प्यासे हृदयों का निमंत्रण: यशायाह 55 की प्रेरणादायक कहानी (Note: The title is within the 100-character limit, in Hindi, and free of symbols/asterisks/quotes as requested.)
**एक निमंत्रण की कहानी: यशायाह 55**
प्राचीन काल में, जब इस्राएल के लोग बंधुआई में थे और उनका हृदय विश्वास से खोखला हो चुका था, तब परमेश्वर ने अपने भविष्यद्वक्ता यशायाह के मुख से एक अद्भुत निमंत्रण दिया। यह निमंत्रण केवल उस समय के लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि आने वाली हर पीढ़ी के लिए था—एक ऐसा निमंत्रण जो प्यासे हृदयों को शांति और खोए हुए जीवनों को नया अर्थ देता था।
### **प्यासे हो, तो पानी के पास आओ**
गर्मी की तपती दोपहर थी। मरुभूमि की रेत चमक रही थी, और हवा में धूल के बवंडर उड़ रहे थे। ऐसे में एक प्यासा यात्री लंबे समय से पानी की तलाश में भटक रहा था। उसके होंठ सूख चुके थे, गला रुका हुआ था, और आँखों में थकान छाई हुई थी। तभी दूर से एक मधुर आवाज़ सुनाई दी:
**”हे सब प्यासों, पानी के पास आओ! जिसके पास धन नहीं, वह भी आए। आओ, दाखरस और दूध खरीदकर खाओ—बिना मूल्य के, बिना कीमत चुकाए!”**
यह आवाज़ यशायाह की थी, जो परमेश्वर का संदेश लेकर खड़ा था। उसने लोगों से कहा, **”तुम क्यों अपनी जीविका के लिए उन चीज़ों पर खर्च करते हो जो तृप्त नहीं करतीं? क्यों उस श्रम में लगे हो जो सच्ची भूख नहीं मिटाता? मेरी बात सुनो, और तुम्हारी आत्मा उत्तम भोजन पाएगी!”**
### **अनन्त वाचा का वादा**
यशायाह ने लोगों को याद दिलाया कि परमेश्वर ने दाऊद के साथ एक वाचा बाँधी थी—एक ऐसा वादा जो अनन्तकाल तक चलने वाला था। **”देखो,”** वह बोला, **”मैंने दाऊद को एक विश्वसनीय गवाह बनाया, और अब मैं तुम्हें भी उसी अनुग्रह का निमंत्रण देता हूँ। जिस तरह दाऊद पर मेरी करुणा बनी रही, वैसे ही मैं तुम पर भी दया करूँगा।”**
लोगों ने पूछा, **”लेकिन हम पापी हैं, हमारे कर्म अशुद्ध हैं। हम परमेश्वर के पास कैसे जा सकते हैं?”**
यशायाह ने उत्तर दिया, **”अपने मन को परमेश्वर के पास लौटाओ, क्योंकि वह तुम्हें क्षमा करने को तैयार है। उसका विचार तुम्हारे विचारों से, और उसके मार्ग तुम्हारे मार्गों से ऊँचे हैं। जैसे आकाश पृथ्वी से ऊँचा है, वैसे ही उसकी दया तुम्हारे पापों से बड़ी है!”**
### **वर्षा और बीज का दृष्टांत**
यशायाह ने एक दृष्टांत सुनाया: **”जब वर्षा होती है, तो वह बिना व्यर्थ हुए धरती को सिंचती है। वह बीज को अंकुरित करती है, किसान को रोटी देती है। ठीक वैसे ही, परमेश्वर का वचन भी व्यर्थ नहीं लौटता। जो बोया जाता है, वह अवश्य फल देता है!”**
लोगों के हृदय में आशा जाग उठी। यशायाह ने आगे कहा, **”तुम्हारे पैर आनन्द के साथ उछलेंगे, और पहाड़-टीलों पर शांति छा जाएगी। जंगली पेड़ों के बीच में सरू उग आएँगे, और कँटीली झाड़ियों के स्थान पर मिर्ते का पेड़ लग जाएगा। यह परमेश्वर की महिमा का प्रमाण होगा, जो सदा बना रहेगा!”**
### **निमंत्रण का अंतिम आह्वान**
अंत में, यशायाह ने हाथ उठाकर सभी को आशीष दी: **”इसलिए हे प्रिय लोगो, परमेश्वर के पास आओ। उसकी करुणा अमूल्य है, उसका प्रेम अटल। वह तुम्हें न केवल क्षमा करेगा, बल्कि तुम्हारे जीवन को नया अर्थ देगा। उसकी खोज करो, जबकि वह निकट है। उसे पुकारो, जबकि वह सुनने को तैयार है!”**
और इस प्रकार, परमेश्वर का यह प्यार भरा निमंत्रण सदियों तक गूँजता रहा—हर उस व्यक्ति के लिए जो प्यासा है, हर उस हृदय के लिए जो शांति चाहता है। **”क्योंकि परमेश्वर कहता है—मेरे मार्ग तुम्हारे मार्गों से, और मेरे विचार तुम्हारे विचारों से ऊँचे हैं!”**
**~ यशायाह 55 पर आधारित ~**