**कहानी: बुद्धिमान राजा और उसकी प्रजा**
एक समय की बात है, जब यहूदा के पहाड़ियों के बीच एक छोटा-सा राज्य था, जिस पर राजा योशिय्याह राज करता था। वह एक धर्मनिष्ठ और बुद्धिमान राजा था, जो परमेश्वर की आज्ञाओं पर चलता था। उसके राज्य में शांति और समृद्धि थी, क्योंकि वह नीतिवचन 16 के सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारता था।
एक दिन, राजा योशिय्याह ने अपने दरबार में सभा बुलाई। उसके सामने तीन व्यक्ति खड़े थे—एक योद्धा, एक व्यापारी और एक विद्वान पुरोहित। राजा ने उनसे पूछा, “तुम लोगों के अनुसार, एक सफल राज्य का रहस्य क्या है?”
योद्धा बोला, “महाराज, शक्ति ही सफलता की कुंजी है। यदि हमारी सेना मजबूत होगी, तो कोई भी हमें हरा नहीं सकता।”
व्यापारी ने कहा, “नहीं, महाराज! धन ही सब कुछ है। यदि राज्य के पास संपत्ति होगी, तो हम सभी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।”
पुरोहित ने धीरे से कहा, “हे राजन, परमेश्वर का वचन कहता है—’मनुष्य तो अपने मन की गति बनाता है, परन्तु उसके कदमों का निर्देशन यहोवा ही करता है।’ (नीतिवचन 16:9)। सच्ची सफलता परमेश्वर की इच्छा में है।”
राजा योशिय्याह मुस्कुराया और बोला, “तुम सबने अच्छी बातें कही हैं, परन्तु पुरोहित का उत्तर सही है। हमारी योजनाएँ हम बना सकते हैं, परन्तु अंतिम निर्णय परमेश्वर के हाथ में है।”
कुछ दिनों बाद, राज्य में एक भयंकर अकाल पड़ा। खेत सूख गए, नदियाँ सूखने लगीं, और लोग भूख से तड़पने लगे। योद्धा ने सुझाव दिया कि पड़ोसी राज्य पर हमला करके अनाज लूट लिया जाए। व्यापारी ने कहा कि वह दूर देशों से अनाज खरीदेगा, परन्तु उसके लिए बहुत धन चाहिए। पुरोहित ने राजा से कहा, “महाराज, परमेश्वर से प्रार्थना करें, क्योंकि ‘यहोवा के भय से बुराई से बचा जाता है’ (नीतिवचन 16:6)।”
राजा ने पुरोहित की बात मानी और पूरे राज्य के साथ उपवास और प्रार्थना की। उसने लोगों से कहा, “धैर्य रखो, क्योंकि ‘धीरज वीरता से उत्तम है’ (नीतिवचन 16:32)।”
कुछ ही दिनों में, आकाश में बादल छा गए और मूसलाधार बारिश हुई। खेत हरे-भरे हो गए, और राज्य में फिर से समृद्धि लौट आई। लोगों ने समझा कि सच्ची विजय परमेश्वर पर भरोसा रखने में है।
राजा योशिय्याह ने अपने लोगों को समझाया, “हे प्रजाजनों, याद रखो—’बुद्धि से सोने से भी अधिक मूल्यवान है’ (नीतिवचन 16:16)। हमारी समझ और विवेक ही हमें सही मार्ग दिखाते हैं।”
उस दिन के बाद, राज्य के लोगों ने न केवल अपने कामों में परिश्रम किया, बल्कि परमेश्वर की इच्छा को सर्वोपरि रखा। और इस प्रकार, वह राज्य आशीषों से भर गया, क्योंकि उन्होंने नीतिवचन 16 की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतार लिया था।
**समाप्त।**