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इस्राएलियों की यात्रा गिनती 33 की प्रेरणादायक कहानी

# **इस्राएलियों की यात्रा: गिनती 33 की कहानी**

## **प्रस्तावना**

मिस्र की दासता से छुटकारा पाने के बाद, इस्राएल के लोगों ने एक अद्भुत और चमत्कारिक यात्रा शुरू की। परमेश्वर ने उन्हें वादा किए हुए देश कनान की ओर ले जाने का मार्गदर्शन किया। गिनती की पुस्तक का अध्याय 33 इस यात्रा का विस्तृत विवरण देता है, जहाँ हर पड़ाव पर परमेश्वर की सामर्थ्य और विश्वासयोग्यता प्रकट होती है। यह कहानी उनकी यात्रा के हर चरण को जीवंत करती है।

## **मिस्र से प्रस्थान**

फसह के पर्व की रात, जब यहोवा ने मिस्र के सभी पहलौठों को मार डाला, फिरौन ने इस्राएलियों को जाने दिया। वे रामेसेस नगर से चले, अपने साथ बहुत सा धन, सोना, चाँदी और वस्त्र लेकर, जैसा कि मिस्रियों ने उन्हें दिया था। उनके साथ एक बड़ी मिश्रित भीड़ भी थी, जो उनके साथ हो ली।

सूखे पैरों से लाल समुद्र को पार करने के बाद, वे सीनै के जंगल की ओर बढ़े। परमेश्वर ने उनके लिए मन्ना और बटेर का भोजन दिया और चट्टान से पानी निकाला। उनका पहला पड़ाव सुक्कोत में था, फिर एताम में, जहाँ से वे पीहहिरोत के पास आए, जहाँ परमेश्वर ने उन्हें बादल और आग के स्तंभ से मार्गदर्शन दिया।

## **जंगल की परीक्षाएँ**

यात्रा कठिन थी। जंगल में पानी की कमी, भोजन की चिंता और शत्रुओं के भय ने लोगों को परेशान किया। मरा नामक स्थान पर पानी कड़वा था, लेकिन मूसा ने परमेश्वर के निर्देश पर एक लकड़ी डाली, और पानी मीठा हो गया। एलीम में उन्हें बारह सोते और सत्तर खजूर के वृक्ष मिले, जहाँ उन्होंने विश्राम किया।

फिर वे सीनै के जंगल पहुँचे, जहाँ परमेश्वर ने मूसा को दस आज्ञाएँ दीं। यह वह स्थान था जहाँ इस्राएलियों ने सोने के बछड़े की मूर्ति बनाकर पाप किया, लेकिन परमेश्वर की दया ने उन्हें नष्ट नहीं किया।

## **कादेश में विद्रोह**

कादेश-बरनेआ पहुँचकर परमेश्वर ने उन्हें कनान देश में प्रवेश करने का आदेश दिया। लेकिन जासूसों की बुरी रिपोर्ट सुनकर लोग डर गए और विद्रोह कर बैठे। उन्होंने कहा, “हम उन लोगों के सामने कैसे खड़े हो सकते हैं? वे तो हमसे अधिक बलवान हैं!”

परमेश्वर ने उनके अविश्वास के कारण उस पीढ़ी को वादा किए हुए देश में प्रवेश करने से रोक दिया। उन्हें चालीस वर्ष तक जंगल में भटकना पड़ा, जब तक कि सभी विद्रोही नष्ट नहीं हो गए। केवल यहोशू और कालेब, जिन्होंने परमेश्वर पर भरोसा रखा, वे ही जीवित बचे।

## **अंतिम पड़ाव: मोआब के मैदान**

चालीस वर्षों की लंबी यात्रा के बाद, इस्राएली अंततः मोआब के मैदान में पहुँचे, यरीहो के सामने यरदन नदी के पूर्वी किनारे पर। यहाँ परमेश्वर ने मूसा से कहा:

“इस्राएल के पुत्रों से कहो कि जब तुम यरदन को पार कर कनान देश में प्रवेश करो, तो उस देश के सभी मूर्ति-स्थानों को नष्ट कर देना। उनकी मूर्तियों को तोड़ डालना और उनके ऊँचे स्थानों को गिरा देना। तुम उस देश को अपनी पैतृक भूमि के अनुसार बाँट लेना।”

## **निष्कर्ष**

यह यात्रा केवल एक भौगोलिक सफर नहीं थी, बल्कि विश्वास की परीक्षा थी। परमेश्वर ने अपने लोगों को हर कदम पर सिखाया कि उसकी आज्ञा मानने से आशीष मिलती है, और अविश्वास दुख का कारण बनता है। जब वे अंततः वादा किए हुए देश के द्वार पर खड़े हुए, तो उन्हें याद आया कि परमेश्वर हर समय विश्वासयोग्य है।

इस्राएलियों की यात्रा हमें सिखाती है कि परमेश्वर का मार्गदर्शन कभी नहीं छोड़ता, चाहे रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो। जैसे उसने उन्हें लाल समुद्र से निकाला, वैसे ही वह हमें भी हर परीक्षा से बाहर निकाल सकता है।

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