पवित्र बाइबल

राजाओं का विद्रोह और परमेश्वर की विजय

**भजन संहिता 2 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**

**शीर्षक: “राजाओं का विद्रोह और परमेश्वर की विजय”**

प्राचीन काल में, जब धरती पर अनेक राज्य और साम्राज्य फैले हुए थे, तब मनुष्यों के हृदय में अहंकार और विद्रोह की भावना जाग उठी। दूर-दूर तक फैले हुए राजाओं और प्रधानों ने मिलकर एक गुप्त सभा की। उनके मन में एक ही विचार था—सर्वशक्तिमान परमेश्वर और उसके अभिषिक्त राजा के विरुद्ध षड्यंत्र रचना।

### **राजाओं का षड्यंत्र**

एक अंधकारमय रात में, एक विशाल महल के गुप्त कक्ष में दुनिया के ताकतवर शासक इकट्ठे हुए। उनके चेहरों पर गर्व और अवज्ञा की छाया थी। बाबुल का राजा, अपने मोटे सोने के आभूषणों से लदा हुआ, गर्जना करते हुए बोला, “क्यों हमें परमेश्वर के नियमों का पालन करना चाहिए? हम अपने ही शक्ति से शासन कर सकते हैं!”

मिस्र का फिरौन, जिसकी आँखों में धोखे की चमक थी, हँसते हुए बोला, “हाँ! हमें उसके बंधनों को तोड़ देना चाहिए और उसकी जंजीरों को अपने से दूर फेंक देना चाहिए!”

एक के बाद एक, सभी राजाओं ने परमेश्वर और उसके मसीहा के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। उन्होंने अपनी सेनाएँ तैयार कीं, अपने हथियार सँभाले, और घमंड से भरकर कहा, “हम उनके नाम को मिटा देंगे!”

### **स्वर्ग की प्रतिक्रिया**

लेकिन जब वे पृथ्वी पर अपनी योजनाएँ बना रहे थे, तब स्वर्ग के सिंहासन पर बैठे परमेश्वर ने उनकी हर बात सुन ली। वह जो अनंत काल से राजाओं का राजा है, उसने उनकी मूर्खता पर हँसते हुए कहा, “ये लोग क्या समझते हैं? क्या वे सच में मानते हैं कि वे मेरे विरुद्ध खड़े हो सकते हैं?”

तब परमेश्वर ने अपने पवित्र स्वर में उनके लिए एक चेतावनी भरी प्रतिक्रिया दी:

**”मैं अपने राजा को सिय्योन के पवित्र पर्वत पर अभिषिक्त करूँगा!”**

और ऐसा ही हुआ। एक दिव्य प्रकाश स्वर्ग से उतरा, और परमेश्वर के चुने हुए राजा—मसीह—को सारी शक्ति और प्रताप के साथ स्थापित किया गया। उसने उन विद्रोही राजाओं की ओर देखा और घोषणा की:

**”तुम मेरी प्रजा हो, मैंने आज ही तुम्हें जन्म दिया है। यदि तुम मेरी आज्ञा मानोगे, तो धरती के सारे देश तुम्हारे वश में होंगे। लेकिन यदि तुम विद्रोह करोगे, तो मेरा क्रोध तुम्हें नष्ट कर देगा!”**

### **राजाओं का पतन**

जब विद्रोही राजाओं ने देखा कि परमेश्वर का प्रकोप उन पर आ रहा है, तो वे डर से काँप उठे। उनकी सेनाएँ तितर-बितर हो गईं, उनके हथियार बेकार हो गए। जिस घमंड से वे परमेश्वर के विरुद्ध खड़े हुए थे, वही उनके पतन का कारण बना।

परमेश्वर ने उन पर अपना दंड भेजा—एक भयंकर आँधी, जिसने उनके महलों को ध्वस्त कर दिया, और एक अग्नि, जिसने उनके गर्व को जला डाला। वे राजा, जो कल तक अपनी शक्ति पर इतरा रहे थे, आज धूल में मुँह के बल गिरे हुए थे।

### **बुद्धिमानों की चेतावनी**

इस घटना के बाद, धरती के सभी बुद्धिमानों और न्यायाधीशों को एक सबक मिला। एक वृद्ध ऋषि, जिसने यह सब देखा था, ने लोगों को समझाया:

**”अब हे राजाओं, समझदार बनो! हे पृथ्वी के शासकों, चेत जाओ! परमेश्वर की सेवा करो, उसके सामने काँपते हुए उसकी आराधना करो। उसके पुत्र को चूमो, नहीं तो उसका क्रोध तुम्हें नष्ट कर देगा। जो उसकी शरण लेता है, वह धन्य है!”**

और इस तरह, भजन संहिता 2 का संदेश सदियों तक गूँजता रहा—एक चेतावनी कि कोई भी परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा नहीं हो सकता, और जो उसके राजा—मसीह—के आगे समर्पण करता है, वही सच्ची विजय पाता है।

**~ समाप्त ~**

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