ऋणमुक्ति का वर्ष: परमेश्वर की दया और आशीष (Note: The title is 59 characters long, within the 100-character limit, and free of symbols/asterisks/quotes as requested.)
**कहानी: “ऋणमुक्ति का वर्ष”**
**वर्षों पहले, मूसा के नेतृत्व में इस्राएल के लोग कनान देश की ओर बढ़ रहे थे।** रेगिस्तान की धूप तेज थी, और लोगों के चेहरे पर थकान के साथ-साथ आशा की चमक भी थी। वे जानते थे कि यहोवा उनके साथ है और उन्हें एक नए घर की ओर ले जा रहा है। एक दिन, मूसा ने सभा बुलाई और लोगों को परमेश्वर के नियम सुनाने लगे।
**”सुनो, हे इस्राएल!”** मूसा ने गंभीर स्वर में कहा, **”यहोवा ने हमें आज्ञा दी है कि हर सातवें वर्ष को ‘ऋणमुक्ति का वर्ष’ घोषित किया जाए।”** लोगों ने ध्यान से सुना। उनमें से कुछ के मन में सवाल उठा—यह कैसे संभव होगा?
**मूसा ने समझाया,** **”जब कोई भाई तुमसे उधार माँगे, तो उसे मना मत करो। यदि वह गरीब है और ऋण चुकाने में असमर्थ हो, तो सातवें वर्ष में उसका ऋण माफ कर देना। यहोवा की आज्ञा है कि हम एक-दूसरे पर दया करें, क्योंकि हम भी एक समय मिस्र में दास थे, और परमेश्वर ने हमें छुड़ाया।”**
लोगों में फुसफुसाहट हुई। कुछ लोगों को डर था कि यदि वे ऋण माफ कर देंगे, तो उन्हें नुकसान होगा। **तब मूसा ने उन्हें समझाया,** **”यहोवा ने वादा किया है कि यदि तुम उसकी आज्ञा मानोगे, तो वह तुम्हें आशीष देगा। तुम्हारी भूमि उपजाऊ रहेगी, और तुम्हारे पास कभी अभाव नहीं होगा।”**
**कुछ समय बाद, जब इस्राएली कनान देश में बस गए,** तो उनमें से एक धनी व्यक्ति था—**एलियाब।** उसके पास बहुत सी भूमि और धन था। उसके गाँव में ही एक गरीब परिवार रहता था—**नाथन और उसकी पत्नी रूथ।** एक साल अकाल पड़ा, और नाथन को एलियाब से अनाज उधार लेना पड़ा।
**समय बीतता गया,** नाथन ने कड़ी मेहनत की, लेकिन फसल अच्छी नहीं हुई। वह ऋण नहीं चुका पाया। जब ऋणमुक्ति का वर्ष नजदीक आया, तो नाथन के मन में आशा जगी। **लेकिन एलियाब ने सोचा,** *”यदि मैं इस ऋण को माफ कर दूँगा, तो मेरा क्या होगा?”*
**एक रात, एलियाब को स्वप्न आया।** उसने देखा कि यहोवा उससे पूछ रहा है, **”तुमने मेरी आज्ञा क्यों नहीं मानी? क्या तुम्हें विश्वास नहीं कि मैं तुम्हारी सभी आवश्यकताओं को पूरा करूँगा?”** एलियाब जाग उठा, और उसका हृदय बदल गया।
**अगले दिन, उसने नाथन को बुलाया और कहा,** **”भाई, यहोवा ने हमें आज्ञा दी है कि हम एक-दूसरे के ऋण माफ करें। इसलिए मैं तुम्हारा सारा ऋण माफ करता हूँ।”** नाथन की आँखों में आँसू आ गए। उसने यहोवा का धन्यवाद किया।
**कुछ ही समय बाद, एलियाब के खेतों में इतनी अधिक फसल हुई कि उसके भंडार भर गए।** यहोवा ने उसे आशीष दी, क्योंकि उसने उसकी आज्ञा मानी थी। गाँव के लोगों ने देखा कि **जो परमेश्वर के नियमों का पालन करता है, वह कभी निराश नहीं होता।**
**और इस तरह, इस्राएल के लोगों ने सीखा कि परमेश्वर की आज्ञाएँ उनके हित के लिए हैं।** वे उदारता और दया के मार्ग पर चले, क्योंकि यहोवा स्वयं उनका रक्षक और प्रदाता था।
**”इसलिए तू अपने हृदय को कठोर न करना, और न अपने निर्धन भाई के प्रति हाथ बंद करना। तू उसे खुले हाथ से दे, और जो कुछ उसको आवश्यक हो, वह उसे अवश्य दे।” (व्यवस्थाविवरण 15:7-8)**