अंधकार में आशा की पुकार: भजन 77 की प्रेरणादायक कहानी (Note: The original title अंधकार में आशा की पुकार is already strong at 25 characters. The expanded version above is 70 characters while preserving the core meaning. Both fit within the 100-character limit.) Alternatively, for even more brevity (25 chars): अंधकार में आशा की पुकार (Removed all symbols/quotes as requested.)
**भजन संहिता 77 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**
**शीर्षक: “अंधकार में आशा की पुकार”**
प्राचीन काल में एक व्यक्ति था जिसका नाम एलियाथ था। वह यहूदा के एक छोटे से गाँव में रहता था और परमेश्वर का भक्त था। उसका हृदय सदैव प्रभु की स्तुति से भरा रहता, परंतु एक समय ऐसा आया जब उसकी जीवनयात्रा अंधकारमय हो गई। उसके चारों ओर संकटों के बादल छा गए, और वह अपने ही दुःखों में खोकर रह गया।
एक रात, जब चारों ओर सन्नाटा पसरा था, एलियाथ अपने कमरे में अकेला बैठा हुआ था। उसका मन बेचैन था, और उसकी आत्मा व्याकुल हो रही थी। उसने प्रार्थना करने का प्रयास किया, परंतु ऐसा लगा जैसे उसकी पुकार खाली हवा में खो रही हो। उसकी आँखों से आँसू बह निकले, और वह चिल्ला उठा, *”हे परमेश्वर! क्या तूने मुझे सदा के लिए त्याग दिया है? क्या तेरी करुणा समाप्त हो गई है?”*
भजन संहिता 77 के शब्द उसके हृदय में गूँजने लगे: *”मैं विपत्ति के दिन प्रभु की खोज करता हूँ… मेरी आत्मा सांत्वना पाने से इन्कार करती है।”* (भजन 77:2) एलियाथ ने अपने जीवन के उन पलों को याद किया जब परमेश्वर उसके निकट था, परंतु अब वह उसकी उपस्थिति को महसूस नहीं कर पा रहा था।
तभी उसने अपने पास रखी पवित्र शास्त्र की पुस्तक खोली और भजन 77 को पढ़ना शुरू किया। वह आश्चर्यचकित हो गया जब उसने देखा कि उसकी स्थिति ठीक वैसी ही थी जैसी भजनकार ने वर्णित की थी। भजनकार ने भी अपने दुःख में परमेश्वर से पूछा था: *”क्या परमेश्वर भूल गया है कृपा करना? क्या उसने क्रोध में अपनी दया बंद कर दी है?”* (भजन 77:9)
किंतु फिर भजनकार ने अपने विचार बदले और परमेश्वर के पूर्व कार्यों को याद किया। एलियाथ ने भी ऐसा ही किया। उसने सोचा कि कैसे परमेश्वर ने अतीत में उसकी सहायता की थी—कैसे उसने उसे बीमारी से बचाया, कैसे उसके परिवार को अकाल के समय में रोटी दी, और कैसे उसके शत्रुओं के सामने उसकी रक्षा की।
तभी एलियाथ को एक दिव्य प्रकाश दिखाई दिया, जैसे स्वर्ग से कोई उत्तर मिल रहा हो। उसने महसूस किया कि परमेश्वर उसके साथ है, भले ही वह उसे महसूस नहीं कर पा रहा था। भजन 77:19 का वचन उसके मन में उभरा: *”तेरा मार्ग समुद्र में, तेरा पथ बड़े जल में था, और तेरे पदचिन्ह ज्ञात नहीं हुए।”*
एलियाथ समझ गया कि परमेश्वर का मार्ग अक्सर रहस्यमय होता है, परंतु वह हमेशा अपने लोगों के साथ चलता है। उसकी आँखों से नए आँसू बह निकले, परंतु इस बार वे आनंद के थे। उसने गहरी साँस ली और प्रार्थना की, *”हे प्रभु, मैं तेरे पूर्व के कार्यों को याद करता हूँ। तू सदा विश्वासयोग्य है, भले ही मैं तेरे मार्ग को न समझूँ।”*
अगले दिन, एलियाथ ने अपने गाँव के लोगों को इकट्ठा किया और उन्हें भजन 77 सुनाया। उसने कहा, *”भाइयो, यदि तुम अंधकार में हो, तो परमेश्वर के पूर्व कार्यों को याद करो। वह हमें कभी नहीं छोड़ता। उसकी दया अनंत है!”*
उस दिन से, एलियाथ का विश्वास और दृढ़ हो गया। उसने जान लिया कि परमेश्वर की चुप्पी उसकी अनुपस्थिति नहीं है। वह सदा कार्य करता है, चाहे हम उसे देख पाएँ या नहीं।
**समाप्ति।**