**ईसा और धनी युवक की मुलाकात**
एक दिन, जब ईसा यरूशलेम की ओर जा रहे थे, तो उनके चारों ओर बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गई। लोग उनके उपदेश सुनने और उनके चमत्कार देखने के लिए आते थे। उस दिन भी, ईसा ने लोगों को परमेश्वर के राज्य के बारे में शिक्षा दी। वे बता रहे थे कि कैसे स्वर्ग का मार्ग प्रेम, दया और समर्पण से भरा हुआ है।
तभी, एक धनी युवक वहाँ आया। उसने बड़ी श्रद्धा से ईसा के सामने घुटने टेक दिए और पूछा, **”हे गुरु, मैं अनन्त जीवन पाने के लिए क्या करूँ?”**
ईसा ने उसकी ओर देखा और प्यार से कहा, **”तुम मुझे ‘अच्छा’ क्यों कहते हो? केवल परमेश्वर ही अच्छा है। लेकिन यदि तुम अनन्त जीवन चाहते हो, तो आज्ञाओं का पालन करो।”**
युवक ने उत्सुकता से पूछा, **”कौन-सी आज्ञाएँ?”**
ईसा ने कहा, **”हत्या मत करो, व्यभिचार मत करो, चोरी मत करो, झूठी गवाही मत दो, अपने माता-पिता का आदर करो, और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करो।”**
युवक ने गर्व से कहा, **”गुरु, मैं बचपन से ही इन सबका पालन करता आया हूँ। फिर भी, मुझे क्या कमी है?”**
ईसा ने उसे गहरी नज़रों से देखा। वे जानते थे कि युवक का हृदय धन से बँधा हुआ है। इसलिए, उन्होंने कहा, **”यदि तुम सिद्ध होना चाहते हो, तो जाओ, अपना सब कुछ बेचकर गरीबों को दे दो। तब तुम्हें स्वर्ग में धन मिलेगा। फिर आकर मेरे पीछे हो लो।”**
युवक का चेहरा उदास हो गया। वह बहुत धनी था, और उसके लिए अपनी संपत्ति छोड़ना कठिन था। वह दुखी मन से वहाँ से चला गया।
ईसा ने अपने शिष्यों की ओर देखकर कहा, **”मैं तुमसे सच कहता हूँ, धनी व्यक्ति का परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कठिन है। यह उससे भी आसान है कि एक ऊँट सूई के नाके से निकल जाए।”**
शिष्य चकित हो गए और पूछने लगे, **”तो फिर किसका उद्धार हो सकता है?”**
ईसा ने उन्हें समझाया, **”मनुष्यों के लिए यह असंभव है, परन्तु परमेश्वर के लिए सब कुछ संभव है।”**
तब पतरस ने कहा, **”देखो, हमने तो सब कुछ छोड़कर तेरे पीछे हो लिया है। हमें क्या मिलेगा?”**
ईसा ने मुस्कुराते हुए कहा, **”मैं तुमसे सच कहता हूँ, जब सब कुछ नया होगा, और मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा के सिंहासन पर बैठेगा, तो तुम भी बारह सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करोगे। और जिस किसी ने मेरे नाम के लिए घर, भाई, बहन, माता-पिता, या संतान को छोड़ा है, वह सौ गुना पाएगा और अनन्त जीवन का अधिकारी होगा। परन्तु बहुत से प्रथम अंतिम होंगे, और अंतिम प्रथम।”**
इस प्रकार, ईसा ने सिखाया कि परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिए हमें अपने मन की लगाव को छोड़कर पूर्ण समर्पण करना होगा। धन, सांसारिक सुख, या प्रतिष्ठा—कुछ भी हमें परमेश्वर से बड़ा नहीं होना चाहिए। केवल वही जो सब कुछ त्यागकर ईसा का अनुसरण करता है, वही अनन्त आशीष पाएगा।