# **मूसा का चमत्कारी राजदंड और परमेश्वर की शक्ति**
(निर्गमन 4)
## **मिद्यान से मिस्त्र की ओर**
मूसा मिद्यान के जंगल में अपने ससुर यित्रो की भेड़ें चरा रहा था। एक दिन, जब वह होरेब के पहाड़ के पास पहुँचा, तो उसने एक अद्भुत दृश्य देखा—एक झाड़ी आग में जल रही थी, किंतु वह भस्म नहीं हो रही थी। उसी समय परमेश्वर ने उससे बात की और उसे मिस्त्र जाकर फिरौन से इस्राएलियों को छुड़ाने का आदेश दिया। मूसा भयभीत था और उसने कहा, *”हे प्रभु, मैं योग्य नहीं हूँ। मेरे मुख से बातें स्पष्ट नहीं निकलतीं।”*
परमेश्वर ने उससे कहा, *”तू अपने हाथ में क्या पकड़े हुए है?”*
मूसा ने देखा—उसके हाथ में एक साधारण लाठी थी, जिसे वह भेड़ों को हाँकने के लिए प्रयोग करता था। परमेश्वर ने आज्ञा दी, *”उसे भूमि पर फेंक दे।”*
मूसा ने लाठी को ज़मीन पर गिराया, और वह एक साँप में बदल गई! मूसा डरकर पीछे हट गया। तब परमेश्वर ने कहा, *”इसकी पूँछ पकड़ ले।”* मूसा ने झिझकते हुए साँप की पूँछ पकड़ी, और वह फिर से लाठी बन गई।
परमेश्वर ने समझाया, *”यह चिन्ह इसलिए है कि लोग मानें कि मैंने तुझे भेजा है।”*
## **हाथ का कोढ़ और चंगाई**
परमेश्वर ने फिर मूसा को एक और चिन्ह दिखाया। उसने कहा, *”अपना हाथ अपने वस्त्र के अंदर डाल।”* मूसा ने ऐसा ही किया, और जब उसने हाथ बाहर निकाला, तो वह कोढ़ से सफेद हो चुका था, जैसे बर्फ की तरह चमक रहा था!
मूसा ने आश्चर्य से देखा, किंतु परमेश्वर ने कहा, *”अब फिर से हाथ अंदर डाल।”* मूसा ने हाथ वस्त्र में डाला और बाहर निकाला—इस बार उसका हाथ पूरी तरह स्वस्थ था, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
*”यदि वे पहले चिन्ह पर न मानें,”* परमेश्वर ने कहा, *”तो यह दूसरा चिन्ह उन्हें विश्वास दिलाएगा।”*
## **नदी का पानी लहू बन जाएगा**
परमेश्वर ने मूसा को तीसरा चिन्ह भी दिया। *”यदि वे इन दोनों चिन्हों पर भी न मानें,”* उसने कहा, *”तो नील नदी का पानी लेकर सूखी भूमि पर छिड़क देना। वह पानी लहू बन जाएगा।”*
मूसा अभी भी डरा हुआ था। उसने कहा, *”हे प्रभु, मैं वाक्पटु नहीं हूँ। मेरी वाणी में भारीपन है।”*
परमेश्वर ने उत्तर दिया, *”किसने मनुष्य का मुख बनाया? कौन गूंगा, बहरा, या देखने वाला बनाता है? क्या मैं, यहोवा, नहीं? अब जा, मैं तेरे मुख से बोलूँगा और तुझे सिखाऊँगा कि क्या कहना है।”*
किंतु मूसा ने विनती की, *”हे प्रभु, कृपया किसी और को भेजें।”*
## **हारून मूसा का सहायक बनता है**
परमेश्वर मूसा के डर को समझता था। उसने कहा, *”तेरा भाई हारून लेवीय है। देख, वह तेरे पास आ रहा है। वह तेरी बातें लोगों तक पहुँचाएगा। मैं तुम दोनों के मुख से बोलूँगा और तुम्हें बताऊँगा कि क्या करना है। वह तेरा मुँह होगा, और तू उसका परमेश्वर होगा। और यह लाठी तेरे हाथ में रहेगी, जिससे तू चमत्कार दिखाएगा।”*
## **मिस्त्र की यात्रा और परमेश्वर की चेतावनी**
मूसा ने अपने ससुर यित्रो से विदा ली और अपनी पत्नी सिप्पोरा और बेटों को गधे पर बैठाकर मिस्त्र की ओर चल पड़ा। उसके हाथ में वही राजदंड था, जिसे परमेश्वर ने चमत्कारी बना दिया था।
रास्ते में एक विचित्र घटना घटी। परमेश्वर ने मूसा को मारने का प्रयास किया, क्योंकि उसका बेटा खतना नहीं हुआ था। सिप्पोरा ने तुरंत एक पत्थर का टुकड़ा लेकर अपने बेटे का खतना किया और मूसा के पैरों पर उसका लहू छिड़क दिया। उसने कहा, *”तू मेरे लिए लहू का दामाद है।”* तब परमेश्वर ने मूसा को जाने दिया।
## **हारून से मुलाकात और इस्राएलियों को सन्देश**
परमेश्वर ने हारून को भी आदेश दिया कि वह मूसा से मिलने जाए। हारून मूसा से परमेश्वर के पहाड़ पर मिला और उसे गले लगाया। मूसा ने हारून को वे सभी वचन सुनाए, जो परमेश्वर ने उसे दिए थे, और वे चमत्कार भी दिखाए, जो उसे करने थे।
फिर वे दोनों मिस्त्र पहुँचे और इस्राएल के सभी बुजुर्गों को इकट्ठा किया। हारून ने परमेश्वर के वचन सुनाए, और मूसा ने चमत्कार दिखाए। जब इस्राएलियों ने देखा कि परमेश्वर ने उनकी पीड़ा देख ली है, तो वे दण्डवत करने लगे और आनन्दित हुए।
इस प्रकार, परमेश्वर की योजना आरंभ हुई—मूसा और हारून फिरौन के सामने खड़े होने के लिए तैयार थे, और इस्राएल की मुक्ति का समय निकट आ गया था।