पवित्र बाइबल

होशे 13: दृढ़ चेतावनी और आशा की कहानी

**होशे 13: एक दृढ़ चेतावनी और आशा की कहानी**

एक समय की बात है, जब इस्राएल का परमेश्वर के साथ गहरा संबंध था। वे उसके चुने हुए लोग थे, जिन्हें उसने मिस्र की दासता से छुड़ाकर मरुभूमि में अपनी अगुवाई में लाया था। परमेश्वर ने उन्हें अपनी सामर्थ्य और प्रेम से सींचा, जैसे कोई किसान अपने बाग को पानी देता है। लेकिन समय बीतने के साथ, इस्राएल का हृदय घमंड से भर गया। उन्होंने अपने उद्धारकर्ता को भुला दिया और मूर्तियों की पूजा करने लगे।

### **एकता का पतन**

होशे नबी के माध्यम से परमेश्वर ने इस्राएल को एक कड़ी चेतावनी दी: **”जब एप्रैम बोलता था, तब लोग काँपते थे; वह इस्राएल में अपने आप को महान ठहराता था। परन्तु उसने बाल के द्वारा पाप किया और मर गया।”** (होशे 13:1)

एक समय था जब एप्रैम (इस्राएल का एक प्रमुख गोत्र) बहुत शक्तिशाली था। उनकी वाणी में अधिकार था, और लोग उनसे डरते थे। लेकिन उन्होंने अपनी शक्ति का गलत उपयोग किया। बाल देवता की पूजा करके, उन्होंने परमेश्वर को ठुकरा दिया। उनका घमंड उनके पतन का कारण बना।

### **मूर्तिपूजा का मूर्खतापूर्ण प्रेम**

परमेश्वर ने उनकी मूर्खता को उजागर किया: **”वे अब भी पाप करते हैं; अपने लिए चाँदी की मूर्तियाँ ढालते हैं, अपनी समझ के अनुसार बुत बनाते हैं, जो सब कारीगरों का ही काम है। वे उनसे कहते हैं, ‘बलिदान चढ़ाने वाले लोग बछड़ों को चूमो!'”** (होशे 13:2)

इस्राएल के लोगों ने अपने हाथों से बनाई मूर्तियों की पूजा की, जबकि वही परमेश्वर जिसने उन्हें अस्तित्व दिया, उन्हें भुला दिया गया। वे बछड़ों की मूर्तियों के सामने झुकते और उन्हें चूमते, मानो वे ही उनके उद्धारकर्ता हैं। कितनी बड़ी मूर्खता थी!

### **परमेश्वर की स्मृति से विमुखता**

परमेश्वर ने उन्हें याद दिलाया: **”मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ, जिसने तुम्हें मिस्र देश से निकाल लाया। तुम मुझे छोड़कर किसी और ईश्वर को नहीं जानते, और मैं ही तुम्हारा उद्धारकर्ता हूँ।”** (होशे 13:4)

लेकिन इस्राएल ने उसकी आवाज़ नहीं सुनी। जब वे संकट में होते, तब वे परमेश्वर को याद करते, पर शांति के समय वे फिर से मूर्तियों की ओर भागते।

### **परमेश्वर का न्याय**

परमेश्वर ने उनके विद्रोह के लिए दंड की घोषणा की: **”इसलिए मैं उनके लिए सिंह की तरह हो जाऊँगा; मैं मार्ग में एक तेंदुए की तरह उनकी घात में रहूँगा। मैं उन पर उस माँ की तरह गिरूँगा जिसके बच्चे छीन लिए गए हों; मैं उनके हृदय को फाड़ डालूँगा।”** (होशे 13:7-8)

परमेश्वर का क्रोध उन पर आने वाला था। जिस प्रकार एक जंगली सिंह अपने शिकार को नहीं छोड़ता, उसी तरह परमेश्वर उनके पापों का न्याय करेगा। वह उन्हें उनके विद्रोह के परिणाम भुगतने देगा।

### **मृत्यु की शक्ति पर विजय**

लेकिन इस न्याय के बीच भी, परमेश्वर ने आशा की एक किरण दिखाई: **”हे मृत्यु, तेरी विपत्तियाँ कहाँ हैं? हे अधोलोक, तेरा नाश कहाँ है? मेरी दया पश्चाताप से छिपी रहेगी।”** (होशे 13:14)

यद्यपि इस्राएल ने पाप किया था, परमेश्वर की करुणा समाप्त नहीं हुई थी। वह एक दिन मृत्यु और पाप पर विजय प्राप्त करेगा। यह भविष्य में मसीह के आगमन की ओर संकेत करता है, जो मृत्यु को परास्त करेगा और अपने लोगों को छुड़ाएगा।

### **निष्कर्ष: पश्चाताप और पुनर्स्थापना का आह्वान**

होशे की यह कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर पाप से घृणा करता है, लेकिन वह पश्चाताप करने वालों को क्षमा भी करता है। इस्राएल ने अपने विद्रोह के कारण दंड भोगा, लेकिन परमेश्वर की प्रतिज्ञा हमेशा बनी रहती है।

**”हे इस्राएल, अपने परमेश्वर यहोवा की ओर लौट आ, क्योंकि तू अपने अधर्म के कारण गिर पड़ा है।”** (होशे 14:1)

यही संदेश आज हमारे लिए भी है। हम भी कभी-कभी परमेश्वर को भूलकर अपनी मूर्तियों के पीछे भटक जाते हैं। लेकिन यदि हम पश्चाताप करें और उसकी ओर लौटें, तो वह हमें क्षमा करेगा और हमारी आत्मा को नया जीवन देगा।

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