**यीशु का चमत्कार: पाँच रोटियों और दो मछलियों से पाँच हज़ार को भोजन**
उस समय यीशु ने हेरोदेस के बारे में सुना कि उसने यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर कटवा दिया है। यह सुनकर वह दुःखी हुआ और एक नाव पर चढ़कर अकेले ही एक निर्जन स्थान में जाने का निश्चय किया। वहाँ वह प्रार्थना करना चाहता था और अपने पिता के साथ समय बिताना चाहता था। परन्तु लोगों ने जब यह जान लिया कि यीशु कहाँ जा रहा है, तो वे नगर-नगर से पैदल चलकर उसके पीछे हो लिए।
जब यीशु नाव से उतरकर किनारे पर आया, तो उसने देखा कि एक विशाल भीड़ उसकी प्रतीक्षा कर रही है। उनके चेहरों पर थकान थी, परन्तु आँखों में आशा की चमक थी। यीशु का हृदय द्रवित हो गया। वह उनके पास गया और उन्हें परमेश्वर के राज्य के बारे में शिक्षा देने लगा। वह उन्हें पापों से मुक्ति का मार्ग बताता रहा, और लोग मन्त्रमुग्ध होकर उसकी बातें सुनते रहे।
दिन ढलने लगा, और सूर्य पश्चिम की ओर झुक गया। चेलों ने यीशु के पास आकर कहा, “यह स्थान सुनसान है, और अब समय बीत चुका है। इन भीड़ को विदा कर दो, ताकि वे गाँवों में जाकर अपने लिए भोजन खरीद सकें।”
यीशु ने उनसे कहा, “उन्हें जाने की आवश्यकता नहीं है। तुम ही उन्हें खाने को दो।”
चेले चकित रह गए। फिलिप्पुस ने कहा, “हमारे पास तो केवल दो सौ दीनार का रोटी भी नहीं है, जो इतने लोगों के लिए पर्याप्त हो!”
तभी अन्द्रियास ने एक लड़के को देखा, जिसके पास पाँच जौ की रोटियाँ और दो छोटी मछलियाँ थीं। उसने यीशु से कहा, “यहाँ एक लड़का है जिसके पास इतना थोड़ा सा भोजन है, परन्तु इतने लोगों के लिए यह क्या है?”
यीशु ने मुस्कुराते हुए कहा, “उसे मेरे पास ले आओ।”
फिर उसने लोगों को हरी घास पर पंक्तियों में बैठने का आदेश दिया। लोग समूहों में बैठ गए, कुछ सौ-सौ, कुछ पचास-पचास। यीशु ने उन पाँच रोटियों और दो मछलियों को लिया, स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद की प्रार्थना की, और उन्हें तोड़कर चेलों को देने लगा। चेले भीड़ में बाँटने लगे।
एक अद्भुत चमत्कार हुआ। जैसे-जैसे चेले भोजन बाँटते गए, रोटियाँ और मछलियाँ कम नहीं हुईं। सबने खाया, सबके पेट भरे, और जब वे संतुष्ट हो गए, तो यीशु ने चेलों से कहा, “बचे हुए टुकड़े बटोर लो, ताकि कुछ बर्बाद न हो।”
चेलों ने बारह टोकरियाँ भरकर बचा हुआ भोजन एकत्र किया। उस दिन लगभग पाँच हज़ार पुरुषों ने भोजन किया, इसके अलावा स्त्रियाँ और बच्चे भी थे।
लोग यीशु की सामर्थ्य देखकर आश्चर्यचकित हो गए और कहने लगे, “निश्चय ही यह वही भविष्यद्वक्ता है जो जगत में आनेवाला था!”
परन्तु यीशु जानता था कि वे उसे राजा बनाना चाहते हैं, इसलिए उसने चेलों से कहा कि वे नाव पर चढ़कर उससे आगे जाएँ, जब तक कि वह भीड़ को विदा न कर दे।
जब सब लोग चले गए, तो यीशु अकेले पहाड़ पर प्रार्थना करने गया। रात हो चुकी थी, और वहाँ केवल उसकी आवाज़ ही सुनाई दे रही थी, जो स्वर्गीय पिता से बातें कर रहा था।
इस प्रकार, यीशु ने न केवल लोगों के शरीर की भूख मिटाई, बल्कि उनके हृदयों को भी परमेश्वर के प्रेम से भर दिया। यह चमत्कार केवल भोजन का ही नहीं, बल्कि यीशु की दिव्य सामर्थ्य और करुणा का प्रमाण था, जो आज भी हमें सिखाता है कि परमेश्वर हमारी हर आवश्यकता को जानता है और पूरा करता है।