पवित्र बाइबल

पत्थरों की साक्षी और परमेश्वर की आज्ञाएँ

# **पत्थरों की साक्षी: व्यवस्थाविवरण 27**

## **भूमिका**

मूसा के जीवन के अंतिम दिन थे। इस्राएल के लोग मोआब के मैदान में खड़े थे, यरदन नदी के पूर्वी किनारे पर, वादी की हवा में उनके वस्त्र लहरा रहे थे। चारों ओर हरियाली और दूर-दूर तक फैले पहाड़ों की छाया में परमेश्वर का यह चुना हुआ समुदाय एकत्र हुआ था। मूसा, जिसके चेहरे पर समय की झुर्रियाँ और परमेश्वर की महिमा की चमक दोनों थीं, ने लोगों की ओर देखा। उसकी आवाज़ में गंभीरता थी, क्योंकि वह उन्हें एक महत्वपूर्ण आज्ञा देने वाला था।

## **परमेश्वर की आज्ञा**

मूसा ने बुजुर्गों और सभी इस्राएल के लोगों को संबोधित किया:

**”जब तुम यरदन पार करके उस देश में प्रवेश करोगे जो तुम्हारे परमेश्वर यहोवा तुम्हें दे रहा है, तो तुम्हें बड़े-बड़े पत्थर लेकर उन्हें चूने से लीपना होगा। फिर तुम उन पत्थरों पर इस व्यवस्था की सभी बातें स्पष्ट रूप से लिख देना।”**

लोग चुपचाप सुन रहे थे। मूसा ने आगे कहा, **”जब तुम उस देश में पहुँचोगे, जो तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें देने का वादा किया है—एक ऐसा देश जहाँ दूध और मध की धाराएँ बहती हैं—तब तुम इन पत्थरों को एबाल पर्वत पर खड़ा करना।”**

कुछ लोगों ने आपस में फुसफुसाते हुए पूछा, **”ये पत्थर क्यों? ये लिखी हुई बातें क्या होंगी?”**

मूसा ने उनकी जिज्ञासा को समझते हुए समझाया, **”ये पत्थर साक्षी होंगे। ये इस्राएल के लोगों को सदैव याद दिलाएँगे कि परमेश्वर की व्यवस्था क्या है। ये केवल पत्थर नहीं होंगे, बल्कि इन पर अंकित शब्द हमारे और हमारे परमेश्वर के बीच एक अनुबंध होंगे।”**

## **वेदी का निर्माण**

फिर मूसा ने आगे कहा, **”तुम्हें एबाल पर्वत पर पत्थरों की एक वेदी भी बनानी होगी। यह कोई साधारण वेदी नहीं होगी। तुम उस पर कोई लोहे का औज़ार नहीं चलाओगे। तुम उसे पूरी तरह से अछूते पत्थरों से बनाओगे, और उस पर होमबलि चढ़ाओगे। तुम शांतिबलि भी चढ़ाओगे, और वहाँ आनन्दित होकर अपने परमेश्वर यहोवा के सामने भोजन करोगे।”**

लोगों ने सिर हिलाकर स्वीकृति दी। वेदी पर चढ़ाई जाने वाली बलियाँ उनके और परमेश्वर के बीच मेल-मिलाप का प्रतीक थीं। यह एक पवित्र स्थान होगा, जहाँ वे अपने पापों का प्रायश्चित करेंगे और परमेश्वर की भलाई का स्मरण करेंगे।

## **आशीष और शाप**

मूसा ने लेवीयों को आगे बुलाया और कहा, **”आज के दिन तुम सब इस्राएल के लोगों के सामने खड़े होकर ये शब्द कहोगे।”**

लेवीयों ने गंभीरता से सिर झुकाया। मूसा ने आगे निर्देश दिया, **”जब तुम यरदन पार कर लो, तो छह गोत्र—शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, यूसुफ और बिन्यामीन—गरिज़िम पर्वत पर खड़े होंगे, ताकि लोगों को आशीष दें। और छह गोत्र—रूबेन, गाद, आशेर, जबूलून, दान और नप्ताली—एबाल पर्वत पर खड़े होंगे, ताकि शाप की घोषणा करें।”**

लोगों ने इस व्यवस्था को गंभीरता से लिया। यह एक ऐसी रीति थी जो उन्हें याद दिलाती थी कि आज्ञापालन आशीष लाता है और अवज्ञा शाप।

## **शाप की घोषणा**

लेवीयों ने एबाल पर्वत की ओर मुख करके जोर से घोषणा की:

1. **”शापित है वह व्यक्ति जो कोई मूर्ति बनाकर, जो यहोवा को घृणित है, गुप्त स्थान में रखे!”**
2. **”शापित है वह जो अपने माता-पिता का अनादर करे!”**
3. **”शापित है वह जो अपने पड़ोसी की सीमा हटा दे!”**
4. **”शापित है वह जो अनाथ और विधवा का न्याय मोड़ दे!”**
5. **”शापित है वह जो अपने पड़ोसी की पत्नी के साथ व्यभिचार करे!”**
6. **”शापित है वह जो गुप्त रूप से किसी की हत्या करे!”**
7. **”शापित है वह जो रिश्वत लेकर निर्दोष का खून करे!”**

हर शाप के बाद, सारे लोग एक स्वर में कहते, **”आमेन!”** यानी, **”ऐसा ही हो!”**

## **आशीष की प्रतिज्ञा**

फिर लेवीयों ने गरिज़िम पर्वत की ओर मुड़कर कहा, **”यदि तुम इन सभी आज्ञाओं को मानोगे, तो यहोवा तुम्हें आशीष देगा। तुम्हारी फसलें उत्तम होंगी, तुम्हारे पशु आबाद होंगे, और तुम्हारे शत्रु तुम्हारे सामने पराजित होंगे।”**

लोगों के हृदय आनन्द से भर गए। वे जानते थे कि परमेश्वर उनके साथ है, और यदि वे उसकी आज्ञाओं का पालन करेंगे, तो वह उन्हें समृद्ध करेगा।

## **निष्कर्ष**

मूसा ने अंत में कहा, **”ये पत्थर और ये वचन सदैव तुम्हारे बीच रहेंगे। जब भी तुम इन्हें देखोगे, तुम्हें याद आएगा कि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा पवित्र है, और तुम्हें भी पवित्र होना है।”**

सूरज ढल रहा था, और पर्वतों की छाया लंबी होती जा रही थी। इस्राएल के लोग चुपचाप अपने-अपने तंबुओं को लौट गए, मन में यह प्रतिज्ञा कि वे परमेश्वर की व्यवस्था को कभी नहीं भूलेंगे।

**इस प्रकार, पत्थरों ने साक्षी दी, और लोगों ने परमेश्वर के सामने अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।**

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