**भजन संहिता 106 पर आधारित एक विस्तृत कथा**
प्राचीन काल में, जब इस्राएल के लोग मिस्र की दासता से मुक्त हुए, तो परमेश्वर ने उनके लिए अद्भुत चमत्कार किए। उसने लाल सागर को फाड़ दिया, जिससे वे सूखी भूमि पर चलकर पार हो गए, परन्तु उनके पीछे आने वाले मिस्रियों को जल में डुबो दिया। उसकी महिमा की छाप उनके हृदयों पर अंकित होनी चाहिए थी, किन्तु शीघ्र ही वे भूल गए।
**विपत्ति में विश्वास की कमी**
जब वे मरुभूमि में पहुँचे, तो उनकी आत्माएँ भूख और प्यास से व्याकुल हो उठीं। उन्होंने परमेश्वर के विरुद्ध बड़बड़ाना शुरू कर दिया। “क्या हमें मिस्र में मरने के लिए बाहर निकाल लाया गया है?” वे चिल्लाए। किन्तु परमेश्वर धैर्यवान और दयालु था। उसने स्वर्ग से मन्ना बरसाया, जो प्रतिदिन सुबह-सुबह जमीन को ढक लेता था। उसने चट्टान से जल निकाला, जो उनकी प्यास बुझाने के लिए बह निकला। फिर भी, उनका हृदय कठोर बना रहा।
**मूर्तिपूजा का पाप**
जब मूसा परमेश्वर से व्यवस्था ग्रहण करने के लिए पर्वत पर चढ़ा, तो लोगों ने धैर्य खो दिया। हारून के पास जाकर उन्होंने कहा, “हमें एक देवता बना दो जो हमारा मार्गदर्शन करे, क्योंकि हम नहीं जानते कि मूसा का क्या हुआ।” हारून ने उनके दबाव में आकर सोने का एक बछड़ा ढाला। लोगों ने उसकी पूजा की, नाच-गाकर उसके सामने अपना सिर झुकाया। वे भूल गए कि यह वही परमेश्वर था जिसने उन्हें दासत्व से छुड़ाया था।
परमेश्वर का क्रोध भड़क उठा। उसने मूसा से कहा, “ये लोग शीघ्र ही अपने मार्ग से भटक गए हैं। मैं उन्हें नष्ट कर दूँगा।” किन्तु मूसा ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की और परमेश्वर ने अपना निर्णय बदल दिया। फिर भी, उनके पाप का दण्ड मिला—अनेक लोगों को तलवार से मार दिया गया।
**अविश्वास और दण्ड**
समय बीतता गया, परन्तु इस्राएल के लोग बार-बार परमेश्वर को ठुकराते रहे। जब वे कनान देश के निकट पहुँचे, तो उन्होंने भय के कारण प्रवेश करने से इनकार कर दिया। “यह देश तो हमें निगल जाएगा!” उन्होंने कहा। परमेश्वर ने उनकी अवज्ञा के कारण उन्हें चालीस वर्ष तक मरुभूमि में भटकने के लिए दण्डित किया, जब तक कि उस पीढ़ी के सभी लोग नष्ट नहीं हो गए।
**बाल-पूजा और अन्य पाप**
मरुभूमि में भी, उन्होंने अपने आप को विदेशी देवताओं के साथ मिला लिया। वे मोआब के लोगों के साथ घुल-मिल गए और बाल-पोर की पूजा करने लगे। परमेश्वर ने उनमें महामारी भेजी, जिससे अनेक मारे गए। तब पीनहास ने, जो एक धर्मनिष्ठ याजक था, इस पाप का विरोध किया और परमेश्वर का कोप शांत हुआ।
**अन्त में दया**
इतने सारे पापों के बावजूद, परमेश्वर ने उन्हें पूरी तरह नहीं छोड़ा। जब वे रोए और पश्चाताप किया, तो उसने उन पर दया की। उसने उनके शत्रुओं को उनके हाथों में कर दिया और उन्हें विजय दिलाई। वह उनका न्यायी था, किन्तु वह उनका उद्धारकर्ता भी बना रहा।
**सीख**
भजन 106 हमें याद दिलाता है कि मनुष्य बार-बार पाप करता है, किन्तु परमेश्वर की दया अनन्त है। उसकी स्तुति हो, क्योंकि वह हमारे अविश्वास के बावजूद, हमें बचाने के लिए तैयार रहता है। हमें उसकी आज्ञाओं का पालन करना चाहिए और उसकी महिमा को सदैव याद रखना चाहिए।
**आमीन।**