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शाऊल का राज्याभिषेक: इस्राएल का पहला राजा

**शमूएल 10: शाऊल का राजा के रूप में अभिषेक**

एक समय की बात है, जब इस्राएल के लोगों ने परमेश्वर से एक राजा की माँग की, ताकि वे अन्य राष्ट्रों के समान हो सकें। परमेश्वर ने शमूएल भविष्यद्वक्ता को भेजा कि वह बिन्यामीन के गोत्र के एक युवक, शाऊल को चुनकर इस्राएल का पहला राजा बनाए।

शाऊल एक सुन्दर और लम्बे कद का युवक था, जिसके समान इस्राएल में कोई नहीं था। वह अपने पिता किश के गधों की खोज में निकला था, क्योंकि वे खो गए थे। कई दिनों तक भटकने के बाद भी जब गधे नहीं मिले, तो शाऊल ने अपने सेवक से कहा, “चलो, हम लौट चलते हैं। मेरे पिता अब हमारी चिन्ता करने लगेंगे।”

किन्तु सेवक ने उत्तर दिया, “इस नगर में एक परमेश्वर का पुरुष रहता है, जो सब कुछ जानता है। चलो, उसके पास जाएँ। शायद वह हमें बता दे कि हम कहाँ जाएँ।”

शाऊल ने सोचा कि यह अच्छा विचार है, और वे दोनों नगर में प्रवेश करने लगे। उसी समय, परमेश्वर ने शमूएल से कहा था, “कल इसी समय मैं तुम्हारे पास बिन्यामीन देश से एक पुरुष भेजूँगा। तुम उसका अभिषेक करके इस्राएल का अधिपति बनाना, क्योंकि वही मेरी प्रजा को पलिश्तियों के हाथ से बचाएगा।”

जब शमूएल ने शाऊल को देखा, तो परमेश्वर ने उसके हृदय में कहा, “यही वह पुरुष है, जिसकी मैंने तुमसे चर्चा की थी। यही मेरी प्रजा पर शासन करेगा।”

शाऊल ने शमूएल से पूछा, “कृपया मुझे बताइए, भविष्यद्वक्ता का घर कहाँ है?”

शमूएल ने उत्तर दिया, “मैं ही भविष्यद्वक्ता हूँ। मेरे साथ चलो। आज तुम मेरे साथ भोजन करोगे, और कल सुबह मैं तुम्हें वह सब बता दूँगा जो तुम्हारे मन में है। गधों के विषय में चिन्ता मत करो, वे मिल चुके हैं। अब इस्राएल की सारी आशाएँ तुम्हारे और तुम्हारे पिता के घराने पर टिकी हैं।”

शाऊल आश्चर्यचकित रह गया और बोला, “मैं तो बिन्यामीन का एक साधारण व्यक्ति हूँ। मेरा कुल इस्राएल के सबसे छोटे गोत्र में से है। आप मुझसे ऐसी बातें क्यों कह रहे हैं?”

किन्तु शमूएल ने उसे चुप कराया और उसे अपने साथ भोजन कक्ष में ले गया। वहाँ उसने शाऊल को मुख्य अतिथि का स्थान दिया और उसके सामने चुनिंदा भोजन परोसा।

उस रात, शमूएल ने शाऊल से लम्बी बातचीत की और अगले दिन सुबह-सवेरे, वह उसे नगर से बाहर ले गया। रास्ते में, शमूएल ने शाऊल से कहा, “अपने सेवक को आगे जाने दे। मैं तुम्हें परमेश्वर का वचन सुनाना चाहता हूँ।”

जब सेवक आगे निकल गया, तो शमूएल ने एक तेल का पात्र निकाला और उसे शाऊल के सिर पर उंडेल दिया। फिर उसने कहा, “क्या तुम नहीं जानते कि परमेश्वर ने तुम्हें इस्राएल का अधिपति बनाया है? आज से तुम उसकी प्रजा का मार्गदर्शन करोगे।”

शमूएल ने उसे कुछ चिन्ह भी बताए, जिनसे शाऊल को पता चले कि परमेश्वर ने वास्तव में उसे चुना है:

“जब तुम आज मेरे पास से जाओगे, तो बिन्यामीन की सीमा पर सलिसा में तुम्हें दो पुरुष मिलेंगे, जो तुमसे कहेंगे कि तुम्हारे पिता के गधे मिल गए हैं, और अब तुम्हारा पिता तुम्हारे बारे में चिन्तित है। फिर तुम ताबोर के पेड़ के पास पहुँचोगे, जहाँ तीन पुरुष तुम्हें तीन बकरियाँ, तीन रोटियाँ और दाखमधु का एक मश्क देंगे। अन्त में, जब तुम गिबा के परमेश्वर के पहाड़ पर पहुँचोगे, तो वहाँ भविष्यद्वक्ताओं का एक दल तुम्हें मिलेगा, जिनके साथ तुम्हारा हृदय भी परमेश्वर के आत्मा से परिवर्तित हो जाएगा।”

शमूएल की बातें पूरी हुईं। शाऊल ने वे सभी चिन्ह देखे, और जब वह भविष्यद्वक्ताओं के बीच पहुँचा, तो परमेश्वर का आत्मा उस पर बलवती हो गया। वह उनके साथ भविष्यवाणी करने लगा, जिससे वहाँ के सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए।

कुछ समय बाद, शमूएल ने सारे इस्राएल को मिस्पा में इकट्ठा किया और परमेश्वर की इच्छा से शाऊल को राजा घोषित किया। हालाँकि कुछ लोगों ने उसका तिरस्कार किया, किन्तु शाऊल ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह चुपचाप अपने घर लौट गया, जबकि परमेश्वर की आत्मा उसके साथ थी।

इस प्रकार, शाऊल इस्राएल का पहला राजा बना, जिसे स्वयं परमेश्वर ने चुना था। यह घटना इस्राएल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, जहाँ परमेश्वर ने अपनी प्रजा को एक मूर्त नेतृत्व प्रदान किया, ताकि वे उसकी महिमा के लिए जीवन बिताएँ।

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