इस्राएल की यात्रा: तुरहियों की आवाज़ और बादल का मार्गदर्शन (गिनती 10 पर आधारित) (कुल अक्षर: 89)
**एक यात्रा की शुरुआत: इस्राएल का प्रस्थान**
(गिनती 10 पर आधारित)
सिनाई पर्वत के नीचे विशाल शिविर में इस्राएल के लोग दिनों से डेरे डाले हुए थे। यहाँ परमेश्वर ने उन्हें अपनी व्यवस्था दी थी, उनके साथ वाचा बाँधी थी, और अब वह समय आ गया था जब उन्हें वादा किए हुए देश कनान की ओर प्रस्थान करना था। परमेश्वर ने मूसा से कहा था, *”चाँदी की दो तुरहियाँ बनवा, और उन्हें यहोवा की सभा को इकट्ठा करने और यात्रा के लिए खिसकने के लिए बजाया करना।”* (गिनती 10:2)
### **तुरहियों की आवाज़**
एक सुबह, जब सूर्य की पहली किरणें सिनाई की चोटियों को सुनहरी रोशनी से नहा रही थीं, तब मूसा ने हारून के पुत्रों, याजकों को आज्ञा दी कि वे तुरहियाँ बजाएँ। तुरहियों की तीखी और मधुर ध्वनि पूरे शिविर में गूँज उठी। यह आवाज़ सुनकर लोग जान गए कि आज वे यात्रा करेंगे।
तुरहियों की ध्वनि के अनुसार, सभी गोत्रों ने अपने-अपने डेरे समेटना शुरू कर दिया। यहूदा का गोत्र, जो सबसे आगे चलने वाला था, अपने झंडे के नीचे इकट्ठा हो गया। उसके पीछे यिस्साकार और जबूलून के गोत्रों ने अपनी व्यवस्था बनाई। लेवीयों ने पवित्र धर्मशाला के सामान को उठाया—सोने का मेज, दीवट, वेदी, और पवित्र सन्दूक। उन्हें यह सब ध्यान से ढोना था, क्योंकि यह परमेश्वर का निवास स्थान था।
### **बादल का मार्गदर्शन**
परमेश्वर का बादल, जो दिन में उनके आगे-आगे चलता था, आज फिर से उठा और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। यह बादल उनके लिए परमेश्वर की उपस्थिति का प्रतीक था। जब बादल चलता, तो वे चलते; जब वह रुकता, तो वे डेरा डाल देते। आज बादल उत्तर की ओर बढ़ रहा था—परान नामक जंगल की तरफ।
लोगों के चेहरों पर उत्साह था। कुछ ने अपने बच्चों को कंधों पर बैठा लिया, कुछ ने अपने मवेशियों को हाँकना शुरू किया। धूल उड़ती हुई उनके पीछे-पीछे चलने लगी। यह एक विशाल जनसमूह था—लाखों की संख्या में लोग, जिन्हें परमेश्वर ने मिस्र की दासता से छुड़ाया था।
### **मूसा की प्रार्थना**
जब वे चलने लगे, तो मूसा ने एक प्रार्थना की:
*”हे यहोवा, उठ! तेरे शत्रु तितर-बितर हों, और तेरे द्वेषी तेरे सामने से भाग जाएँ!”* (गिनती 10:35)
यह प्रार्थना सुनकर लोगों का विश्वास और दृढ़ हुआ। वे जानते थे कि परमेश्वर स्वयं उनके साथ है। जब भी वे चलते, पवित्र सन्दूक उनके आगे-आगे रहता, और जब वे रुकते, तो मूसा कहता, *”हे यहोवा, लौट आ, इस्राएल के हजारों घरानों के पास!”* (गिनती 10:36)
### **यात्रा का पहला पड़ाव**
पूरा दिन चलने के बाद, बादल ने परान के जंगल में एक स्थान पर रुकने का संकेत दिया। लोगों ने फिर से अपने डेरे गाड़ दिए। लेवीयों ने पवित्र धर्मशाला को स्थापित किया, और सभी गोत्रों ने अपने-अपने स्थान ले लिए। शाम को, जब सूरज डूब रहा था, तो आग का एक स्तंभ बादल के स्थान पर प्रकट हुआ—यह परमेश्वर की महिमा का प्रतीक था, जो रात में उन्हें प्रकाश देता था।
लोगों ने अपने परिवारों के साथ भोजन किया, और फिर विश्राम करने लगे। कुछ ने परमेश्वर की स्तुति में गीत गाए, कुछ ने अपने बच्चों को मिस्र से छुटकारे की कहानियाँ सुनाईं। मूसा अपने तम्बू में बैठकर परमेश्वर से बातचीत करता रहा, क्योंकि वह जानता था कि आने वाले दिनों में और भी चुनौतियाँ होंगी।
### **परमेश्वर की विश्वासयोग्यता**
इस प्रकार, इस्राएल के लोगों ने अपनी यात्रा शुरू की। तुरहियों की आवाज़, बादल का मार्गदर्शन, और परमेश्वर की स्थिर उपस्थिति ने उन्हें आश्वस्त किया कि वे अकेले नहीं हैं। वे जानते थे कि यहोवा, जिसने उन्हें लाल सागर से निकाला था, वही अब उन्हें कनान तक ले जाएगा।
और इस तरह, विश्वास और आज्ञाकारिता के साथ, इस्राएल ने अपनी यात्रा जारी रखी—एक कदम अपने वादा किए हुए देश की ओर।