पवित्र बाइबल

पौलुस की विनम्रता और आत्मिक युद्ध की कहानी

**2 कुरिन्थियों 10 पर आधारित बाइबल कहानी**

**शीर्षक: “पौलुस की विनम्रता और आत्मिक युद्ध”**

एक समय की बात है, जब प्रेरित पौलुस कुरिन्थुस की कलीसिया को एक गंभीर पत्र लिख रहे थे। उनका हृदय भारी था, क्योंकि कुछ झूठे शिक्षक उनके विरुद्ध बुरी बातें फैला रहे थे। वे कहते थे कि पौलुस देखने में दुर्बल हैं और उनके शब्दों में कोई ताकत नहीं है। उन्होंने पौलुस के प्रेरित होने पर भी सवाल उठाए। परन्तु पौलुस जानते थे कि उनकी लड़ाई मनुष्यों के विरुद्ध नहीं, बल्कि आत्मिक शक्तियों के विरुद्ध है।

पौलुस ने अपनी लेखनी उठाई और प्रभु के आत्मा के निर्देशानुसार लिखना शुरू किया:

**”हे कुरिन्थुस के प्रिय भाइयों और बहनों, मैं पौलुस, मसीह का दास, तुम्हें प्रभु की विनम्रता और कोमलता के साथ समझाता हूँ। कुछ लोग कहते हैं कि मैं शारीरिक रूप से दुर्बल हूँ और मेरे शब्द निरर्थक हैं, परन्तु जब मैं तुम्हारे बीच आऊँगा, तो मैं उनके दावों का सामना करूँगा।”**

उन्होंने आगे लिखा, **”हम मांस और रक्त से नहीं लड़ते, बल्कि हमारे हथियार आत्मिक हैं, जो किलों को गिरा देते हैं। हम मन के हर ऊँचे विचार को जो परमेश्वर के ज्ञान के विरुद्ध उठता है, कैद करते हैं और हर बात को मसीह की आज्ञाकारिता में लाते हैं।”**

पौलुस के शब्दों में एक दिव्य सामर्थ्य थी। वे जानते थे कि उनकी ताकत उनकी अपनी नहीं, बल्कि परमेश्वर की थी। उन्होंने कुरिन्थुस के विश्वासियों को याद दिलाया कि वे उनके विश्वास के लिए लड़ रहे हैं, न कि अपनी प्रतिष्ठा के लिए।

**”कुछ लोग अपने आप को मसीह का सेवक मानते हैं, परन्तु मैं भी तो हूँ!”** पौलुस ने लिखा। **”यदि मैं अपने बारे में और अधिक बोलूँ, तो यह व्यर्थ नहीं होगा, क्योंकि मैंने तुम्हें मसीह का सुसमाचार सुनाया है। मैं दूसरों के परिश्रम पर गर्व नहीं करता, बल्कि मेरी आशा यह है कि जैसे-जैसे तुम्हारा विश्वास बढ़ेगा, मेरा प्रभाव भी तुम्हारे बीच और बढ़ेगा।”**

पौलुस ने समझाया कि सच्ची सेवकाई प्रभु की प्रशंसा चाहती है, न कि मनुष्यों की। जो लोग स्वयं की तारीफ करते हैं, वे अस्थिर होते हैं, परन्तु जिसे प्रभु स्वीकार करता है, वही सच्चा सेवक है।

अंत में, पौलुस ने उन्हें चेतावनी दी: **”जो लोग दिखावे की सेवकाई करते हैं, वे धोखे में हैं। परमेश्वर हृदय को जाँचता है। मैं तुमसे प्रेम करता हूँ, इसलिए तुम्हें सच्चाई बताता हूँ। जब मैं आऊँगा, तो मैं केवल वचन से नहीं, बल्कि परमेश्वर की सामर्थ्य से कार्य करूँगा।”**

इस पत्र के माध्यम से, पौलुस ने कुरिन्थुस की कलीसिया को सिखाया कि सच्चा नेतृत्व विनम्रता और आत्मिक सामर्थ्य में होता है। उनकी लड़ाई मनुष्यों के विरुद्ध नहीं, बल्कि अंधकार की शक्तियों के विरुद्ध थी। और उनका विश्वास था कि परमेश्वर की सामर्थ्य से ही वे विजयी होंगे।

**अंत।**

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