**भेड़ और अच्छा चरवाहा**
एक दिन, यीशु यरूशलेम के पास एक सुन्दर हरे-भरे मैदान में खड़े थे। उनके चारों ओर भीड़ इकट्ठी हो गई थी, जिसमें फरीसी, धर्मशास्त्री और साधारण लोग शामिल थे। सूरज की किरणें धीरे-धीरे पहाड़ियों पर बिखर रही थीं, और हवा में भेड़ों की मिमियाहट सुनाई दे रही थी। यीशु ने गहरी सांस ली और लोगों से कहा,
“सुनो, मैं तुम्हें एक सच्ची बात बताता हूँ। जो कोई भेड़शाला में दरवाज़े से प्रवेश नहीं करता, बल्कि दीवार फाँदकर अंदर आता है, वह चोर और डाकू है। लेकिन जो दरवाज़े से अंदर आता है, वही भेड़ों का असली चरवाहा है। दरवान उसे पहचानता है और दरवाज़ा खोल देता है। भेड़ें भी उसकी आवाज़ पहचानती हैं। वह अपनी भेड़ों को नाम से बुलाता है और उन्हें बाहर ले जाता है।”
लोग चुपचाप सुन रहे थे, कुछ की आँखों में प्रश्न थे, तो कुछ गहराई से सोच में डूबे हुए थे। यीशु ने आगे कहा,
“जब वह अपनी सभी भेड़ों को बाहर निकाल लेता है, तो उनके आगे-आगे चलता है, और भेड़ें उसके पीछे-पीछे चलती हैं क्योंकि वे उसकी आवाज़ जानती हैं। वे किसी और की आवाज़ पर नहीं जाएँगी, बल्कि उससे भागेंगी, क्योंकि वे अनजान की आवाज़ नहीं पहचानतीं।”
तभी एक फरीसी ने पूछा, “प्रभु, यह दृष्टान्त किसके बारे में है? क्या आप स्वयं को चरवाहा कह रहे हैं?”
यीशु ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “हाँ, मैं ही भेड़ों का अच्छा चरवाहा हूँ। अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिए अपना जीवन दे देता है। मजदूर, जो चरवाहा नहीं है और जिसकी भेड़ें अपनी नहीं होतीं, वह भेड़िये को आते देखकर भाग जाता है, और भेड़िया भेड़ों को फाड़कर बिखेर देता है। मजदूर भाग जाता है क्योंकि वह भेड़ों की परवाह नहीं करता।”
उनकी आवाज़ में गम्भीरता थी, और लोगों के हृदय उनके शब्दों से छू रहे थे। यीशु ने आगे कहा,
“मैं अच्छा चरवाहा हूँ। मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं, जैसे पिता मुझे जानता है और मैं पिता को जानता हूँ। मैं भेड़ों के लिए अपना जीवन देता हूँ। मेरी और भी भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं हैं। मुझे उन्हें भी लाना है, और वे मेरी आवाज़ सुनेंगी। तब सब एक ही झुंड के हो जाएँगे और एक ही चरवाहा होगा।”
कुछ लोगों के चेहरे पर प्रकाश आ गया, जैसे उन्होंने गहरी सच्चाई समझ ली हो। यीशु ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा,
“पिता मुझसे प्रेम करता है, क्योंकि मैं अपना जीवन देता हूँ, ताकि इसे फिर से ले सकूँ। कोई इसे मुझसे छीनता नहीं, बल्कि मैं इसे स्वयं देता हूँ। मुझे इसे देने का अधिकार है और इसे फिर से लेने का भी अधिकार है। यह आज्ञा मुझे मेरे पिता से मिली है।”
भीड़ में से कुछ लोगों ने कहा, “यह तो दुष्टात्मा से ग्रसित है, पागल हो गया है!” लेकिन दूसरों ने कहा, “दुष्टात्मा ऐसी बातें नहीं कहती। क्या कोई दुष्टात्मा अंधों की आँखें खोल सकती है?”
यीशु ने उन सबकी बातें सुनीं और मन में जानते हुए कि वही सच्चा चरवाहा है, जो अपनी भेड़ों को अनन्त जीवन देगा, वह चुपचाप वहाँ से चले गए। उस दिन, कई लोगों ने उनके शब्दों पर विश्वास किया और समझा कि वही मसीह हैं, जिसकी प्रतीक्षा संसार कर रहा था।
**समाप्त**