पवित्र बाइबल

विश्वास से उद्धार: योनातान और पौलुस की प्रेरणादायक कहानी

**रोमियों 10 पर आधारित बाइबल कहानी: विश्वास और उद्धार का संदेश**

एक समय की बात है, यरूशलेम की सँकरी गलियों में एक यहूदी रब्बी योनातान अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता था। वह परमेश्वर के व्यवस्था को बहुत गंभीरता से मानता था और हर दिन तोराह का अध्ययन करता था। उसका मानना था कि व्यवस्था का पालन करके ही कोई परमेश्वर के सामने धर्मी ठहर सकता है। वह अपने समुदाय में सम्मानित था, लेकिन उसके हृदय में एक अशांति थी—क्या सच में व्यवस्था के कार्यों से उसका उद्धार हो सकता है?

एक दिन, योनातान ने सुना कि दमिश्क के रास्ते में एक यूनानी मसीही प्रचारक पौलुस आ रहा है, जो मसीह यीशु के बारे में उपदेश देता है। पौलुस के बारे में अनेक कहानियाँ फैली हुई थीं—कुछ लोग उसे झूठा नबी कहते थे, तो कुछ उसके संदेश से जीवन पा चुके थे। योनातान ने सोचा, “मैं उससे मिलकर देखूँगा कि यह नया मार्ग क्या है।”

जब पौलुस यरूशलेम पहुँचा, तो वह सिनेगॉग में लोगों को समझा रहा था: **”भाइयो, मूसा की व्यवस्था हमें धर्मी नहीं बना सकती। यदि धार्मिकता व्यवस्था के पालन से आती, तो मसीह को क्रूस पर मरने की क्या आवश्यकता थी? परमेश्वर ने अपने पुत्र को भेजा ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।”**

योनातान ने पूछा, **”लेकिन हमारे पूर्वजों ने तो हमेशा व्यवस्था का पालन किया है! क्या अब हमें उसे छोड़ देना चाहिए?”**

पौलुस ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, **”भाई, व्यवस्था को छोड़ना नहीं है, बल्कि यह समझना है कि मसीह ही व्यवस्था का अंत है। वही हमारी धार्मिकता है। जैसे लिखा है—’यदि तू अपने मुँह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने हृदय से विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू उद्धार पाएगा।’ क्योंकि विश्वास से मनुष्य धर्मी ठहरता है, न कि व्यवस्था के कर्मों से।”**

योनातान का हृदय भारी हो गया। उसने सोचा, **”क्या सच में मैं अपने प्रयासों से नहीं, बल्कि केवल यीशु पर भरोसा रखकर बच सकता हूँ?”** उस रात, वह अपने कमरे में अकेले प्रार्थना करने लगा। उसने परमेश्वर से पूछा, **”हे स्वर्गिक पिता, क्या यह सच है कि तूने मसीह को भेजा ताकि मेरे कर्म नहीं, बल्कि उसका बलिदान ही मेरे पापों का प्रायश्चित हो?”**

तभी उसे यशायाह 53 की वह भविष्यवाणी याद आई जिसमें लिखा था कि परमेश्वर का सेवक हमारे पापों का बोझ उठाएगा। योनातान की आँखों से आँसू बह निकले। उसने महसूस किया कि उसके सारे धार्मिक कर्म उसे नहीं बचा सकते थे—केवल मसीह का प्रेम ही उसके लिए पर्याप्त था।

अगले दिन, वह पौलुस के पास गया और बोला, **”मैंने यीशु को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार कर लिया है। अब मैं जानता हूँ कि उसके अनुग्रह के बिना मैं कुछ भी नहीं हूँ।”**

पौलुस ने उसे गले लगाया और कहा, **”अब तू बच गया है, मेरे भाई! और अब तेरा कर्तव्य है कि तू दूसरों को भी यह सुसमाचार सुनाए। क्योंकि जैसे लिखा है—’सुन्दर वे पैर हैं जो शांति का सुसमाचार सुनाने वालों के हैं!'”**

योनातान ने अपना जीवन बदल दिया। वह अब केवल व्यवस्था का शिक्षक नहीं, बल्कि मसीह का प्रचारक बन गया। उसने अपने परिवार और मित्रों को बताया कि उद्धार पाने के लिए न तो पहाड़ पर चढ़ना है, न ही गहरे सागर में उतरना है—बस यीशु को हृदय से स्वीकार करना है।

और इस तरह, रोमियों 10 का सत्य यरूशलेम से लेकर दूर-दूर तक फैल गया—**”क्योंकि जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।”**

LEAVE A RESPONSE

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *