**योना का क्रोध और परमेश्वर की दया**
योना नीनवे के लोगों को परमेश्वर का संदेश सुना चुका था, और उस महान नगर के लोगों ने पश्चाताप किया था। परमेश्वर ने उनकी सुन ली और उन्हें नष्ट करने का निर्णय बदल दिया। यह सब हो जाने के बाद भी, योना का हृदय क्रोध से भरा हुआ था। वह नगर से बाहर निकल गया और पूर्व दिशा में एक स्थान पर बैठ गया। वहाँ उसने एक छोटी सी झोपड़ी बनाई और उसके नीचे बैठकर देखने लगा कि क्या नीनवे का विनाश होगा।
उसका मन अशांत था। वह परमेश्वर से बहस करने लगा, “हे यहोवा, क्या यही वह बात नहीं है, जो मैं अपने देश में रहते हुए ही कहता था? इसीलिए मैं तर्शीश भाग गया था, क्योंकि मैं जानता था कि तू दयालु और अनुग्रहकारी परमेश्वर है, विलम्ब से क्रोध करने वाला और अति करुणामय। तू उन लोगों को दण्ड देने से पछताता है जो बुराई करते हैं। अब, हे यहोवा, मेरा प्राण ले ले, क्योंकि मेरे लिए मरना जीवित रहने से अच्छा है।”
योना का हृदय इतना कठोर हो गया था कि वह नहीं चाहता था कि नीनवे के लोगों को क्षमा मिले। वह चाहता था कि परमेश्वर उन पर अपना न्याय लाए। उसकी आँखों में आँसू नहीं थे, बल्कि क्रोध की ज्वाला धधक रही थी।
तब परमेश्वर ने योना को सिखाने के लिए एक योजना बनाई। वहाँ एक रेंड़ का पौधा उग आया, जो एक ही रात में बढ़कर योना के सिर पर छाया करने लगा। योना को उस पौधे से बहुत आनन्द हुआ। उसकी पत्तियाँ हरी-भरी थीं, और उसकी छाया में बैठकर वह धूप की तेज़ गर्मी से बच सकता था। अगले दिन, जब सूरज निकला, तो परमेश्वर ने एक कीड़े को भेजा, जिसने रेंड़ के पौधे को काट दिया, और वह सूखकर मर गया।
फिर परमेश्वर ने पूर्वी हवा चलाई, जो तेज़ और गर्म थी। सूरज की किरणें योना के सिर पर पड़ीं, और वह बेहोश होने लगा। वह अपने प्राण से व्याकुल होकर बोला, “मेरे लिए मरना ही अच्छा है!”
तब परमेश्वर ने योना से पूछा, “क्या तू इस रेंड़ के पौधे के लिये क्रोधित है, जिस पर तू ने कोई परिश्रम नहीं किया, न ही उसे बढ़ाया? जो एक रात में हुआ और एक रात में नष्ट हो गया? फिर मैं नीनवे उस बड़े नगर पर दया क्यों न करूँ, जिसमें एक लाख बीस हज़ार से अधिक मनुष्य हैं, जो अपने दाएँ-बाएँ का भेद नहीं जानते, और बहुत से पशु भी हैं?”
योना चुप रह गया। परमेश्वर के शब्द उसके हृदय में गूँज रहे थे। वह समझ गया कि परमेश्वर की दया सभी पर बरसती है—न केवल इस्राएल पर, बल्कि उन लोगों पर भी जिन्हें वह पापी समझता था। परमेश्वर की प्रेममयी योजना सभी को समाहित करती है।
योना ने अपनी गलती को महसूस किया। उसका क्रोध शांत हुआ, और उसने परमेश्वर की महानता को स्वीकार किया। उसकी आँखें खुल गईं कि परमेश्वर का प्रेम सीमाओं से परे है, और उसकी इच्छा सभी को उद्धार की ओर ले जाना है।
इस प्रकार, योना ने सीखा कि मनुष्य का क्रोध न्याय नहीं लाता, परन्तु परमेश्वर की दया ही सच्चा मार्ग है।