**1 इतिहास 26: द्वारपालों और भण्डारियों की नियुक्ति**
दाऊद के राज्य के समय में, जब यरूशलेम का मन्दिर बनाने की तैयारी चल रही थी, तब दाऊद ने न केवल भवन और सेवकों के लिए योजना बनाई, बल्कि उसने परमेश्वर के घर की देखभाल करने वाले द्वारपालों और भण्डारियों की भी व्यवस्था की। ये लोग न केवल शारीरिक रूप से मन्दिर की रक्षा करते थे, बल्कि वे आत्मिक रूप से भी परमेश्वर की सेवा में समर्पित थे।
### **कोरह के वंशज: विश्वासयोग्य द्वारपाल**
द्वारपालों में कोरह के वंशजों का महत्वपूर्ण स्थान था। कोरह, लेवी के पुत्रों में से एक था, और उसके वंशजों को परमेश्वर ने मन्दिर की सेवा के लिए चुना था। इनमें मशेलम्याह प्रमुख था, जो एक बुद्धिमान और पराक्रमी व्यक्ति था। उसके पुत्रों—जकर्याह, यदीएल, जबद्याह, यतनीएल, एलाम, यहोहानान, और एल्यहोएनाई—ने भी अपने पिता के मार्गदर्शन में द्वारपालों के रूप में सेवा की।
मशेलम्याह और उसके पुत्र पूर्वी द्वार की जिम्मेदारी संभालते थे, जो मन्दिर का सबसे महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार माना जाता था। वे न केवल शत्रुओं से मन्दिर की रक्षा करते थे, बल्कि वे यह भी सुनिश्चित करते थे कि केवल पवित्र और शुद्ध हृदय वाले ही परमेश्वर के सामने आएँ। उनकी सेवा केवल शारीरिक नहीं थी, बल्कि वे आत्मिक जागरूकता के साथ कार्य करते थे।
### **ओबेद-एदोम के वंशज: आशीष पाए हुए सेवक**
ओबेद-एदोम का परिवार भी द्वारपालों में प्रमुख था। ओबेद-एदोम वही था जिसके घर में परमेश्वर के सन्दूक को रखा गया था, और परमेश्वर ने उसके घर को आशीष दी थी। अब उसके वंशजों को भी मन्दिर की सेवा का सम्मान मिला। उसके पुत्रों—शम्याह, यहोजाबाद, योआह, साकार, नतनेल, अम्मीएल, इससाकार, और पौलत्थी—ने दक्षिणी द्वार की जिम्मेदारी संभाली।
ओबेद-एदोम के पुत्रों में शम्याह सबसे बड़ा था और उसने अपने भाइयों का नेतृत्व किया। वे सभी बलवान और कुशल योद्धा थे, परन्तु उनकी सबसे बड़ी शक्ति उनकी परमेश्वर के प्रति निष्ठा थी। वे जानते थे कि मन्दिर की रक्षा करना केवल तलवार से नहीं, बल्कि प्रार्थना और विश्वास से होता है।
### **होसा और उत्तर द्वार की जिम्मेदारी**
होसा, मरारी के वंशजों में से था, और उसे उत्तरी द्वार की सेवा सौंपी गई थी। उसके पुत्र—शिम्री, यहोयारीब, जकर्याह, और मतन्याह—सभी योग्य और विश्वासयोग्य सेवक थे। शिम्री, जो होसा का पहलौठा नहीं था, फिर भी उसे प्रधान बनाया गया क्योंकि उसमें नेतृत्व के गुण थे। यह दिखाता है कि परमेश्वर बाहरी दिखावे को नहीं, बल्कि हृदय की ईमानदारी को देखता है।
### **भण्डारियों की व्यवस्था**
द्वारपालों के अलावा, दाऊद ने मन्दिर के खजाने और पवित्र वस्तुओं की देखभाल के लिए भण्डारियों को भी नियुक्त किया। अहीयेल और उसके भाइयों को इस महत्वपूर्ण कार्य का दायित्व दिया गया। वे न केवल सोने-चाँदी, बल्कि उन पवित्र अस्त्र-शस्त्रों की भी देखभाल करते थे जो दाऊद ने युद्ध में जीतकर परमेश्वर को समर्पित किए थे।
शेलमोत और उसके भाइयों को दान की गई वस्तुओं का प्रबन्धन सौंपा गया। वे यह सुनिश्चित करते थे कि हर एक वस्तु का उचित उपयोग हो और कोई भी चीज़ व्यर्थ न जाए। उनकी सेवा में पारदर्शिता और ईमानदारी थी, क्योंकि वे जानते थे कि यह सब परमेश्वर के लिए पवित्र है।
### **सभी सेवकों की एकता**
यद्यपि हर एक का कार्य अलग था, परन्तु सभी का उद्देश्य एक था—परमेश्वर की महिमा करना। द्वारपाल, भण्डारी, याजक, सभी मिलकर परमेश्वर के घर की सेवा करते थे। दाऊद ने यह सुनिश्चित किया कि हर एक व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार सेवा करे, और कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं समझा जाए।
### **सबक और प्रेरणा**
इस अध्याय से हम सीखते हैं कि परमेश्वर की सेवा में हर एक का स्थान महत्वपूर्ण है। चाहे कोई द्वार की रखवाली करे या खजाने की, सभी का कार्य पवित्र है। हमें भी अपने जीवन में परमेश्वर द्वारा दिए गए दायित्व को पूरी निष्ठा से निभाना चाहिए, क्योंकि वह हमारी सेवा को देखता है और उसे आशीष देता है।
इस प्रकार, दाऊद ने न केवल मन्दिर की भौतिक व्यवस्था की, बल्कि उसने उन विश्वासयोग्य सेवकों को भी तैयार किया जो परमेश्वर के कार्य को आगे बढ़ाएँगे। यह हमें याद दिलाता है कि परमेश्वर की योजना में हर एक व्यक्ति का महत्व है, और उसकी आज्ञाकारिता में ही सच्ची सफलता निहित है।