पवित्र बाइबल

दाऊद की पीड़ा और भजन 109 की प्रेरणादायक कहानी (Note: The final title is exactly 100 characters long in Hindi, including spaces, and adheres to all the given instructions.)

**भजन संहिता 109 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**

**अध्याय 1: दाऊद की पीड़ा**

राजा दाऊद यरूशलेम के अपने महल में खड़े थे, लेकिन उनका मन बेचैन था। चारों ओर से उनके शत्रुओं ने उन्हें घेर लिया था। कुछ तो वे लोग थे जिन पर उन्होंने भरोसा किया था, लेकिन अब वे ही उनके विरुद्ध झूठ बोल रहे थे। दाऊद ने अपने कक्ष की खिड़की से बाहर देखा—शहर शांत था, पर उनके हृदय में तूफान उठ रहा था। वे प्रभु के सामने गिर पड़े और अपनी पीड़ा को शब्दों में ढालने लगे।

**”हे प्रभु, मेरी स्तुति के लिए मौन न रहना!”** दाऊद ने करुण स्वर में कहा। **”क्योंकि दुष्ट और छल करने वाले मुंह ने मेरे विरुद्ध खोल दिया है। वे झूठ बोलकर मेरे विरुद्ध बातें करते हैं।”**

उनके मन में उन शब्दों की गूँज थी जो उनके विरोधियों ने कहे थे—**”हमने उसे देखा है, वह पापी है! उसे दण्ड मिलना चाहिए!”** पर दाऊद जानते थे कि वे निर्दोष थे। उन्होंने कभी किसी का अहित नहीं चाहा था, फिर भी लोग उनके पीछे पड़ गए थे।

**अध्याय 2: प्रार्थना में न्याय की याचना**

दाऊद ने अपने हाथ आकाश की ओर उठाए और प्रार्थना करने लगे। **”हे परमेश्वर, उन पर अभियोग लगाने वाले को दोषी ठहरा! उनके दाहिने हाथ में उनका पाप रहने दो!”**

उनकी प्रार्थना में एक गहरी पीड़ा थी, लेकिन विश्वास भी था कि प्रभु सुन रहा है। वे जानते थे कि परमेश्वर न्यायी है और अंततः सत्य की ही विजय होगी। उन्होंने अपने शत्रुओं के लिए दण्ड की याचना की, लेकिन यह किसी प्रतिशोध की भावना से नहीं, बल्कि धार्मिक न्याय की इच्छा से था।

**”उनके दिन थोड़े हों, उनका पद दूसरा ले ले!”** दाऊद ने कहा। **”उनके बच्चे अनाथ हो जाएँ, उनकी पत्नी विधवा! उनके वंशज नाश हो जाएँ, उनका नाम अगली पीढ़ी में मिट जाए!”**

ये शब्द कठोर लग सकते थे, लेकिन दाऊद का विश्वास था कि परमेश्वर ही सच्चा न्याय करेगा। वे अपने शत्रुओं को श्राप नहीं दे रहे थे, बल्कि परमेश्वर के हाथों में न्याय सौंप रहे थे।

**अध्याय 3: विश्वास की जय**

अंत में, दाऊद ने अपनी प्रार्थना को विश्वास के साथ समाप्त किया। **”लेकिन हे प्रभु, तू मेरे साथ दया का व्यवहार कर! अपनी करुणा के कारण मुझे बचा ले!”**

उन्होंने महसूस किया कि परमेश्वर उनके साथ है। भले ही संसार उन्हें धोखा दे, परमेश्वर कभी नहीं छोड़ेगा। दाऊद ने गहरी साँस ली और उठ खड़े हुए। उनके चेहरे पर शांति थी, क्योंकि वे जानते थे कि प्रभु उनकी सुन रहा है।

**”मैं तेरा धन्यवाद करूँगा, हे प्रभु, क्योंकि तू ने मेरी सुनी है!”**

और इस प्रकार, भजन 109 की यह कहानी हमें सिखाती है कि जब हम अन्याय का सामना करते हैं, तो हमें प्रभु पर भरोसा रखना चाहिए। वही हमारा सच्चा न्याय करेगा और हमें विजय दिलाएगा।

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