पवित्र बाइबल

ज़कर्याह का दर्शन: दीपक और जैतून के वृक्ष

**ज़कर्याह 4: दीपक और जैतून के वृक्षों की दृष्टि**

रात का समय था। नबी ज़कर्याह अपने कमरे में विश्राम कर रहे थे, किंतु उनका मन परमेश्वर की बातों में डूबा हुआ था। वे यरूशलेम के पुनर्निर्माण और परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के बारे में सोच रहे थे। तभी अचानक उन्हें एक अद्भुत दर्शन दिखाई दिया।

उन्होंने देखा कि एक सोने का दीपक है, जिसका ऊपरी भाग एक कटोरे के समान है। इस कटोरे में तेल भरा हुआ था, और उससे सात दीपकियाँ निकल रही थीं, जिनमें से प्रत्येक के ऊपर सात-सात बत्तियाँ जल रही थीं। दीपक के दाएँ और बाएँ दो जैतून के वृक्ष खड़े थे, जिनकी शाखाएँ सीधे उस कटोरे तक फैली हुई थीं और उसमें तेल डाल रही थीं। यह दृश्य अत्यंत चमकदार और आश्चर्यजनक था।

ज़कर्याह ने परमेश्वर के दूत से पूछा, **”हे प्रभु, ये क्या हैं?”**

दूत ने उत्तर दिया, **”क्या तू नहीं जानता कि ये क्या हैं?”**

ज़कर्याह ने विनम्रता से कहा, **”नहीं, हे मेरे प्रभु।”**

तब दूत ने समझाया, **”यह यहोवा का उस जरूब्बाबेल से कहा हुआ वचन है: ‘न तो सेना के बल से, न शक्ति से, परन्तु मेरे आत्मा के द्वारा ही यह काम पूरा होगा।’ हे महान पर्वत, तू जरूब्बाबेल के सामने क्या है? तू एक मैदान हो जाएगा! वह मुख्य पत्थर को निकाल लाएगा और लोग जयजयकार करते हुए पुकारेंगे, ‘इस पर अनुग्रह, अनुग्रह हो!'”**

फिर दूत ने आगे कहा, **”जरूब्बाबेल के हाथों ने इस मन्दिर की नींव रखी है, और उसके हाथ ही इसे पूरा करेंगे। तब तू जान लेगा कि सेनाओं का यहोवा ही मुझे तुम्हारे पास भेजता है। क्योंकि जो छोटी-सी बातों का तिरस्कार करते हैं, वे आनन्दित होंगे जब वे जरूब्बाबेल के हाथ में नापने की छड़ देखेंगे। ये सात दीपक यहोवा की आँखें हैं, जो सारी पृथ्वी पर विचरण करती हैं।”**

ज़कर्याह ने फिर पूछा, **”तो फिर ये दो जैतून के वृक्ष, जो दीपक के दाएँ और बाएँ खड़े हैं, क्या हैं?”**

दूत ने उत्तर दिया, **”ये दो अभिषिक्त व्यक्ति हैं, जो सारी पृथ्वी के प्रभु के सामने खड़े रहते हैं।”**

इस दर्शन का अर्थ स्पष्ट था। परमेश्वर यह दिखा रहा था कि यरूशलेम के मन्दिर का पुनर्निर्माण मनुष्य के बल या योजना से नहीं, बल्कि उसकी आत्मा की सामर्थ्य से होगा। जरूब्बाबेल, जो यहूदा के गवर्नर थे, और यहोशू, जो महायाजक थे, ये दोनों परमेश्वर के चुने हुए सेवक थे, जो उसकी इच्छा को पूरा करने के लिए नियुक्त किए गए थे। दीपक में तेल देने वाले जैतून के वृक्ष उनकी अगुवाई और परमेश्वर की आत्मा के अंतहीन स्रोत को दर्शाते थे।

ज़कर्याह ने इस सत्य को गहराई से समझा। परमेश्वर का आत्मा ही सच्चा स्रोत था, और उसकी सामर्थ्य के बिना कोई भी कार्य सफल नहीं हो सकता था। चाहे बाधाएँ कितनी भी बड़ी क्यों न हों, परमेश्वर अपने लोगों के साथ था और उन्हें विजय दिलाएगा।

इस दर्शन के बाद, ज़कर्याह के हृदय में नई आशा जाग उठी। उन्होंने लोगों को यह सन्देश दिया कि परमेश्वर उनके साथ है और वह अपने वचन को पूरा करेगा। मन्दिर का निर्माण पूरा होगा, और इस्राएल फिर से परमेश्वर की महिमा का केन्द्र बनेगा।

**सीख:**
ज़कर्याह के इस दर्शन से हमें यह शिक्षा मिलती है कि परमेश्वर के कार्य मनुष्य की शक्ति से नहीं, बल्कि उसकी आत्मा की सामर्थ्य से पूरे होते हैं। हमें अपनी नज़रें उस पर टिकाए रखनी चाहिए, क्योंकि वही हमारी सफलता का स्रोत है। जैसे जैतून के वृक्षों से तेल बहता रहता था, वैसे ही परमेश्वर की आत्मा हमें निरंतर सामर्थ्य देती है। हमें केवल विश्वास और आज्ञाकारिता के साथ आगे बढ़ना है।

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