पवित्र बाइबल

विजयी जीवन का परमेश्वर का वादा

**रोमियों 8 पर आधारित बाइबल कहानी**

**शीर्षक: “विजयी जीवन का वादा”**

एक गहरी रात में, यरूशलेम के बाहर एक छोटे से गाँव में, एक बूढ़ा व्यक्ति अपनी झोपड़ी के बाहर बैठा था। उसका नाम एलीशा था। उसके चेहरे पर चिंता की रेखाएँ थीं, और उसकी आँखों में डर साफ झलक रहा था। वह अपने जीवन की कठिनाइयों के बारे में सोच रहा था—बीमारी, गरीबी, और अकेलापन। उसके मन में सवाल उठ रहे थे: “क्या परमेश्वर वाकई मेरी देखभाल करता है? क्या मेरे दुखों का कोई अंत होगा?”

तभी उसके पास एक युवक आया, जिसका नाम तीमुथियुस था। वह पौलुस प्रेरित का शिष्य था और लोगों को सुसमाचार सुनाने निकला था। एलीशा की उदासी देखकर तीमुथियुस ने पूछा, “पिताजी, आप इतने दुखी क्यों हैं?”

एलीशा ने आह भरते हुए कहा, “बेटा, मेरा जीवन अभिशाप लगता है। मैं पाप से जूझता हूँ, मेरे शरीर में दर्द है, और मुझे लगता है कि परमेश्वर मुझसे दूर हो गया है।”

तीमुथियुस ने मुस्कुराते हुए कहा, “पिताजी, आप अकेले नहीं हैं। मैं आपको पौलुस प्रेरित का एक पत्र सुनाता हूँ, जो मसीह यीशु में विश्वास करने वालों के लिए लिखा गया है।”

और फिर उसने रोमियों 8 का वचन सुनाना शुरू किया:

**”अब इसलिए जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं; क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं, वरन् आत्मा के अनुसार चलते हैं।”** (रोमियों 8:1)

एलीशा की आँखें चमक उठीं। “क्या यह सच है? मेरे पापों के लिए मुझे दण्ड नहीं मिलेगा?”

“हाँ!” तीमुथियुस ने उत्साह से कहा। “यीशु ने क्रूस पर आपके सारे पापों का दण्ड सह लिया है। अब आप स्वतंत्र हैं!”

फिर उसने आगे पढ़ा: **”क्योंकि परमेश्वर ने अपने पुत्र को पापमय शरीर की समानता में भेजकर, पाप के कारण पाप को दण्ड दिया।”** (रोमियों 8:3)

एलीशा ने अपने हृदय में एक नई आशा महसूस की। उसने पूछा, “लेकिन मैं अभी भी कमज़ोर हूँ। मैं पाप से कैसे लड़ूँ?”

तीमुथियुस ने उत्तर दिया, **”परमेश्वर का आत्मा तुम्हारे अंदर वास करता है। वह तुम्हें सामर्थ्य देता है।”** (रोमियों 8:9-11)

एक ठंडी हवा का झोंका गुज़रा, और एलीशा ने महसूस किया कि उसका भय दूर हो रहा है। तीमुथियुस ने जारी रखा: **”यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है? वह जिसने अपने पुत्र को नहीं बख्शा, वह हमें भी सब कुछ क्यों नहीं देगा?”** (रोमियों 8:31-32)

एलीशा की आँखों से आँसू बह निकले। उसने कहा, “तो फिर मुझे किसी बात की चिंता करने की ज़रूरत नहीं?”

“नहीं!” तीमुथियुस ने दृढ़ता से कहा। **”न तो मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएँ, न वर्तमान, न भविष्य, न कोई सृष्टि हमें परमेश्वर के प्रेम से अलग कर सकती है, जो मसीह यीशु में है।”** (रोमियों 8:38-39)

उस रात, एलीशा ने पहली बार सच्ची शांति का अनुभव किया। वह जान गया कि चाहे उसका शरीर दुखी हो, पर उसकी आत्मा परमेश्वर के साथ सुरक्षित है। उसने अपनी आँखें आकाश की ओर उठाई और धन्यवाद दिया।

**अंत**

यह कहानी हमें सिखाती है कि मसीह में हमारा जीवन विजयी है। चाहे कितनी भी परीक्षाएँ आएँ, परमेश्वर का प्रेम हमें सहारा देता है। उसकी आत्मा हमारी अगुवाई करती है, और अंत में, हम उसकी महिमा में सहभागी होंगे।

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