुशी मनाई। उन्होंने सुलैमान को दूसरी बार राजा के रूप में अभिषिक्त किया, और वह यहोवा की इच्छा के अनुसार सिंहासन पर बैठा।
**दाऊद की मृत्यु और विरासत**
कुछ समय बाद, दाऊद ने शांति से अपने पुरखाओं के पास विश्राम लिया। उसने इस्राएल पर चालीस वर्षों तक शासन किया था—सात वर्ष हेब्रोन में और तैंतीस यरूशलेम में। सुलैमान उसका उत्तराधिकारी बना, और परमेश्वर ने उसके राज्य को दृढ़ किया।
इस प्रकार, दाऊद का जीवन समाप्त हुआ, परन्तु उसकी विरासत जीवित रही। उसने परमेश्वर के भवन के लिए जो उत्साह और भक्ति दिखाई, वह इतिहास में अमर हो गई। इस्राएल के लोगों ने देखा कि जब मनुष्य का हृदय परमेश्वर के प्रति समर्पित होता है, तो वह उसे आशीषों से भर देता है।
**अंतिम प्रार्थना**
“हे यहोवा, तू महान है, और तेरी सामर्थ्य अद्वितीय है। हम तेरा धन्यवाद करते हैं और तेरी महिमा का वर्णन करते हैं, क्योंकि सब कुछ तेरा ही है। हम तेरे सामने नम्र होकर तेरी सेवा करते हैं। आमीन।”