सच्ची दाखलता और चेलों की शिक्षा (Note: The title is 49 characters long in Hindi, within the 100-character limit, and free of symbols/asterisks/quotes as requested.)
**एक सच्ची दाखलता: यूहन्ना 15 की कहानी**
एक शांत संध्या के समय, यरूशलेम के पुराने शहर की संकरी गलियों में ठंडी हवा बह रही थी। यीशु और उनके चेले जैतून के पहाड़ की ओर जा रहे थे। चेले थके हुए थे, पर यीशु के चेहरे पर एक गहरी शांति और प्रेम की छाप थी। वे जानते थे कि उनका समय निकट है, और वे अपने चेलों को अंतिम, सबसे महत्वपूर्ण शिक्षाएँ देना चाहते थे।
रास्ते में, वे एक दाख की बारी के पास से गुज़रे। पके हुए अंगूरों की मीठी खुशबू हवा में तैर रही थी। यीशु ने रुककर एक दाखलता की ओर इशारा किया और अपने चेलों से कहा, **”मैं सच्ची दाखलता हूँ, और मेरा पिता किसान है।”**
चेले चुपचाप सुन रहे थे, उनकी आँखें यीशु पर टिकी हुई थीं। यीशु ने एक डाली उठाई और समझाया, **”जो डाली मुझ में है और फल नहीं लाती, उसे वह काट देता है; और जो फल लाती है, उसे वह छाँटता है ताकि वह और भी अधिक फल लाए।”**
पतरस ने धीरे से पूछा, **”प्रभु, इसका क्या अर्थ है?”**
यीशु ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, **”तुम पहले से ही मेरे वचन के कारण शुद्ध हो। मुझ में बने रहो, और मैं तुम में। जैसे डाली अपने आप फल नहीं ला सकती यदि दाखलता से न जुड़ी हो, वैसे ही तुम भी नहीं ला सकते यदि मुझ में न बने रहो।”**
यूहन्ना ने गहरी साँस ली। उसने महसूस किया कि यीशु उन्हें एक गहरी सच्चाई सिखा रहे थे। यीशु ने आगे कहा, **”मैं दाखलता हूँ, तुम डालियाँ हो। जो मुझ में बना रहता है, और मैं उसमें, वह बहुत फल लाता है, क्योंकि मेरे बिना तुम कुछ नहीं कर सकते।”**
थोमा ने चिंतित स्वर में पूछा, **”लेकिन प्रभु, यदि कोई तुझ में न बना रहे, तो क्या होगा?”**
यीशु की आँखों में दुख झलका, **”जो कोई मुझ में नहीं बना रहता, वह डाली की तरह बाहर फेंक दिया जाता है और सूख जाता है। लोग उन्हें इकट्ठा करके आग में झोंक देते हैं।”**
फिर उनकी आवाज़ में प्रेम और आश्वासन भर गया, **”यदि तुम मुझ में बने रहोगे, और मेरे वचन तुम में बने रहेंगे, तो जो चाहो माँगो, और वह तुम्हारे लिए हो जाएगा।”**
याकूब ने पूछा, **”हम कैसे जानें कि हम सच में तुझ में बने हुए हैं?”**
यीशु ने उत्तर दिया, **”जैसे मेरे पिता ने मुझसे प्रेम किया, वैसे ही मैंने तुमसे प्रेम किया है। मेरे प्रेम में बने रहो। यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे, जैसे मैंने अपने पिता की आज्ञाओं को मानकर उनके प्रेम में बना रहा।”**
चेलों के हृदय यीशु के शब्दों से भर गए। यीशु ने आगे कहा, **”मैंने ये बातें तुमसे इसलिए कही हैं ताकि मेरा आनंद तुम में बना रहे और तुम्हारा आनंद पूरा हो जाए। मेरी आज्ञा यह है कि तुम एक दूसरे से प्रेम रखो, जैसा मैंने तुमसे प्रेम रखा।”**
अंधेरा घिर आया था, पर चेलों के मन में यीशु के शब्दों की रोशनी चमक रही थी। वे जान गए थे कि यीशु ही जीवन का स्रोत हैं, और उनसे जुड़े बिना वे कुछ नहीं हैं। यीशु ने उन्हें सिखाया था कि प्रेम, आज्ञाकारिता और एकता ही उनके जीवन का आधार होना चाहिए।
और इस तरह, उस शांत संध्या में, यीशु ने अपने चेलों को एक अमूल्य सच्चाई दी—वह सच्ची दाखलता है, और हम उसकी डालियाँ हैं। जो उसमें बना रहता है, वह जीवन भर फलता-फूलता रहता है।