पवित्र बाइबल

पौलुस की यरूशलेम यात्रा और बंदीकरण

**प्रेरितों के काम 21: पौलुस का यरूशलेम की यात्रा और बंदीकरण**

सूरज की किरणें भूमध्य सागर पर चमक रही थीं जब पौलुस और उसके साथी तीरस के बंदरगाह पर उतरे। उन्होंने वहाँ जहाज़ छोड़ा और पाँच दिनों तक सफर करके फिलिप्पी के पास स्थित कैसरिया पहुँचे। वहाँ उन्होंने सुसमाचार प्रचारक फिलिप्पुस के घर ठहरने का निश्चय किया, जो सात व्यक्तियों में से एक था और उसकी चार कुंवारी बेटियाँ थीं जो भविष्यवाणी करती थीं।

कुछ दिन बीत गए। तभी यहूदिया से अगबुस नामक एक भविष्यवक्ता वहाँ आया। वह पौलुस के पास गया, उसने अपनी कमर से पौलुस की कमरबंद बाँधी और अपने हाथ-पैर बाँधकर कहा, “पवित्र आत्मा यह कहता है कि जिस व्यक्ति की यह कमरबंद है, उसे यरूशलेम में यहूदी इसी तरह बाँधकर अन्यजातियों के हाथों सौंप देंगे।”

यह सुनकर सभी विचलित हो गए। लूकस, तीमुथियुस और अन्य साथियों ने पौलुस से विनती की, “प्रभु, यरूशलेम न जाइए!” किंतु पौलुस ने दृढ़ता से उत्तर दिया, “तुम क्यों रोकर मेरा मन दुखाते हो? मैं प्रभु यीशु के नाम के लिए न केवल बंधने को, बल्कि मरने को भी तैयार हूँ।”

जब उन्होंने देखा कि पौलुस का निश्चय अटल है, तो वे चुप हो गए और बोले, “प्रभु की इच्छा पूरी हो।”

कुछ दिनों बाद वे यरूशलेम के लिए चल पड़े। कैसरिया के कुछ शिष्य भी उनके साथ हो लिए और उन्हें मनासे नामक एक प्राचीन शिष्य के यहाँ ले गए, जिसका घर यरूशलेम के निकट था।

यरूशलेम पहुँचकर पौलुस और उसके साथियों का भाईचारे ने बड़े प्रेम से स्वागत किया। अगले दिन पौलुस याकूब और सभी प्राचीनों से मिला। उसने उन्हें विस्तार से बताया कि परमेश्वर ने अन्यजातियों के बीच उसके द्वारा क्या-क्या किया था। यह सुनकर वे परमेश्वर की महिमा करने लगे।

तब उन्होंने पौलुस से कहा, “भाई, तुम देख रहे हो कि हजारों यहूदियों ने विश्वास किया है और वे सभी व्यवस्था के पक्के पालन करने वाले हैं। उन्हें यह बताया गया है कि तुम यहूदियों को उनकी परंपराओं से विमुख करते हो और उनसे कहते हो कि वे अपने बच्चों का खतना न कराएँ या रीति-रिवाज़ न मानें। अब वे तुम्हारे बारे में सुनेंगे कि तुम आए हो। इसलिए हमारी सलाह मानो: हमारे पास चार व्यक्ति हैं जिन्होंने मन्नत मानी है। तुम उनके साथ जाकर अपने को शुद्ध करवाओ और उनके लिए खर्च करो, ताकि वे अपने सिर मुंडवा सकें। तब सब जानेंगे कि तुम स्वयं भी व्यवस्था का पालन करते हो।”

पौलुस ने उनकी बात मान ली। अगले दिन वह उन पुरुषों के साथ मंदिर गया और शुद्ध होने की प्रक्रिया शुरू की। उसने सबको बताया कि सात दिन बाद उनकी मन्नत पूरी होगी।

किंतु जब सात दिन पूरे होने को थे, तभी आसिया के कुछ यहूदियों ने पौलुस को मंदिर में देखा। वे चिल्लाने लगे, “इस्राएलियो, सहायता करो! यह वही व्यक्ति है जो सब जगह लोगों को हमारे विरुद्ध भड़काता है और व्यवस्था तथा इस पवित्र स्थान के विरुद्ध शिक्षा देता है!”

उन्होंने पौलुस को पकड़ लिया और भीड़ को उकसाया। पूरा शहर हलचल कर उठा। लोग दौड़ते हुए आए और पौलुस को घसीटकर मंदिर से बाहर फेंक दिया। मंदिर के दरवाज़े तुरंत बंद कर दिए गए।

वे पौलुस को मारने ही वाले थे कि तभी रोमी सेना के सहस्रपति को खबर मिली कि पूरा यरूशलेम उपद्रव कर रहा है। वह तुरंत सैनिकों और सूबेदारों को लेकर दौड़ा। भीड़ ने सैनिकों को देखा तो पौलुस को पीटना बंद कर दिया।

सहस्रपति ने पौलुस को पकड़कर उसे दो जंजीरों से बाँध लिया और पूछा, “यह कौन है और इसने क्या किया है?” भीड़ में कुछ लोग एक बात चिल्लाते, तो कुछ दूसरी। अव्यवस्था इतनी बढ़ गई कि सहस्रपति ने पौलुस को छावनी में ले जाने का आदेश दिया।

जब वे सीढ़ियों पर पहुँचे, तो भीड़ इतनी उग्र हो गई कि सैनिकों को पौलुस को उठाकर ले जाना पड़ा। लोग पीछे से चिल्लाते रहे, “उसे मार डालो!”

छावनी में प्रवेश करते ही पौलुस ने सहस्रपति से यूनानी भाषा में कहा, “क्या मैं तुमसे कुछ कह सकता हूँ?”

सहस्रपति चौंका, “तुम यूनानी जानते हो? क्या तुम वही मिस्री नहीं हो जिसने कुछ दिन पहले विद्रोह किया था?”

पौलुस ने कहा, “मैं तरसुस का नागरिक हूँ, जो कि प्रसिद्ध नगर है। मुझे इस भीड़ को कुछ कहने दो।”

सहस्रपति ने अनुमति दे दी। पौलुस ने सीढ़ियों पर खड़े होकर भीड़ को हाथ से शांत किया और इब्रानी भाषा में उन्हें अपने विश्वास की गवाही देनी शुरू की…

इस प्रकार, पौलुस का बंदीकरण हुआ, किंतु यह परमेश्वर की योजना का एक भाग था, जिससे सुसमाचार और भी दूर-दूर तक पहुँचे।

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