# **1 राजाओं 8: सुलैमान का मन्दिर का उद्घाटन**
## **भव्य उत्सव की तैयारी**
यरूशलेम नगर में एक अद्भुत उल्लास छाया हुआ था। राजा सुलैमान ने परमेश्वर के नाम के लिए जो भव्य मन्दिर बनवाया था, उसका उद्घाटन करने का समय आ गया था। पूरे इस्राएल के पुरनियों, गोत्रों के प्रधानों और हजारों लोगों ने इस पवित्र अवसर के लिए यरूशलेम की यात्रा की। यह कोई साधारण दिन नहीं था—यह वह दिन था जब परमेश्वर की महिमा इस्राएल के बीच एक नए तरीके से प्रकट होने वाली थी।
सुलैमान ने सात वर्षों तक अथक परिश्रम किया था ताकि वह मन्दिर बन सके जिसके बारे में उसके पिता दाऊद ने सपना देखा था। अब समय आ गया था कि परमेश्वर की वाचा का सन्दूक, जिसमें दस आज्ञाओं की पट्टियाँ रखी हुई थीं, इस पवित्र स्थान में स्थापित किया जाए।
## **वाचा का सन्दूक मन्दिर में लाया जाता है**
सुलैमान ने याजकों और लेवियों को आदेश दिया कि वे सन्दूक को सिय्योन के दाऊद के नगर से नए मन्दिर में ले आएँ। याजकों ने सन्दूक को उठाया, साथ ही पवित्र तम्बू और सभी पवित्र वस्तुओं को भी स्थानांतरित किया गया। राजा और सारा इस्राएल उनके सामने चल रहा था। भेड़ों और बैलों की इतनी बड़ी संख्या में बलि दी गई कि उनकी गिनती करना असंभव था।
जब याजक सन्दूक को महापवित्र स्थान में ले गए और उसे करूबों के पंखों के नीचे रखा, तो सभी ने देखा कि सन्दूक के साथ केवल दो पट्टियाँ थीं—जिन पर परमेश्वर की दस आज्ञाएँ लिखी हुई थीं। मूसा के समय से ही वे वहीं थीं, जब परमेश्वर ने होरेब पर्वत पर इस्राएल के साथ वाचा बाँधी थी।
## **परमेश्वर की महिमा मन्दिर में उतरती है**
याजकों के पवित्र स्थान से बाहर आते ही, एक अद्भुत घटना घटी। मन्दिर में परमेश्वर की महिमा एक सघन बादल के रूप में भर गई। यह बादल इतना प्रबल था कि याजक उसके सामने खड़े नहीं रह सके और सेवा करने में असमर्थ हो गए। यह वही महिमा थी जो मूसा के तम्बू में उतरी थी, और अब यह सुलैमान के मन्दिर में प्रकट हुई थी।
सुलैमान ने इस दर्शन को देखकर कहा, **”हे यहोवा, तू ने कहा था कि तू घने बादल में वास करेगा। आज मैंने तेरे वचन को सच होते देखा है!”**
## **सुलैमान का आशीर्वाद और प्रार्थना**
फिर सुलैमान ने सारे इस्राएल की सभा के सामने खड़े होकर उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा, **”धन्य है इस्राएल का परमेश्वर यहोवा, जिसने अपने हाथ से अपने वचन को पूरा किया है! उसने मेरे पिता दाऊद से वादा किया था कि उसका पुत्र ही उसके नाम का मन्दिर बनाएगा, और आज वह वचन साकार हुआ है।”**
इसके बाद, सुलैमान ने वेदी के सामने हाथ फैलाकर परमेश्वर से प्रार्थना की। उसकी प्रार्थना गहन और हृदयस्पर्शी थी:
**”हे स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा, तू अपनी आँखें इस मन्दिर पर खुली रख, जहाँ तेरा नाम सदैव अंकित रहे। जब कोई इस स्थान की ओर मुड़कर प्रार्थना करे, तो तू उसे सुन। यदि तेरे लोग पाप करें और शत्रु उन पर विजय पा लें, पर वे मन फिराकर तेरे नाम का पुकार करें, तो तू उनकी सुन और उन्हें क्षमा कर। यदि आकाश बन्द हो और वर्षा न हो, और लोग इस स्थान पर प्रार्थना करें, तो तू उनकी सुन और उन्हें वर्षा दे। यदि कोई विपत्ति, महामारी या शत्रु का आक्रमण हो, और तेरा कोई भक्त तेरी ओर हाथ उठाए, तो तू उसकी विनती सुनकर उसे बचा।”**
सुलैमान की प्रार्थना इस्राएल के इतिहास, उनके पापों और परमेश्वर की दया पर केन्द्रित थी। उसने परमेश्वर से विनती की कि वह हमेशा अपने लोगों की सुनें, चाहे वे कितनी भी दूर क्यों न हों।
## **बलिदान और उत्सव**
प्रार्थना के बाद, सुलैमान और सारे इस्राएल ने परमेश्वर के सामने बलिदान चढ़ाए। बाईस हजार बैल और एक लाख बीस हजार भेड़-बकरियों की बलि दी गई। यह इतना बड़ा उत्सव था कि याजकों को अतिरिक्त सहायकों की आवश्यकता पड़ी।
सुलैमान ने पूरे इस्राएल के साथ सात दिनों तक उत्सव मनाया। आठवें दिन, उसने लोगों को विदा किया। वे आनन्दित और आशीषित होकर अपने-अपने घरों को लौट गए, क्योंकि उन्होंने देख लिया था कि परमेश्वर ने अपने दास दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान पर कितनी बड़ी कृपा की थी।
## **परमेश्वर का सुलैमान को दर्शन**
जब सुलैमान यरूशलेम में लौटा, तो परमेश्वर ने उसे दर्शन दिया और कहा, **”मैंने तेरी प्रार्थना सुनी है। यदि तू और इस्राएल मेरे मार्गों पर चलें, तो मैं तेरे सिंहासन को सदैव स्थिर रखूँगा, जैसा मैंने तेरे पिता दाऊद से वादा किया था। पर यदि तुम लोग मुझे छोड़कर दूसरे देवताओं की उपासना करोगे, तो मैं इस्राएल को इस भूमि से उखाड़ दूँगा और यह मन्दिर उजाड़ हो जाएगा।”**
सुलैमान ने परमेश्वर के वचनों को गंभीरता से लिया और कुछ समय तक वह ईमानदारी से परमेश्वर की सेवा करता रहा। इस्राएल के लिए यह एक स्वर्णिम युग था—जब परमेश्वर का नाम महिमान्वित हुआ और उसकी आराधना एक भव्य मन्दिर में की जाने लगी।
इस प्रकार, सुलैमान के मन्दिर का उद्घाटन इस्राएल के इतिहास में एक अविस्मरणीय घटना बन गई, जिसने परमेश्वर की विश्वासयोग्यता और उसकी महिमा को प्रकट किया।