**यूहन्ना 14: प्रभु यीशु का सांत्वना और आश्वासन**
उस रात, जब प्रभु यीशु अपने शिष्यों के साथ अंतिम भोजन कर रहे थे, उनके हृदय में गहरी चिंता और प्रेम भरा हुआ था। वे जानते थे कि उनका समय निकट आ गया है। शिष्य भी उनकी बातों से व्याकुल थे, क्योंकि यीशु ने उन्हें बताया था कि वह उन्हें छोड़कर जा रहे हैं। थोमा, फिलिप्पुस और अन्य शिष्यों के मन में भय और उलझन थी। तब यीशु ने उन्हें सांत्वना देते हुए मधुर वचन कहे।
**”तुम्हारा मन व्याकुल न हो,”** यीशु ने कोमलता से कहा, उनकी आँखों में असीम प्रेम झलक रहा था। **”परमेश्वर पर विश्वास रखो, और मुझ पर भी विश्वास रखो। मेरे पिता के घर में बहुत से निवास स्थान हैं। यदि ऐसा न होता, तो मैं तुमसे कह देता। मैं तुम्हारे लिए जगह तैयार करने जा रहा हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिए जगह तैयार करूँ, तो तुम्हें फिर लेने आऊँगा, कि जहाँ मैं रहूँ, वहाँ तुम भी रहो।”**
शिष्यों के हृदय में एक नई आशा जाग उठी। यीशु के वचनों में एक अद्भुत वादा छिपा था—वह उन्हें कभी नहीं छोड़ेंगे, बल्कि उनके लिए स्वर्ग में स्थान तैयार कर रहे थे। थोमा, जो सदा प्रश्न करने के लिए जाना जाता था, बोला, **”प्रभु, हम नहीं जानते कि आप कहाँ जा रहे हैं, तो हम मार्ग कैसे जान सकते हैं?”**
यीशु ने उसकी ओर प्रेमभरी दृष्टि से देखा और उत्तर दिया, **”मार्ग, सत्य और जीवन मैं ही हूँ। कोई भी पिता के पास मेरे द्वारा ही आ सकता है। यदि तुमने मुझे जान लिया होता, तो मेरे पिता को भी जान लिया होता। अब से तुम उन्हें जानते हो और उन्हें देख भी चुके हो।”**
फिलिप्पुस ने यीशु से कहा, **”प्रभु, हमें पिता को दिखा दे, यही हमारे लिए बहुत है।”**
यीशु ने उसे कोमलता से समझाया, **”फिलिप्पुस, इतने दिनों से मैं तुम्हारे साथ हूँ, क्या तू अब तक मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है, उसने पिता को देखा है। तू क्यों कहता है कि हमें पिता को दिखा? क्या तू विश्वास नहीं करता कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है?”**
यीशु ने आगे समझाया कि वह और पिता एक हैं। उनके वचन और कार्य पिता की इच्छा को प्रकट करते हैं। **”मुझ पर विश्वास करो कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है। नहीं तो, मेरे कामों के कारण ही मेरा विश्वास करो।”**
फिर उन्होंने एक अद्भुत वादा किया: **”मैं तुमसे सच कहता हूँ, जो कोई मुझ पर विश्वास करता है, वह वे काम जो मैं करता हूँ, वह भी करेगा; और इनसे भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ।”**
शिष्य आश्चर्यचकित थे। यीशु ने उन्हें बताया कि प्रार्थना में उनके नाम से माँगने पर पिता उन्हें देगा। **”यदि तुम मुझसे मेरे नाम पर कुछ माँगोगे, तो मैं उसे पूरा करूँगा।”**
फिर उन्होंने एक और महत्वपूर्ण बात कही: **”यदि तुम मुझसे प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे। और मैं पिता से बिनती करूँगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, जो सदैव तुम्हारे साथ रहेगा—सत्य का आत्मा, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह उसे न तो देखता है और न जानता है। परन्तु तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है और तुम में होगा।”**
यीशु ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह उन्हें अनाथ नहीं छोड़ेंगे। **”मैं तुम्हें अनाथ नहीं छोड़ूँगा, मैं तुम्हारे पास वापस आऊँगा। थोड़े ही दिनों के बाद संसार मुझे फिर नहीं देखेगा, परन्तु तुम मुझे देखोगे, क्योंकि मैं जीवित हूँ और तुम भी जीवित रहोगे।”**
अंत में, उन्होंने शांति का वरदान दिया: **”मैं तुम्हें शांति देता हूँ, अपनी शांति तुम्हें देता हूँ। जैसे संसार देता है, वैसे मैं तुम्हें नहीं देता। तुम्हारा मन न घबराए और न डरे।”**
यीशु के ये वचन शिष्यों के हृदय में गहराई तक उतर गए। उन्होंने समझ लिया कि यीशु हमेशा उनके साथ हैं, चाहे वे देखें या न देखें। उनका प्रेम, उनकी आत्मा और उनकी शांति उनके साथ रहेगी। और इस प्रकार, प्रभु यीशु ने अपने प्रिय शिष्यों को अंधकार के समय में भी आशा और सांत्वना से भर दिया।