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मत्ती 7 विवेक और सच्ची भक्ति की शिक्षा

**मत्ती 7: विवेक और सच्ची भक्ति की कहानी**

उस दिन, यीशु गलील की झील के किनारे बैठे हुए थे। चारों ओर भीड़ उनकी शिक्षा सुनने के लिए एकत्र हो गई थी। हवा में शांति थी, और सूरज की किरणें पानी पर नाच रही थीं। यीशु ने अपनी आँखें उठाईं और लोगों को गहराई से देखते हुए बोले, “दूसरों का न्याय मत करो, ताकि तुम्हारा भी न्याय न किया जाए।”

उनकी आवाज़ में दया और सच्चाई थी। “क्योंकि जिस न्याय के साथ तुम दूसरों को दोष देते हो, उसी से तुम्हारा भी न्याय किया जाएगा। और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जाएगा।” भीड़ में कुछ लोग शर्म से सिर झुकाने लगे, क्योंकि वे अक्सर दूसरों की गलतियाँ निकालते थे।

यीशु ने एक दृष्टान्त सुनाया, “एक आदमी की आँख में किरकिरी दिखाई देती है, लेकिन वह अपनी आँख में लगे बड़े लट्ठे को नहीं देख पाता। पहले अपनी आँख से लट्ठा निकाल, फिर तू साफ़ देख पाएगा कि दूसरे की आँख से किरकिरी कैसे निकालनी है।” लोगों में हल्की हँसी फैल गई, क्योंकि उन्हें समझ आया कि यीशु किस बात की ओर इशारा कर रहे थे।

फिर यीशु ने गंभीर होकर कहा, “पवित्र वस्तु कुत्तों को मत दो, और अपने मोतियों को सूअरों के सामने न फेंको। वरना वे उन्हें पैरों तले रौंद डालेंगे और फिर मुड़कर तुम्हें ही फाड़ खाएँगे।” भीड़ में कुछ लोगों ने सोचा कि यह कठोर वचन है, पर यीशु का अर्थ था कि परमेश्वर के सत्य को उन लोगों के सामने व्यर्थ नहीं करना चाहिए जो उसकी कदर नहीं करते।

तब यीशु ने उन्हें प्रार्थना के बारे में बताया, “माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो, तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा। क्योंकि जो कोई माँगता है, उसे मिलता है; जो ढूँढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाता है।” उनके शब्दों में विश्वास था, और लोगों के हृदय आशा से भर उठे।

“तुम में से कौन ऐसा है कि जब उसका बेटा रोटी माँगे, तो उसे पत्थर दे? या जब मछली माँगे, तो उसे साँप थमा दे?” यीशु ने प्रश्न किया। भीड़ ने सिर हिलाकर इनकार किया। “अगर तुम, जो बुरे हो, अपने बच्चों को अच्छी चीजें देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता कितना अधिक अपने माँगने वालों को अच्छी चीजें देगा!”

फिर यीशु ने एक महत्वपूर्ण सिद्धांत बताया, “इसलिए जो कुछ तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो। यही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं का सार है।” लोगों ने ध्यान से सुना, क्योंकि यह सुनने में सरल लगता था, पर इसे जीवन में उतारना बहुत कठिन था।

अंत में, यीशु ने दो बनियों की कहानी सुनाई। “जो कोई मेरी बातें सुनकर उन पर चलता है, वह उस बुद्धिमान मनुष्य के समान है जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया। बारिश हुई, बाढ़ आई, आँधियाँ चलीं, पर वह घर नहीं गिरा, क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर थी।”

“पर जो मेरी बातें सुनकर उन पर नहीं चलता, वह उस मूर्ख मनुष्य के समान है जिसने अपना घर रेत पर बनाया। जब बारिश हुई, बाढ़ आई, और आँधियाँ चलीं, तो वह घर गिर गया, और उसका पतन भयानक हुआ।”

जब यीशु ने ये बातें पूरी कीं, तो भीड़ चकित रह गई, क्योंकि वह उनके जैसे धर्मशास्त्रियों की तरह नहीं, बल्कि अधिकार के साथ शिक्षा दे रहे थे। उनके शब्दों में सच्चाई थी, जो हृदय को छूती थी।

और इस प्रकार, यीशु ने उन्हें सिखाया कि न्याय करने से पहले अपने हृदय को शुद्ध करो, परमेश्वर से विश्वास के साथ माँगो, और उनकी बातों पर अमल करके मजबूत नींव रखो। यही सच्ची बुद्धिमानी है।

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