**यिर्मयाह 6: अंत के दिनों की चेतावनी**
उस समय यहूदा के देश में अंधकार छाया हुआ था। यरूशलेम की गलियों में पाप का साम्राज्य फैल चुका था, और लोगों के हृदय परमेश्वर की आवाज़ से बहरे हो गए थे। यिर्मयाह नबी के मन में परमेश्वर का वचन आग की तरह धधक रहा था, और वह जानता था कि उसे यहूदा के लोगों को एक कठोर चेतावनी देनी होगी।
### **1. संकट की घंटी**
एक दिन, जब यिर्मयाह यरूशलेम की ऊँची दीवारों के पास खड़ा था, तो परमेश्वर की आवाज़ उसके कानों में गूँजी: *”बेन्यामीन के लोगों में तुरन्त तुरही फूंककर यरूशलेम में संकट का शब्द सुनाओ! उत्तर दिशा से एक विपत्ति आ रही है, एक भयंकर उजाड़!”*
यिर्मयाह ने देखा—मानो उसकी आँखों के सामने एक भयानक दृश्य उभर आया। उत्तर से बाबुल की सेनाएँ काले बादलों की तरह चली आ रही थीं। उनके घोड़ों की टापों की आवाज़ से धरती काँप रही थी, और उनकी तलवारें सूरज की रोशनी में चमक रही थीं। परमेश्वर ने कहा, *”मैं बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर को इस नगर पर चढ़ा लाऊँगा। वह इसके चारों ओर घेरा डालेगा और इसे नष्ट कर देगा!”*
### **2. यरूशलेम का पाप**
यिर्मयाह ने नगर में घूमकर देखा—लोगों के हाथ अन्याय से भरे हुए थे। व्यापारी झूठे तराजू से लोगों को ठग रहे थे, याजक धन के लिए परमेश्वर के नियमों को तोड़ रहे थे, और न्यायी रिश्वत खाकर गरीबों का हक मार रहे थे। मंदिरों में मूर्तियाँ स्थापित की गई थीं, और लोग बाल देवता के सामने झुक रहे थे।
यिर्मयाह ने चिल्लाकर कहा, *”हे यरूशलेम के लोगों! तुम कब तक अंधे बने रहोगे? परमेश्वर ने तुम्हें चेतावनी दी है, पर तुम नहीं सुनते! तुम कहते हो, ‘शांति है, शांति!’ जबकि तुम्हारे हृदय में कोई शांति नहीं!”*
### **3. परमेश्वर का न्याय**
परमेश्वर ने यिर्मयाह से कहा, *”इसलिए मैं इस नगर पर न्याय लाऊँगा। जैसे दाख की बेल को छानकर उसका रस निकाला जाता है, वैसे ही मैं इन लोगों को दण्ड दूँगा। बूढ़े, जवान, स्त्री और बच्चे—सभी विपत्ति में पड़ेंगे। उनके घरों को शत्रु लूट लेंगे, और उनकी सुन्दर वस्तुएँ परायों के हाथ में चली जाएँगी।”*
यिर्मयाह का हृदय दुख से भर गया। वह जानता था कि यहूदा के लोगों ने परमेश्वर की अवहेलना की है, और अब उनका समय पूरा हो चुका है। फिर भी, उसने एक बार फिर चिल्लाकर कहा, *”मार्गों पर देखो! पूछो कि पुराने मार्ग क्या हैं, और उसी पर चलो! परन्तु उन्होंने कहा, ‘हम नहीं चलेंगे!'”*
### **4. अंतिम अवसर**
परमेश्वर ने कहा, *”मैंने उनके बीच पहरूए खड़े किए, उन्हें चेतावनी दी, पर उन्होंने कान नहीं लगाए। इसलिए अब उनकी बलि चढ़ाई जाएगी, और उनके प्राण उन पर ही लद जाएँगे!”*
यिर्मयाह ने आकाश की ओर देखा—सूरज ढल चुका था, और अंधेरा घिर आया था। वह जानता था कि बाबुल की सेनाएँ निकट हैं। उसने आँसू बहाते हुए कहा, *”हे प्रभु, कौन तेरे न्याय को सह सकता है? परन्तु तेरी इच्छा पूरी हो!”*
और इस प्रकार, यिर्मयाह की भविष्यवाणी पूरी हुई। बाबुल की सेना ने यरूशलेम को घेर लिया, और परमेश्वर का न्याय उस नगर पर आ गया।
**सीख:** यह कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर की आज्ञा को नज़रअंदाज़ करने का परिणाम विनाश होता है। परन्तु यदि हम उसकी ओर फिरें और पश्चाताप करें, तो वह हमें क्षमा करने के लिए तैयार है। *”यदि तुम मन फेरोगे, तो तुम बच जाओगे!”* (यिर्मयाह 6:16 का सार)।