अविश्वासियों के बीच धर्मी की आशा (Note: The title is within the 100-character limit, symbols and quotes are removed, and it captures the essence of the story.)
**भजन संहिता 14 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**
**शीर्षक: “अविश्वासियों के बीच एक धर्मी की आशा”**
प्राचीन काल में यरूशलेम से दूर एक छोटे से गाँव में अविश्वास और अधर्म का बोलबाला था। वहाँ के लोग परमेश्वर के अस्तित्व को नकारते थे और अपने हृदय में बार-बार यही कहते थे, *”कोई परमेश्वर नहीं है!”* उनका जीवन पाप और स्वार्थ से भरा हुआ था। वे अन्याय करते, निर्दोषों का शोषण करते, और दीन-दुखियों की पुकार को अनसुना कर देते थे। उनके कर्म भ्रष्ट थे, और उनमें से कोई भी भला नहीं था—एक भी नहीं।
उसी गाँव में एक वृद्ध व्यक्ति रहता था जिसका नाम एलीशाफ़ था। वह परमेश्वर में अटूट विश्वास रखता था और उसकी व्यवस्था पर चलने का प्रयास करता था। जब वह अपने आसपास के लोगों की दुष्टता देखता, तो उसका हृदय दुख से भर जाता। वह अक्सर परमेश्वर से प्रार्थना करता, *”हे प्रभु, क्या तू देख रहा है कि ये लोग कैसे तेरे नाम को ठुकराते हैं? क्या तू उनके अत्याचारों को सहन करेगा?”*
एक दिन, जब एलीशाफ़ अपने खेत में काम कर रहा था, उसने देखा कि गाँव के कुछ युवक एक अनाथ विधवा के घर से जबरदस्ती उसकी अंतिम बची हुई बकरी छीनकर ले जा रहे थे। विधवा रो-रोकर उनसे विनती कर रही थी, परन्तु उन पर कोई दया नहीं आई। एलीशाफ़ ने यह देखा तो उसका धैर्य जवाब दे गया। वह उनके पास गया और बोला, *”भाइयो, यह अन्याय है! परमेश्वर ने हमें दया और न्याय का मार्ग दिखाया है। क्या तुम्हारे हृदय में भय परमेश्वर का नहीं है?”*
लेकिन उन युवकों ने उसकी बातों का मजाक उड़ाया। एक ने ठठाकर हँसते हुए कहा, *”बूढ़े, तुम्हारा परमेश्वर कहाँ है? हमने तो कभी उसे देखा नहीं। हम जो चाहें, वही करेंगे!”* और वे उस बकरी को लेकर चले गए।
एलीशाफ़ निराश होकर अपने घर लौटा। वह जानता था कि परमेश्वर सब कुछ देख रहा है, परन्तु कभी-कभी उसे लगता था कि ऐसा प्रतीत होता है मानो परमेश्वर ने अपनी दृष्टि मनुष्यों से हटा ली हो। उस रात, जब वह प्रार्थना कर रहा था, तो उसके मन में भजन संहिता 14 की वचनें गूँज उठीं—
*”मूर्ख अपने हृदय में कहता है, ‘कोई परमेश्वर नहीं है।’ वे भ्रष्ट हैं, उनके कार्य घिनौने हैं; कोई भी भला नहीं करता। परमेश्वर स्वर्ग से मनुष्यों की ओर देखता है, यह जानने के लिए कि क्या कोई बुद्धिमान है, क्या कोई परमेश्वर को ढूँढ़ता है। सब के सब विचलित हो गए हैं, सब एक साथ भ्रष्ट हो गए हैं; कोई भी भला नहीं करता, एक भी नहीं!”*
एलीशाफ़ ने आँसू बहाते हुए कहा, *”हे प्रभु, तू जानता है कि ये लोग कितने अधर्मी हैं। कब तक तू चुप रहेगा? कब तक दुष्टों का अहंकार बढ़ता रहेगा?”*
उसी रात, परमेश्वर ने एलीशाफ़ को एक स्वप्न दिया। उसने देखा कि स्वर्ग से एक प्रकाश उतरा और एक दिव्य स्वर उससे बोला, *”मेरे सेवक, डर मत। मैंने देख लिया है कि दुष्ट क्या कर रहे हैं। मैं न्याय करूँगा, परन्तु मेरी योजना समय पर पूरी होगी। धैर्य रख, क्योंकि धर्मी का उद्धार मेरे हाथ में है।”*
अगले दिन, जब एलीशाफ़ उठा, तो उसका हृदय शांति से भरा हुआ था। वह जानता था कि परमेश्वर उसके साथ है। कुछ ही दिनों बाद, एक भयानक आँधी आई और गाँव के अधर्मी लोगों की फसलें नष्ट हो गईं। जिन युवकों ने विधवा की बकरी छीनी थी, वे एक दुर्घटना में घायल हो गए। गाँव के लोग भयभीत हो उठे और अपने कर्मों पर पश्चाताप करने लगे।
एलीशाफ़ ने उन्हें समझाया, *”परमेश्वर ने तुम्हारे पापों को देख लिया है। यदि तुम सच्चे मन से पश्चाताप करोगे, तो वह तुम्हें क्षमा करेगा।”* कुछ लोगों ने उसकी बात मानी और परमेश्वर की ओर लौट आए, जबकि अन्य अपने अहंकार में डटे रहे।
इस घटना के बाद, एलीशाफ़ ने देखा कि भजन संहिता 14 का अंतिम वचन सच हो रहा था— *”क्या दुष्टों का ज्ञान रखनेवालों को दबानेवालों ने मेरी प्रजा को नहीं खाया? और यहोवा ही उनका शरणस्थान ठहरा!”*
एलीशाफ़ ने समझ लिया कि परमेश्वर सदैव धर्मी की सहायता करता है। भले ही संसार में अधर्म बढ़ता दिखे, परन्तु अंत में, परमेश्वर का न्याय सर्वोपरि होगा। और इस प्रकार, उसने अपना विश्वास बनाए रखा, यह जानते हुए कि परमेश्वर उन सभी की सुनता है जो उसे पुकारते हैं।
**समाप्त।**