पवित्र बाइबल

Here’s a concise and creative Hindi title for your Bible story within 100 characters: **परमेश्वर की अद्भुत सृष्टि: आकाश, धरती और मनुष्य की रचना** (Character count: 63, including spaces) This title captures the essence of the creation story while staying within the limit. Let me know if you’d like any adjustments!

**सृष्टि की कहानी: उत्पत्ति 1**

आदि में, जब कुछ भी नहीं था—न आकाश, न धरती, न समुद्र, न प्रकाश—केवल अनंत अंधकार था, तब परमेश्वर विद्यमान थे। वह सर्वशक्तिमान, अनंत और अद्वितीय थे। उनकी आत्मा गहिरे जल के ऊपर मंडरा रही थी, और उसी पल, उन्होंने सृष्टि का आरंभ किया।

**पहला दिन: प्रकाश की सृष्टि**

परमेश्वर ने कहा, **”उजियाला हो,”** और तुरंत ही प्रकाश फैल गया। उनके वचन में इतनी शक्ति थी कि अंधकार छंट गया और ज्योति प्रकट हुई। परमेश्वर ने देखा कि प्रकाश अच्छा है, और उन्होंने प्रकाश को अंधकार से अलग कर दिया। प्रकाश को उन्होंने **”दिन”** कहा और अंधकार को **”रात”**। इस प्रकार, सांझ और सवेरे होते हुए, पहला दिन पूरा हुआ।

**दूसरा दिन: आकाश की रचना**

दूसरे दिन, परमेश्वर ने कहा, **”जल के बीच एक ठोस आकाश हो, जो जल को जल से अलग करे।”** और वैसा ही हुआ। परमेश्वर ने आकाश बनाया, जिसने ऊपर के जल और नीचे के जल को विभाजित किया। आकाश को उन्होंने **”आसमान”** कहा। सांझ और सवेरे होते हुए, दूसरा दिन बीता।

**तीसरा दिन: स्थल और वनस्पति की उत्पत्ति**

तीसरे दिन, परमेश्वर ने कहा, **”आकाश के नीचे का जल एक स्थान पर इकट्ठा हो और सूखी भूमि दिखाई दे।”** और वैसा ही हुआ। जल समुद्रों में एकत्र हो गया, और सूखी धरती प्रकट हुई। परमेश्वर ने सूखी भूमि को **”पृथ्वी”** और जल को **”समुद्र”** कहा। उन्होंने देखा कि यह अच्छा है।

फिर परमेश्वर ने कहा, **”पृथ्वी पर हरी घास, बीज देने वाले पौधे और फलदार वृक्ष उगें, जो अपने-अपने बीज से अपनी जाति के अनुसार फल दें।”** और तुरंत ही धरती हरी-भरी हो गई। घास, फूल, फलदार वृक्ष—सब अपनी-अपनी जाति के अनुसार उग आए। परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है। सांझ और सवेरे होते हुए, तीसरा दिन समाप्त हुआ।

**चौथा दिन: सूर्य, चंद्रमा और तारों की सृष्टि**

चौथे दिन, परमेश्वर ने कहा, **”आकाश में ज्योतियाँ हों, जो दिन और रात को अलग करें और ऋतुओं, दिनों और वर्षों का निर्धारण करें।”** और वैसा ही हुआ। परमेश्वर ने दो बड़ी ज्योतियाँ बनाईं—एक सूर्य, जो दिन पर प्रभुता करे, और दूसरी चंद्रमा, जो रात पर शासन करे। उन्होंने तारे भी बनाए और उन्हें आकाश में सजा दिया। ये ज्योतियाँ पृथ्वी को प्रकाशित करने लगीं। परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है। सांझ और सवेरे होते हुए, चौथा दिन बीता।

**पाँचवाँ दिन: जलचर और पक्षियों की सृष्टि**

पाँचवें दिन, परमेश्वर ने कहा, **”जल जीवित प्राणियों से भर जाए, और पक्षी आकाश में उड़ें।”** और उन्होंने विशाल समुद्री जीव, छोटी मछलियाँ और रेंगने वाले जलचर बनाए, जो जल में हिलोरें लेने लगे। साथ ही, उन्होंने रंग-बिरंगे पक्षी बनाए, जो आकाश में उड़ने लगे। परमेश्वर ने उन्हें आशीष दी और कहा, **”फूलो-फलो और समुद्र के जल को भर दो, और पक्षी पृथ्वी पर बढ़ें।”** सांझ और सवेरे होते हुए, पाँचवाँ दिन पूरा हुआ।

**छठा दिन: थलचर प्राणी और मनुष्य की रचना**

छठे दिन, परमेश्वर ने कहा, **”पृथ्वी से जीवित प्राणी उत्पन्न हों—घरेलू पशु, रेंगने वाले जीव और जंगली जानवर, हर एक अपनी जाति के अनुसार।”** और वैसा ही हुआ। परमेश्वर ने हाथी, शेर, गाय, साँप, हिरण—हर प्रकार के जीव बनाए, जो धरती पर विचरने लगे। उन्होंने देखा कि यह अच्छा है।

फिर परमेश्वर ने कहा, **”हम मनुष्य को अपने स्वरूप में, अपनी समानता में बनाएँ, जो समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों, घरेलू पशुओं और सारी पृथ्वी पर रेंगने वाले जीवों पर अधिकार रखे।”**

तब परमेश्वर ने मिट्टी ली और उससे आदम का शरीर रचा। फिर उन्होंने उसके नथनों में जीवन का श्वास फूँका, और आदम एक जीवित प्राणी बन गया। परमेश्वर ने उसे आशीष दी और कहा, **”फूलो-फलो, पृथ्वी को भर दो और उस पर अधिकार करो।”**

परमेश्वर ने देखा कि जो कुछ उन्होंने बनाया था, वह बहुत अच्छा है। सांझ और सवेरे होते हुए, छठा दिन समाप्त हुआ।

**सातवाँ दिन: विश्राम**

इस प्रकार, परमेश्वर ने अपनी सृष्टि का कार्य पूरा किया। सातवें दिन, उन्होंने सभी कामों से विश्राम लिया और उस दिन को पवित्र ठहराया। इस प्रकार, आकाश और पृथ्वी की सृष्टि पूर्ण हुई।

परमेश्वर की महिमा और बुद्धि उनकी रचना के हर कोने में दिखाई देती थी। उन्होंने सब कुछ सुनियोजित और सुंदर बनाया, और मनुष्य को अपनी सृष्टि का रक्षक नियुक्त किया। यही सृष्टि की आदि कथा है, जो परमेश्वर के प्रेम और सामर्थ्य का प्रमाण है।

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