पवित्र बाइबल

यहेजकेल का दिव्य दर्शन और भविष्यद्वक्ता की नियुक्ति

**यहेजकेल 2: एक भविष्यद्वक्ता की नियुक्ति**

उस समय की बात है जब बाबुल के बंधुआई के दिनों में यहूदा के लोग परमेश्वर के कोप के कारण दूर देश में पीड़ित हो रहे थे। यहेजकेल, जो एक याजक था, वह केबार नदी के किनारे बसी हुई बस्ती में रहता था। एक दिन, जब वह नदी के किनारे बैठा हुआ था, तो अचानक आकाश खुल गया और उसने परमेश्वर के दर्शन पाए। उसने देखा कि एक अग्निमय रथ, जिसमें चार अद्भुत जीव जुते हुए थे, आकाश से उतरा। उनके पंखों की आवाज़ गर्जन के समान थी, और उनके चेहरे मनुष्य, सिंह, बैल और उकाब के समान थे। रथ के ऊपर एक विशाल नीलमणि के समान सिंहासन था, और उस पर एक मनुष्य के समान प्रतिभा विराजमान थी—जो स्वयं परमेश्वर की महिमा का प्रतिबिंब थी।

यहेजकेल मुंह के बल गिर पड़ा, क्योंकि उसने जो कुछ देखा, वह अत्यंत भयानक और महिमामय था। तभी उसने एक शब्द सुना—एक ऐसी आवाज़ जो गर्जन के समान प्रचंड थी, फिर भी हृदय को छू लेने वाली थी।

**”हे मनुष्य के सन्तान, खड़ा हो!”**

यहेजकेल काँपते हुए उठा। परमेश्वर की आवाज़ ने उससे कहा, **”मैं तुझे इस्राएल के लोगों के पास भेजता हूँ, वे एक ऐसा विद्रोही कुल हैं जिसने मेरे विरुद्ध पाप किया है। उनके पूर्वजों ने मेरी आज्ञाओं को तोड़ा, और वे आज भी उसी मार्ग पर चल रहे हैं। वे कठोर मन वाले और हठीले हैं, फिर भी तू उन्हें मेरा वचन सुनाएगा—चाहे वे सुनें या न सुनें।”**

यहेजकेल के हृदय में भय और आश्चर्य भर गया। वह जानता था कि यहूदा के लोगों ने परमेश्वर की उपेक्षा की थी, मूर्तियों की पूजा की थी, और अन्याय से भर गए थे। उन्होंने यरूशलेम को पाप का अड्डा बना दिया था, और अब परमेश्वर का न्याय उन पर आने वाला था। फिर भी, परमेश्वर ने उन्हें छोड़ा नहीं था—वह उन्हें चेतावनी देने के लिए एक भविष्यद्वक्ता भेज रहा था।

परमेश्वर ने यहेजकेल से आगे कहा, **”हे मनुष्य के सन्तान, उनके डर से मत घबरा, न ही उनके मुखों से विचलित हो, क्योंकि वे काँटों और कंटीली झाड़ियों के बीच रहते हैं, और तू बिच्छुओं के बीच बैठा है। फिर भी, तू उनके सम्मुख मेरे वचनों को बोलना, चाहे वे विद्रोही ही क्यों न हों।”**

इतना कहकर, परमेश्वर ने यहेजकेल की ओर एक हाथ बढ़ाया, और उसके मुंह में एक पुस्तक का टुकड़ा रख दिया। जब यहेजकेल ने उसे खाया, तो वह उसके मुंह में मधु के समान मीठा लगा, किन्तु उसके पेट में कड़वाहट भर गई। यह इस बात का प्रतीक था कि परमेश्वर का वचन मन को प्रिय लग सकता है, परन्तु जब वह न्याय और पश्चाताप की बात करता है, तो वह हृदय को झकझोर देता है।

अंत में, परमेश्वर ने यहेजकेल से कहा, **”जा, और इस्राएल के घराने के पास खड़ा हो। मेरे वचनों को उन तक पहुँचा, चाहे वे तेरी बात मानें या न मानें। क्योंकि वे विद्रोही हैं, फिर भी वे जान लेंगे कि उनके बीच एक भविष्यद्वक्ता खड़ा हुआ था।”**

यहेजकेल ने अपने हृदय में परमेश्वर की आज्ञा को ग्रहण किया। वह जानता था कि उसका मार्ग कठिन होगा, क्योंकि लोग उसकी बात नहीं सुनेंगे, परन्तु फिर भी उसे परमेश्वर की आवाज़ को दबाना नहीं था। वह उठा, और उसने अपने कंधों पर भविष्यद्वाणी का भार उठा लिया—एक ऐसा भार जो उसे अकेले ही वहन करना था, किन्तु परमेश्वर की शक्ति उसके साथ थी।

और इस प्रकार, यहेजकेल ने परमेश्वर के दर्शन को अपने हृदय में संजोया, और उसने विद्रोही इस्राएल के लोगों के बीच जाने के लिए अपने कदम बढ़ाए। उसकी आवाज़ शायद कईयों के लिए अनसुनी रह जाएगी, परन्तु परमेश्वर का वचन कभी व्यर्थ नहीं लौटता।

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