**भजन संहिता 141 की कहानी: प्रार्थना और सुरक्षा**
एक समय की बात है, यरूशलेम के पास एक छोटे से गाँव में दाऊद नाम का एक भक्त रहता था। वह परमेश्वर का बहुत बड़ा भक्त था और हमेशा उसकी इच्छा के अनुसार जीवन जीने की कोशिश करता था। लेकिन उसके आसपास के लोग अक्सर बुराई में फँसे रहते थे। कई बार तो वे दाऊद को भी अपने गलत रास्तों पर खींचने की कोशिश करते।
एक दिन, जब दाऊद अपने खेत में काम कर रहा था, तभी उसके पड़ोसी उसके पास आए और बोले, “दाऊद, आज रात हमारे साथ चलो। हम शहर जा रहे हैं और वहाँ मौज-मस्ती करेंगे। वहाँ ऐसे लोग हैं जो धन और शक्ति का गलत उपयोग कर रहे हैं, लेकिन उनके साथ रहने से हमें भी फायदा होगा।”
दाऊद का हृदय घबरा गया। वह जानता था कि यह मार्ग गलत है, लेकिन उसके मन में डर भी था कि कहीं वह अपने पड़ोसियों को नाराज न कर दे। वह अपनी कुटिया में वापस आया और परमेश्वर के सामने प्रार्थना करने लगा। उसने कहा, **”हे यहोवा, मैं तेरी दोहाई देता हूँ, शीघ्र मेरी सुन ले! जब मैं तुझे पुकारूँ, तो मेरी वाणी की ओर कान लगा। मेरी प्रार्थना तेरे सामने धूप के समान हो, और मेरे हाथों का उठाना संध्या का बलिदान हो।”**
दाऊद जानता था कि उसकी प्रार्थना परमेश्वर तक पहुँचेगी। वह चाहता था कि उसके शब्द धूप की सुगंध की तरह स्वर्ग तक जाएँ और उसके हाथों का उठना परमेश्वर को प्रसन्न करे, जैसे संध्या का बलिदान प्रसन्न करता था।
लेकिन दाऊद को अपने मुँह पर भी नियंत्रण रखना था। वह जानता था कि बुरे लोगों के साथ रहने से उसके शब्द भी दूषित हो सकते हैं। इसलिए उसने प्रार्थना की, **”हे यहोवा, मेरे मुँह पर पहरा रख, मेरे होंठों के द्वार की रक्षा कर। मेरे मन को कुकर्म करने की ओर न झुकने दे, न ही मैं दुष्ट लोगों के भोजन में भाग लूँ।”**
उस रात, जब उसके पड़ोसी उसे लेने आए, तो दाऊद ने विनम्रता से मना कर दिया। उसने कहा, “मैं परमेश्वर की आज्ञा का पालन करता हूँ और तुम्हारे साथ नहीं आ सकता।” पड़ोसी उस पर हँसे और चले गए।
कुछ दिनों बाद, वे पड़ोसी बुरे कामों में फँस गए और राजा के सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया। लेकिन दाऊद सुरक्षित रहा, क्योंकि उसने परमेश्वर की शरण ली थी। उसने देखा कि परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुन ली थी।
एक रात, जब दाऊद सो रहा था, तो उसने एक स्वप्न देखा। उसने देखा कि एक धर्मी व्यक्ति उसे डाँट रहा है, मानो कोई मित्र उसे सही रास्ता दिखा रहा हो। जब वह जागा, तो उसे समझ आया कि परमेश्वर उसे सच्चाई का मार्ग दिखा रहा है। उसने फिर से प्रार्थना की, **”यदि धर्मी मुझे ताड़ना दे, तो वह अनुग्रह होगा; यदि वह मुझे डाँटे, तो वह सिर पर लगाया हुआ तेल होगा। मेरी प्रार्थना उनकी बुराई के विरुद्ध निरंतर बनी रहेगी।”**
दाऊद ने महसूस किया कि परमेश्वर हमेशा उसकी रक्षा करता है। जब दुष्ट लोगों के फंदे उसके लिए बिछाए जाते, तो परमेश्वर उसे बचा लेता। उसने कहा, **”वे अधिपति उसके पास गिरेंगे, तब वे मेरी वाणी सुनकर जान जाएँगे कि मेरे वचन मधुर हैं।”**
अंत में, दाऊद ने परमेश्वर का धन्यवाद दिया क्योंकि उसकी आँखें बुराई की ओर नहीं, बल्कि सत्य की ओर लगी रहीं। उसने कहा, **”हे यहोवा, मेरी आँखें तेरी ओर लगी हैं, मैं तुझ पर भरोसा रखता हूँ। मुझे अपने जाल में न गिरने दे।”**
और इस तरह, दाऊद ने परमेश्वर की शरण में रहकर अपने जीवन को सुरक्षित रखा। उसकी प्रार्थना, उसकी आस्था और परमेश्वर पर भरोसा—ये सब उसके लिए सुरक्षा कवच बन गए।
**शिक्षा:** भजन संहिता 141 हमें सिखाता है कि हमें हमेशा परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमारे वचनों, विचारों और कर्मों पर नियंत्रण रखे। हमें बुराई से दूर रहना चाहिए और धर्मी लोगों की सलाह को महत्व देना चाहिए। परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं को सुनता है और हमें हर संकट से बचाता है।