**भजन संहिता 149 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**
**शीर्षक: “प्रभु की प्रशंसा में नृत्य करने वाले लोग”**
एक समय की बात है, यरूशलेम के सुनहरे सूर्यास्त के समय, नगर के बीचों-बीच सिय्योन के पवित्र पर्वत पर एकत्र हुए लोगों के हृदय आनंद से भरे हुए थे। वह दिन विशेष था—प्रभु ने अपने लोगों को एक बड़ी विजय दी थी, और अब वे उसकी स्तुति में एकजुट होकर आनंद मना रहे थे। भजन गायकों के मधुर स्वर हवा में गूंज रहे थे, और लोगों के हाथों में डफ और वीणाएँ थीं। यह दृश्य ठीक वैसा ही था, जैसा भजन संहिता 149 में वर्णित किया गया है—”यहोवा के लिए एक नया गीत गाओ, उसकी स्तुति पवित्र लोगों की सभा में करो।”
उस भीड़ में एक युवक था—एलिय्याह। वह बचपन से ही प्रभु के प्रति गहरी भक्ति रखता था। जब से उसने होश संभाला था, उसके कानों में माता-पिता के भजनों की धुनें गूंजती थीं। आज, जब सारा इज़राइल प्रभु की महिमा गा रहा था, एलिय्याह का हृदय भी उत्साह से भर उठा। उसने अपने हाथों को आकाश की ओर उठाया और ऊँचे स्वर में गाने लगा—”यहोवा ही हमारा राजा है, उसने हमें अपनी प्रजा बनाया है!”
भीड़ में खड़ी एक वृद्ध महिला, राहेल, जो अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर थी, आँसू भरी आँखों से सब कुछ देख रही थी। उसने अपने लंबे जीवन में प्रभु के अनेक चमत्कार देखे थे—गुलामी से छुटकारा, शत्रुओं पर विजय, और अकाल के दिनों में अद्भुत प्रावधान। आज, जब उसने युवा पीढ़ी को उसी उत्साह से प्रभु की आराधना करते देखा, तो उसकी आत्मा ने भी जयजयकार किया। वह धीरे-धीरे नृत्य करने लगी, जैसे दाऊद ने कभी वाचा के सन्दूक के सामने किया था।
तभी भजन गायकों का मुखिया, आसाफ के वंशज यदूत, आगे बढ़ा और उसने घोषणा की—”हे इस्राएल के लोगो! प्रभु ने केवल हमारी जय ही नहीं दी, बल्कि हमें यह आज्ञा भी दी है कि हम अपनी दो धारी तलवारें लेकर, अन्याय और अधर्म के विरुद्ध खड़े हों!” भीड़ ने उत्साहपूर्वक प्रतिउत्तर दिया। एलिय्याह ने अपनी तलवार उठाई और प्रतिज्ञा की—”जब तक मेरे शरीर में प्राण हैं, मैं प्रभु के न्याय को स्थापित करने के लिए लड़ता रहूँगा!”
रात होने को आई। मशालों की रोशनी में सिय्योन का पर्वत जगमगा उठा। लोगों ने नए सिरे से भजन गाए, और उनकी आवाज़ें आकाश तक पहुँचती प्रतीत हो रही थीं। प्रभु की उपस्थिति वहाँ स्पष्ट महसूस हो रही थी—जैसे वह स्वयं अपने लोगों के बीच विराजमान हो। भजन संहिता 149 का वचन सच हो रहा था—”यहोवा अपने लोगों से प्रसन्न होता है, वह दीनों को विजय देकर सुशोभित करता है।”
अंत में, जब सभी थककर विश्राम करने लगे, एलिय्याह ने आकाश की ओर देखा और मन ही मन प्रार्थना की—”हे प्रभु, तेरी स्तुति हमेशा मेरे होंठों पर रहे। चाहे शांति हो या युद्ध, मैं तेरे गीत कभी नहीं भूलूँगा।” और ऐसा लगा जैसे स्वर्ग से एक मधुर स्वर उत्तर दे रहा हो—”मेरे विश्वासयोग्य सेवक, तू मेरे साथ सदैव आनंदित रहेगा।”
इस प्रकार, भजन संहिता 149 का वचन पूरा हुआ—”यहोवा के सभी भक्त उसकी प्रशंसा करें, और उसकी महिमा गाते हुए सदा आनन्दित रहें!”