वफादार सेवक और प्रभु की प्रशंसा की कहानी (Note: The title is within 100 characters, symbols and quotes are removed as per the request.)
**1 कुरिन्थियों 4 पर आधारित बाइबल कहानी**
**शीर्षक: “वफादार सेवक और प्रभु की प्रशंसा”**
एक समय की बात है, जब प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थुस की कलीसिया को एक पत्र लिखा। उस समय कलीसिया में कुछ लोग अपनी बुद्धि और ज्ञान पर घमंड करने लगे थे। वे एक-दूसरे के बीच तुलना करते और अपने नेताओं को लेकर विवाद करते थे। पौलुस ने उन्हें समझाया कि परमेश्वर के राज्य में सच्ची सेवकाई का क्या अर्थ है।
### **1. सेवकों की भूमिका**
पौलुस ने लिखा, “हमें मसीह के सेवकों के रूप में देखो—परमेश्वर के भेदों के विश्वासयोग्य प्रबंधक।” उसने समझाया कि एक सेवक का मुख्य गुण विश्वासयोग्यता है। जैसे एक घर का प्रबंधक मालिक के धन का ईमानदारी से प्रबंधन करता है, वैसे ही मसीही सेवकों को परमेश्वर के वचन का सही ढंग से प्रचार करना चाहिए।
पौलुस ने कहा, “मेरे लिए तो यह छोटी सी बात है कि तुम या कोई मनुष्य मेरे विषय में क्या सोचता है। मैं तो अपने आप को भी नहीं तौलता।” उसने स्पष्ट किया कि मनुष्यों का न्याय निरर्थक है, क्योंकि अंत में प्रभु ही हर कार्य का मूल्यांकन करेगा।
### **2. घमंड के विरुद्ध चेतावनी**
कुरिन्थुस के कुछ लोग अपने आप को बुद्धिमान समझते थे और दूसरों को तुच्छ जानते थे। पौलुस ने उन्हें चेतावनी दी, “तुम्हारे बीच जो यह कहता है कि ‘मैं पौलुस का है,’ या ‘मैं अपुल्लोस का है,’ क्या तुम मनुष्यों के नहीं हो?”
उसने उनसे पूछा, “तुम्हारे पास जो कुछ भी है, वह तुमने किससे पाया? यदि तुमने उसे पाया ही है, तो फिर घमंड क्यों करते हो, मानो तुमने उसे अपने बल से प्राप्त किया हो?” पौलुस ने उन्हें याद दिलाया कि सब कुछ परमेश्वर की कृपा से मिला है, इसलिए घमंड करने का कोई स्थान नहीं है।
### **3. प्रेरितों का कष्ट और विनम्रता**
फिर पौलुस ने अपने जीवन के कष्टों का वर्णन किया। उसने लिखा, “हम मसीह के कारण मूर्ख समझे जाते हैं, पर तुम मसीह में बुद्धिमान हो। हम निर्बल हैं, पर तुम बलवान हो। तुम आदर पाते हो, पर हमें तिरस्कार।”
उसने विस्तार से बताया कि कैसे प्रेरित भूखे रहते, प्यासे रहते, नंगे रहते, और मार खाते थे। वे दुनिया की नज़र में तुच्छ थे, परन्तु परमेश्वर की दृष्टि में वे मसीह के विश्वासयोग्य सेवक थे। पौलुस ने कहा, “हम तो आज तक मानो मृत्यु की दण्डाज्ञा पाए हुए हैं, और न केवल मनुष्यों के लिए, पर स्वर्गदूतों और संसार के लिए तमाशा बने हुए हैं।”
### **4. एक पिता की चेतावनी**
अंत में, पौलुस ने उन्हें एक पिता के रूप में समझाया। उसने कहा, “मैं तुम्हें लज्जित करने के लिए ये बातें नहीं लिखता, पर तुम्हें चेतावनी देता हूँ, जैसे मेरे प्रिय बच्चों को देता हूँ।”
उसने उन्हें याद दिलाया कि वह उनका आध्यात्मिक पिता है, जिसने मसीह में उन्हें जन्म दिया है। उसने कहा, “मैं तुमसे विनती करता हूँ कि मेरी रीति के अनुसार चलो।” पौलुस ने उन्हें नम्रता, प्रेम और सेवकाई का जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित किया।
### **निष्कर्ष: प्रभु की प्रशंसा ही सच्ची प्रशंसा है**
पौलुस ने अपने पत्र का अंत इन शब्दों में किया: “इसलिए, हे मेरे भाइयो, मेरी नकल करो और उनकी ओर ध्यान दो जो हमारे रीति-रिवाज के अनुसार चलते हैं। क्योंकि हमारा राज्य शब्दों में नहीं, पर सामर्थ्य में है।”
उसने स्पष्ट किया कि सच्ची सेवकाई दिखावे या बड़े-बड़े शब्दों में नहीं, बल्कि पवित्र आत्मा की सामर्थ्य में होती है। अंत में, उसने उन्हें याद दिलाया कि प्रभु के आगमन पर ही सब कुछ प्रकट होगा, और तब हर एक को उसके कार्यों के अनुसार प्रतिफल मिलेगा।
इस प्रकार, पौलुस ने कुरिन्थुस की कलीसिया को सिखाया कि सच्ची महानता घमंड में नहीं, बल्कि विनम्र सेवकाई में है। उसने उन्हें प्रभु की प्रशंसा को सर्वोच्च मानने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि अंततः वही सच्चा न्यायी है।
**~ समाप्त ~**