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ईश्वर की महिमा और न्याय: यशायाह 66 की प्रेरणादायक कहानी

**ईश्वर की महिमा और न्याय**

यशायाह 66 में प्रभु की महिमा और उसके न्याय का वर्णन है। यह अध्याय ईश्वर की सर्वोच्चता, उसकी प्रतिज्ञाओं और उन लोगों के लिए चेतावनी को दर्शाता है जो उसकी आज्ञाओं को ठुकराते हैं। यह कहानी यरूशलेम के पुनर्निर्माण और ईश्वर के राज्य की स्थापना के बारे में है, जहाँ वह सच्चे हृदय से उसकी आराधना करने वालों को आशीष देगा और दुष्टों का न्याय करेगा।

### **भगवान का मंदिर और मनुष्य का हृदय**

यरूशलेम के खंडहरों के बीच, एक बूढ़ा याजक, एलीआजर, प्रार्थना कर रहा था। उसके आँसू उसकी दाढ़ी पर बह रहे थे क्योंकि वह प्रभु से पूछ रहा था, *”हे स्वामी, तेरा मंदिर कब बनेगा? क्या हम फिर से तेरी महिमा को देख पाएँगे?”*

तभी आकाश से एक स्वर गूँजा, *”आकाश मेरा सिंहासन है, और पृथ्वी मेरे पाँव की चौकी। तुम मेरे लिए कैसा घर बनाओगे? मैं किस स्थान में विश्राम करूँगा? क्या यह सब मेरे हाथ ने नहीं बनाया?”*

एलीआजर काँप उठा। प्रभु की वाणी ने उसे याद दिलाया कि ईश्वर मंदिरों में नहीं, बल्कि दीन और कुचले हुए लोगों के हृदय में निवास करता है। वह उनकी सुनता है जो उसके वचन पर काँपते हैं और उसकी इच्छा पूरी करते हैं।

### **झूठी आराधना और दंड**

यरूशलेम के कुछ लोग बाहरी रीति-रिवाजों में लगे थे। वे बलिदान चढ़ाते, पर उनके हृदय पाप से भरे थे। एक धनी व्यापारी, मल्कीयाह, ने बड़े जोर से कहा, *”मैंने प्रभु के लिए एक सुन्दर बलिदान तैयार किया है! वह अवश्य मेरी प्रार्थना सुनेगा!”*

किन्तु प्रभु ने उसके विषय में कहा, *”जो मुझे बलिदान देकर भी दुष्टता करते हैं, वे घृणित हैं। जो कुत्ते का वध करते हैं, सूअर का रक्त चढ़ाते हैं—क्या यह मेरी आराधना है? नहीं! वे अपनी ही इच्छाओं का पालन कर रहे हैं।”*

थोड़े ही दिनों बाद, मल्कीयाह का व्यापार नष्ट हो गया। उसकी सम्पत्ति आग में जल गई, और उसके मित्रों ने उसका साथ छोड़ दिया। प्रभु का न्याय उस पर आ पड़ा, क्योंकि उसने सच्चे हृदय से पश्चाताप नहीं किया था।

### **सिय्योन की महिमा और नया यरूशलेम**

किन्तु जो लोग प्रभु की बाट जोहते रहे, उनके लिए आशा की एक नई सुबह आई। एक दिन, यशायाह नबी ने घोषणा की, *”सुनो! सिय्योन से शिशु का रुदन सुनाई दे रहा है। क्या कोई देश एक ही दिन में जन्म ले सकता है? क्या कोई जाति एकाएक उत्पन्न हो सकती है? परन्तु जब सिय्योन पीड़ित हुई, तो उसने पुत्रों को जन्म दिया!”*

यह भविष्यवाणी सच हुई। बंधुआई से लौटे हुए लोगों ने यरूशलेम को फिर से बसाया। प्रभु ने उन पर दया की और उन्हें शत्रुओं से बचाया। उसने कहा, *”मैं यरूशलेम को शान्ति की नदी की तरह शांति दूँगा, और जाति-जाति की धन-सम्पदा उसकी ओर बह आएगी।”*

### **अंतिम न्याय और नया आकाश-पृथ्वी**

फिर प्रभु ने अपनी महिमा प्रकट की। आकाश में आग की लपटें दिखाई दीं, और उसके रथ के पहिये तूफान की तरह गर्जने लगे। वह सभी राष्ट्रों का न्याय करने आया। जिन्होंने उसकी अवहेलना की थी, वे उसकी महिमा को सह नहीं पाए। *”वे जाएँगे और उनकी लोथें देखेंगे, जहाँ उनका कीड़ा नहीं मरेगा और आग नहीं बुझेगी,”* प्रभु ने कहा।

किन्तु जो विश्वासी थे, वे नए यरूशलेम में प्रवेश करेंगे। *”मैं नया आकाश और नई पृथ्वी रचूँगा,”* प्रभु ने वादा किया। *”मेरे लोगों के लिए आनन्द होगा, और कोई उन्हें दुःख नहीं देगा।”*

एलीआजर ने आँखें उठाकर आकाश की ओर देखा। उसने प्रभु की महिमा का दर्शन किया और समझ गया कि सच्ची आराधना हृदय की विनम्रता से होती है। और इस प्रकार, प्रभु की प्रतिज्ञा सदैव सच्ची रही—वह अपने लोगों को कभी नहीं छोड़ेगा।

**॥ इति ॥**

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