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भजन 66 की गाथा परमेश्वर की महिमा और उद्धार

**भजन संहिता 66 की कहानी: परमेश्वर की महिमा और उद्धार**

एक समय की बात है, जब इस्राएल के लोग संकट और आनंद दोनों के दिनों में परमेश्वर की स्तुति करते थे। भजन संहिता 66 उनके हृदय से निकला एक मधुर गीत था, जो परमेश्वर की महानता और उसके अद्भुत कार्यों का वर्णन करता था।

### **1. सारी पृथ्वी परमेश्वर की स्तुति करे**
भजनकार ने आह्वान किया, “हे सारी पृथ्वी के लोगों, परमेश्वर के लिए जयजयकार करो!” उसने समुद्र की गर्जना और नदियों की धाराओं की तरह प्रभु की महिमा गाई। उसने याद किया कि कैसे परमेश्वर ने लाल सागर को चीरकर इस्राएल को मिस्र की दासता से छुड़ाया था। वह दृश्य अद्भुत था—एक ओर जल के विशाल भित्तियाँ खड़ी थीं, और दूसरी ओर इस्राएली सूखी भूमि पर चलते हुए स्वतंत्रता की ओर बढ़ रहे थे। परमेश्वर की शक्ति ने उनके शत्रुओं को डुबो दिया, और उसकी करुणा ने अपने लोगों को सुरक्षित पहुँचाया।

### **2. परीक्षाओं में परमेश्वर की सामर्थ्य**
भजनकार ने कहा, “परमेश्वर ने हमें परखा, जैसे चाँदी को आग में तपाया जाता है।” इस्राएल के इतिहास में कई बार ऐसे समय आए जब उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ा—जंगल में भूख, शत्रुओं के हमले, और अपने ही पापों के कारण दण्ड। परन्तु परमेश्वर ने उन्हें नष्ट नहीं किया, बल्कि शुद्ध किया। जैसे एक सुनार आग में कीमती धातु को शुद्ध करता है, वैसे ही प्रभु ने अपने लोगों को परखा, ताकि वे और अधिक चमकदार बन सकें।

### **3. व्यक्तिगत अनुभव: भजनकार की कहानी**
भजनकार ने अपने जीवन की गवाही दी, “मैंने मुसीबत में परमेश्वर को पुकारा, और उसने मेरी सुन ली।” उसने बताया कि कैसे उसके जीवन में अंधकार के दिन आए, जब उसका हृदय भय से भर गया। शायद वह बीमार था, या उसके शत्रु उसे घेर लेते थे, परन्तु जब उसने प्रार्थना की, तो परमेश्वर ने उसे उबारा। उसने कहा, “जो परमेश्वर की ओर मुँह नहीं फेरते, उनके हृदय में पाप छिपा रहता है, परन्तु मेरी प्रार्थना सुनकर, उसने मुझ पर करुणा की।”

### **4. बलिदान और धन्यवाद**
अंत में, भजनकार ने परमेश्वर के सामने बलिदान चढ़ाया और वादा किया कि वह उसकी स्तुति करता रहेगा। उसने कहा, “हे सब जो परमेश्वर से डरते हो, आओ और सुनो कि उसने मेरे लिए क्या किया!” उसने मेम्नों और बछड़ों के बलिदान चढ़ाए, परन्तु सबसे बढ़कर, उसने अपने हृदय की आराधना अर्पित की। उसने याद दिलाया कि परमेश्वर केव� बाहरी रीति-रिवाज नहीं चाहता, बल्कि वह हमारी वफादारी और आत्मा की गहराई से निकली प्रार्थना को सुनता है।

### **निष्कर्ष: सच्ची आराधना**
भजन 66 हमें सिखाता है कि परमेश्वर की स्तुति केवल अच्छे समय में ही नहीं, बल्कि संकट के क्षणों में भी करनी चाहिए। वह हमारे आँसू देखता है, हमारी पुकार सुनता है, और हमें शुद्ध करके हमारे विश्वास को और मजबूत बनाता है। जब हम उसके अद्भुत कार्यों को याद करते हैं और उसके सामने धन्यवाद के बलिदान चढ़ाते हैं, तो हमारा जीवन उसकी महिमा से भर जाता है।

इस्राएल के लोगों ने इस भजन को गाकर परमेश्वर की महानता का प्रचार किया, और आज भी यह हमें याद दिलाता है—”आओ, हम परमेश्वर के अद्भुत कामों का बखान करें!”

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