**यहोशू अध्याय 16: एप्रैम के गोत्र का भाग**
यरदन नदी के पार चढ़कर इस्राएल के पुत्रों ने कनान देश में प्रवेश किया था, और अब समय आ गया था कि वे उस भूमि को अपने गोत्रों के अनुसार बाँट लें। यहोवा के सेवक यहोशू ने परमेश्वर की आज्ञा से सभी गोत्रों के लिए भूमि का विभाजन किया। यूसुफ के वंशजों, अर्थात् मनश्शे और एप्रैम के गोत्रों को भी उनका भाग मिला।
एप्रैम के गोत्र को दिया गया भूमि-भाग यरदन के पश्चिम में स्थित था। उनकी सीमा दक्षिण में मक्केस से शुरू होकर उत्तर की ओर बढ़ती हुई तानात-शीलोह तक जाती थी। यह भूमि हरी-भरी थी, जहाँ जैतून के पेड़ों की छाया में शांति बसती थी और अंगूरों के बागों से मीठी सुगंध हवा में तैरती रहती थी। परमेश्वर ने अपने वचन के अनुसार उन्हें एक उपजाऊ भूमि दी थी, जो दूध और मधु की धारा बहाती थी।
एप्रैम के पुत्रों ने अपनी सीमा के अंतर्गत आने वाले नगरों को ले लिया, जिनमें बेतेल और उसके आसपास के गाँव शामिल थे। ये नगर पहाड़ियों पर बसे हुए थे, जहाँ से चारों ओर का मनोरम दृश्य दिखाई देता था। बेतेल का नगर तो विशेष रूप से महत्वपूर्ण था, क्योंकि वहाँ पर पहले याकूब ने स्वप्न में सीढ़ी देखी थी, जिस पर स्वर्गदूत ऊपर-नीचे आ-जा रहे थे। यह स्थान इस्राएलियों के लिए पवित्र था, और अब यह एप्रैम के अधिकार में आ गया था।
लेकिन परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार, कनानियों को पूरी तरह से देश से निकालना था। एप्रैम के पुत्रों ने अधिकांश भूमि पर अधिकार कर लिया, परन्तु कुछ स्थानों पर कनानी रह गए। वे गेजर नगर और उसके आसपास के क्षेत्रों में बने रहे। इस्राएलियों ने उन्हें दास बना लिया, लेकिन उनका सफाया नहीं किया। यह परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध था, क्योंकि उसने स्पष्ट आदेश दिया था कि वे सभी मूर्तिपूजक कनानियों को देश से बाहर कर दें।
एप्रैम के लोगों ने अपने भाग में बसकर खेती-बाड़ी शुरू कर दी। उनके खेत गेहूँ, जौ और अंगूरों से लहलहा उठे। उन्होंने अपने बच्चों को यहोवा की व्यवस्था सिखाई और उसकी आराधना करते रहे। लेकिन जब-जब उन्होंने कनानियों के साथ समझौता किया, तब-तब उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ा। परमेश्वर ने चेतावनी दी थी कि यदि वे उनके बीच रहेंगे, तो वे उनके देवताओं के पीछे भटक जाएँगे।
इस प्रकार, एप्रैम के गोत्र को उनकी विरासत मिली, लेकिन उनकी अधूरी आज्ञाकारिता के कारण भविष्य में चुनौतियाँ आईं। फिर भी, यहोवा उनके साथ बना रहा, और जब भी उन्होंने उसकी ओर रुख किया, उसने उन्हें बचाया। एप्रैम की भूमि इस्राएल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय बन गई, जहाँ परमेश्वर की विश्वासयोग्यता और मनुष्य की अधूरी आज्ञाकारिता दोनों के उदाहरण मिलते हैं।