पवित्र बाइबल

नीहेम्याह और यरूशलेम की पुनर्बसाहट की गाथा

**नीहेम्याह 11: यरूशलेम की पुनर्बसाहट**

उन दिनों की बात है जब नीहेम्याह ने यरूशलेम की दीवारों को फिर से बनवा लिया था। परन्तु नगर अभी भी सुनसान था। बहुत से इस्राएली अपने गाँवों और खेतों में रहते थे, क्योंकि यरूशलेम में बसने का साहस कम ही लोग कर पाते थे। वह नगर, जो कभी दाऊद और सुलैमान के समय में जीवंत और महान था, अब खंडहरों के बीच टिमटिमा रहा था।

### **यरूशलेम में बसने की योजना**

एक दिन, नीहेम्याह ने प्रजा के अगुवों, याजकों और लेवियों को इकट्ठा किया। उन्होंने कहा, “हमारे पूर्वजों का यह पवित्र नगर खाली पड़ा है। यहाँ परमेश्वर का मन्दिर है, और यही वह स्थान है जहाँ से उसकी महिमा फैलनी चाहिए। हमें यरूशलेम को फिर से बसाना होगा।”

लोगों ने सहमति में सिर हिलाया, परन्तु सभी के मन में डर था। यरूशलेम में रहना खतरनाक था—शत्रु हमेशा घात लगाए बैठे थे, और नगर की रक्षा करना आसान नहीं था। तब नीहेम्याह ने एक योजना बनाई।

“हम दस में से एक व्यक्ति को चुनेंगे जो यरूशलेम में बसने को तैयार हो,” उन्होंने कहा। “शेष नौ लोग अपने गाँवों में रहकर खेती और व्यापार करते रहेंगे, परन्तु यरूशलेम की जिम्मेदारी सभी की होगी।”

### **पवित्र चिट्ठी डाली जाती है**

लोगों ने इस योजना को स्वीकार किया। उन्होंने चिट्ठियाँ डालकर निर्णय लिया कि कौन यरूशलेम में बसेगा। यह एक पवित्र भाग्य-निर्णय था, जिसमें परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने का प्रयास किया गया। जिनके नाम निकले, वे अपने परिवारों के साथ नगर में आकर बस गए।

### **यरूशलेम के नए निवासी**

यहूदा के गोत्र के वीर पुरुष, याजक, लेवी और नथिनीम (मन्दिर के सेवक) सभी ने यरूशलेम को अपना घर बनाया। उनमें से कुछ प्रमुख नाम थे:

– **यहूदा के वंशज**: अतायाह, उज्जिय्याह, जकर्याह—ये सभी बहादुर योद्धा थे जो नगर की रक्षा के लिए तैयार थे।
– **बिन्यामीन के वंशज**: सल्लू, गब्बाई, सल्लाई—ये लोग नगर के उत्तरी भाग में बसे, जहाँ उनके पूर्वजों की भूमि थी।
– **याजक**: यदूयाह, योयारीब, याकीन—ये मन्दिर की सेवा में नियुक्त थे और परमेश्वर के सामने धूप और बलिदान चढ़ाते थे।
– **लेवी**: शमायाह, अब्दा, मत्तन्याह—ये भजन गाते और परमेश्वर की स्तुति करते थे।

### **नगर का नया जीवन**

धीरे-धीरे यरूशलेम में जीवन लौटने लगा। बच्चों की हँसी गलियों में गूँजने लगी, बाजारों में व्यापारियों की आवाज़ें सुनाई देने लगीं, और मन्दिर से नित्य भजनों की ध्वनि उठती थी। लोगों ने अपने घरों को सजाया, दीवारों की मरम्मत की, और नगर के फाटकों पर पहरेदार तैनात किए।

नीहेम्याह प्रतिदिन नगर का निरीक्षण करते, लोगों का हौसला बढ़ाते। वे जानते थे कि यरूशलेम केवल पत्थरों का नगर नहीं, बल्कि परमेश्वर की महिमा का केन्द्र है।

### **गाँवों और खेतों का महत्व**

जो लोग यरूशलेम में नहीं बसे, वे भी अपनी भूमिका निभा रहे थे। वे अनाज, फल और पशुधन लाकर नगर की आपूर्ति करते थे। उनके बिना यरूशलेम का जीवन असंभव था। नीहेम्याह ने सभी को याद दिलाया, “हम सब एक देह के अंग हैं। चाहे कोई नगर में रहे या गाँव में, सभी का कार्य महत्वपूर्ण है।”

### **परमेश्वर की आशीष**

जब लोगों ने आज्ञाकारिता और एकता दिखाई, तो परमेश्वर ने उन्हें आशीष दी। शत्रुओं के हमले रुक गए, भूमि उपजाऊ हो गई, और लोगों के हृदय में शांति छा गई। यरूशलेम फिर से जीवंत हो उठा, न केवल पत्थरों और दीवारों से, बल्कि विश्वास और उत्साह से भरपूर लोगों के कारण।

नीहेम्याह ने प्रजा को समझाया, “यह परमेश्वर का ही काम है। हमने केवल उसकी इच्छा पूरी की है।”

और इस प्रकार, इस्राएल ने एक बार फिर अपनी धरोहर को सँभाला, यरूशलेम को पुनर्जीवित किया, और परमेश्वर की महिमा के लिए अपने जीवन समर्पित कर दिए।

**समाप्त।**

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