**1 कुरिन्थियों 16 पर आधारित बाइबल कहानी: “प्रेम और सेवा का अंतिम निर्देश”**
एक शांत सुबह, प्रातःकाल की धूप एथेंस के संकरी गलियों में फैल रही थी। पौलुस, जो कुरिन्थुस की कलीसिया के लिए अपने पत्र को समाप्त कर रहा था, एक छोटी सी मिट्टी की मेज़ के पास बैठा हुआ था। उसके चेहरे पर गहरी चिंतन की छाप थी। वह जानता था कि उसके शब्दों का कुरिन्थुस के विश्वासियों के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। उसने अपनी कलम उठाई और आत्मा की अगुवाई में लिखना शुरू किया।
### **संग्रह के लिए निर्देश**
पौलुस ने लिखा, **”पवित्र लोगों के लिए जो संग्रह किया जाए, उसके विषय में मैंने गलातिया की कलीसियाओं के लिए जो आज्ञा दी है, वही तुम भी करो। हर सप्ताह के पहले दिन, तुम में से हर एक व्यक्ति अपनी आमदनी के अनुसार कुछ अलग रखकर अपने पास जमा करता रहे, ताकि जब मैं आऊँ, तो संग्रह करने की आवश्यकता न हो।”**
उसने सोचा कि कैसे यह संग्रह केवल धन का मामला नहीं था, बल्कि प्रेम और एकता का प्रतीक था। यरूशलेम में गरीब विश्वासियों की मदद करने के लिए यह एक पवित्र कर्तव्य था। पौलुस चाहता था कि कुरिन्थुस के लोग उदारता से दें, जैसे मसीह ने उनके लिए अपना सब कुछ दे दिया था।
### **यात्रा की योजना**
कलम को थामे हुए, पौलुस ने अपनी भावी यात्राओं के बारे में लिखा। **”जब मैं मकिदुनिया जाऊँगा, तो तुम्हारे पास आऊँगा, क्योंकि मैं मकिदुनिया से होकर जाने वाला हूँ। और संभव है कि मैं तुम्हारे साथ कुछ समय बिताऊँ या यहाँ तक कि सर्दी भी बिताऊँ, ताकि तुम मुझे आगे के सफर के लिए विदा कर सको। मैं अभी तुरंत तुम्हारे पास नहीं आना चाहता, क्योंकि मैं प्रभु में आशा करता हूँ कि कुछ समय तुम्हारे साथ रहूँगा।”**
उसने महसूस किया कि उसकी योजनाएँ केवल मनुष्य की इच्छा पर नहीं, बल्कि प्रभु की अनुमति पर निर्भर थीं। वह जानता था कि कुरिन्थुस की कलीसिया को उसकी आवश्यकता थी, परन्तु उसे प्रभु की इच्छा का इंतज़ार करना था।
### **तिमुथियुस और अपुल्लोस का उल्लेख**
पौलुस ने तब तिमुथियुस के बारे में चेतावनी दी: **”यदि तिमुथियुस आए, तो देखना कि वह तुम्हारे बीच निडर रहे, क्योंकि वह भी मेरी ही तरह प्रभु का काम करता है। इसलिए किसी को उसका तिरस्कार न करने पाए। उसे शांति से आगे जाने दो, ताकि वह मेरे पास आ सके, क्योंकि मैं उसके और भाइयों के आने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।”**
उसने अपुल्लोस का भी ज़िक्र किया: **”भाई अपुल्लोस के विषय में मैंने उससे बहुत अनुरोध किया कि वह भाइयों के साथ तुम्हारे पास आए, परन्तु अभी उसका आना नहीं हुआ; पर जब उसे अवसर मिलेगा, तो वह आएगा।”**
पौलुस जानता था कि कलीसिया को सभी सेवकों की आवश्यकता थी, और हर एक का अपना समय और स्थान था।
### **अंतिम उत्साहवर्धक शब्द**
अपने पत्र के अंत में, पौलुस ने उन्हें सचेत किया: **”जागते रहो, विश्वास में स्थिर रहो, पुरुषार्थी बनो, बलवन्त बनो। तुम्हारा सब कुछ प्रेम से हो।”**
ये शब्द उसके हृदय से निकले थे। वह चाहता था कि कुरिन्थुस के विश्वासी केवल सिद्धांतों में नहीं, बल्कि प्रेम के व्यावहारिक जीवन में मज़बूत बनें।
### **विशेष अभिवादन**
अंत में, पौलुस ने कुछ नाम लिखे: **”अक्विला और प्रिस्किल्ला, और उनके घर की कलीसिया के नाम प्रभु में बहुत स्नेह।”** उसने स्टेफनास, फुर्तुनातुस, और अखैकस का भी उल्लेख किया, जिन्होंने उसकी सेवा में सहायता की थी।
उसने लिखा: **”क्योंकि उन्होंने मेरे और तुम्हारे जीवन को तरोताज़ा किया है। ऐसे लोगों का आदर करो।”**
### **अंतिम आशीष**
अपने पत्र को समाप्त करते हुए, पौलुस ने लिखा: **”सभी भाइयों की ओर से तुम्हें नमस्कार। एक-दूसरे को पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो। मेरी ओर से, पौलुस की ओर से यह नमस्कार है। यदि कोई प्रभु यीशु से प्रेम नहीं करता, तो वह शापित हो। हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारे साथ रहे। मेरा प्रेम तुम सबके साथ है, मसीह यीशु में। आमीन।”**
कलम को रखते हुए, पौलुस ने प्रार्थना की कि यह पत्र कुरिन्थुस के विश्वासियों के हृदयों को छू ले। वह जानता था कि प्रेम, सेवा, और एकता ही मसीह की देह की सच्ची पहचान थी। और इसी के साथ, उसका पत्र पूरा हुआ।