पवित्र बाइबल

विनाश से विजय तक: भजन संहिता 74 की प्रेरणादायक कहानी (कुल अक्षर: 74)

**भजन संहिता 74 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**

**अध्याय 1: विनाश का दिन**

उस दिन आकाश धूसर हो गया था, मानो परमेश्वर का क्रोध बादलों में छाया हुआ था। यरूशलेम की पवित्र नगरी धूल और धुएं में लिपटी हुई थी। शत्रु की सेनाएँ, जिनके चेहरे पर कोई दया नहीं थी, नगर के फाटकों को तोड़कर भीतर घुस आई थीं। उनकी तलवारें चमक रही थीं, और उनकी आँखों में लालच और हिंसा की ज्वाला धधक रही थी।

परमेश्वर के मन्दिर में, जहाँ कभी भजनों की मधुर ध्वनि गूँजती थी, अब केवल चीखें और विध्वंस की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं। शत्रुओं ने पवित्र स्थान को अपवित्र कर दिया था। उन्होंने वेदी को तोड़ डाला, पवित्र वस्तुओं को लूट लिया, और यहाँ तक कि परमेश्वर के नाम को भी अपमानित किया। आग की लपटें मन्दिर के काष्ठ-स्तम्भों को निगल रही थीं, और धुआँ आकाश में उठ रहा था, मानो स्वयं सृष्टि रो रही हो।

**अध्याय 2: यादों का दर्द**

असाफ, परमेश्वर का भक्त, उन मलबों के बीच खड़ा था, उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। उसने अपने हाथ उठाए और चिल्लाया, *”हे परमेश्वर, तू हमें कब तक भूला रहेगा? तेरा क्रोध कब तक भेड़ों की तरह हमें निगलता रहेगा?”* उसके मन में अतीत की यादें ताज़ा हो गईं—वे दिन जब परमेश्वर ने लाल सागर को फाड़ दिया था, जब उसने दानिय्येल को सिंहों की माँद से बचाया था, जब उसने दाऊद को गोलियत पर विजय दिलाई थी। क्या वही परमेश्वर अब चुप था?

चारों ओर बिखरे हुए मलबे में उसे परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ याद आ रही थीं। *”यह मन्दिर तेरी महिमा का स्थान था, हे प्रभु! यहाँ तेरा नाम सदैव के लिए बसता था। क्या अब शत्रु तेरे नाम का उपहास करेंगे?”*

**अध्याय 3: संघर्ष और आशा**

असाफ का हृदय टूट रहा था, परन्तु उसकी आत्मा अभी भी विश्वास से भरी हुई थी। उसने देखा कि कैसे शत्रुओं ने परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को चुनौती दी थी। वे चिल्ला रहे थे, *”अब कोई उन्हें बचाने वाला नहीं है!”* परन्तु असाफ ने अपनी आँखें आकाश की ओर उठाईं और प्रार्थना की:

*”हे सृष्टिकर्ता, तूने समुद्र को विभाजित किया, तूने अग्नि में से बोलने वाले सर्प को कुचला, तू ही है जो अंधकार में प्रकाश लाता है। क्या तू अब हमारी पुकार नहीं सुनेगा? हम तेरे ही हैं, हे प्रभु। हमें मत त्याग।”*

तभी, एक शक्तिशाली आवाज़ उसके हृदय में गूँजी, मानो परमेश्वर स्वयं उत्तर दे रहा हो: *”मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँ, और मैं न्याय करूँगा। शत्रु की हँसी अल्पकालिक है, परन्तु मेरी विजय अनन्तकाल तक रहेगी।”*

**अध्याय 4: विजय की प्रतिज्ञा**

असाफ ने अपने आँसू पोंछे और उसके चेहरे पर दृढ़ विश्वास झलकने लगा। उसे याद आया कि परमेश्वर ने सदैव अपने लोगों को नहीं त्यागा। वह उन दिनों को याद करने लगा जब परमेश्वर ने अब्राहम, मूसा और दाऊद के साथ अपनी वाचा पूरी की थी। *”यदि परमेश्वर ने अतीत में विश्वासयोग्य रहा है, तो वह आज भी विश्वासयोग्य है,”* उसने स्वयं से कहा।

और तभी, दूर से एक आशा की किरण दिखाई दी। बादल छंटने लगे, और सूर्य की एक किरण मन्दिर के मलबे पर पड़ी। असाफ ने इसे परमेश्वर का संकेत समझा। वह जानता था कि परमेश्वर का न्याय आएगा, और वह अपने लोगों को पुनर्स्थापित करेगा।

**अध्याय 5: नए सिरे से शुरुआत**

कुछ वर्षों बाद, यरूशलेम फिर से बसने लगा। लोगों ने मन्दिर के अवशेषों को साफ किया और नई नींव रखी। असाफ, अब वृद्ध हो चुका था, लेकिन उसकी आँखों में वही ज्वाल थी। उसने लोगों को एकत्रित किया और भजन गाया:

*”परमेश्वर हमारा शरणस्थान है, वही हमारा बल है। शत्रु हारेंगे, और परमेश्वर की महिमा सर्वोपरि होगी!”*

लोगों ने उसके साथ स्वर मिलाया, और उसी स्थान पर जहाँ कभी विध्वंस हुआ था, अब आशा और विश्वास का गीत गूँजने लगा। परमेश्वर ने अपने लोगों को छोड़ा नहीं था—वह उनके साथ था, और उसकी प्रतिज्ञाएँ सदैव सच्ची थीं।

**समापन**

भजन 74 की यह कहानी हमें सिखाती है कि संकट के समय में भी परमेश्वर पर भरोसा रखना चाहिए। वह हमारी पुकार सुनता है और अंत में न्याय करता है। जैसे असाफ ने विश्वास नहीं खोया, वैसे ही हमें भी अपने जीवन के अंधकारमय क्षणों में परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को याद रखना चाहिए। उसकी विजय निश्चित है, और उसकी महिमा सर्वोपरि होगी।

LEAVE A RESPONSE

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *