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आसा की अविश्वासिता और परमेश्वर की ताड़ना

**2 इतिहास 16: आसा की अविश्वासिता और परमेश्वर की ताड़ना**

यहूदा के राजा आसा का शासनकाल लंबा और अधिकांशतः धर्मी था। उसने अपने पूर्वजों के मार्ग को छोड़कर परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन किया था और यहूदा से मूर्तिपूजा को दूर करने का प्रयास किया था। परन्तु उसके जीवन के अंतिम दिनों में, उसका विश्वास डगमगा गया।

### **बाएशा का यहूदा पर आक्रमण**

एक दिन, जब आसा यरूशलेम में अपने राजमहल में विश्राम कर रहा था, तभी उसे समाचार मिला कि इस्राएल के राजा बाएशा ने रामा नगर को मज़बूत करना शुरू कर दिया है। रामा यहूदा की सीमा के निकट था, और बाएशा का उद्देश्य स्पष्ट था—वह यहूदा के विरुद्ध एक चौकी स्थापित करना चाहता था ताकि वह आसा के राज्य में आवागमन को रोक सके और उसके लोगों को दबाव में रख सके।

यह सुनकर आसा के मन में भय समा गया। उसने सोचा, “यदि बाएशा रामा को सुदृढ़ कर लेगा, तो वह यहूदा को घेर लेगा और मेरे राज्य को नुकसान पहुँचाएगा। मुझे कुछ करना होगा।”

### **आसा की मानवीय योजना**

परमेश्वर पर भरोसा रखने के बजाय, आसा ने अपनी समस्या का समाधान मनुष्यों की सहायता से ढूँढ़ने का निश्चय किया। उसने अपने खजाने से चाँदी और सोना निकाला और दमिश्क के राजा बेन्हदद के पास भेज दिया, जो अराम का शासक था। उसने बेन्हदद से कहलवाया,

“हमारे बीच एक वाचा हो, जैसे मेरे पिता और तेरे पिता के बीच थी। देख, मैं तुझे चाँदी और सोना भेज रहा हूँ। अब जा, इस्राएल के राजा बाएशा के साथ जो वाचा है, उसे तोड़ दे, ताकि वह मुझसे लड़ने न आ सके।”

बेन्हदद ने आसा की बात मान ली। उसने अपने सेनापतियों को इस्राएल के कई नगरों—ऊयोन, दान, आबेलमैम और नप्ताली के सभी भंडार नगरों—पर आक्रमण करने भेजा। इस्राएलियों को जब यह समाचार मिला, तो बाएशा को रामा का काम छोड़कर तिर्सा लौटना पड़ा।

### **हनानी नबी का आसा को दण्ड सुनाना**

आसा को लगा कि उसकी योजना सफल हो गई है। उसने अपने सैनिकों को बुलाया और रामा के निर्माण सामग्री—पत्थर और लकड़ी—को हटाकर अपने स्वयं के नगरों गबा और मिस्पा को मज़बूत करने के लिए इस्तेमाल करने का आदेश दिया।

परन्तु परमेश्वर आसा के कार्य से प्रसन्न नहीं था। उसने अपने नबी हनानी को आसा के पास भेजा। हनानी राजा के सामने आकर बोला,

“हे राजा आसा! क्योंकि तूने अराम के राजा पर भरोसा किया और यहोवा परमेश्वर पर भरोसा नहीं किया, इसलिए अराम की सेना तेरे हाथ से निकल गई। क्या कूशियों और लूबियों की उस विशाल सेना के विरुद्ध यहोवा ने तेरी सहायता नहीं की थी? क्या तूने उस समय परमेश्वर पर भरोसा किया था, और इसीलिए वह तेरे हाथ में दे दिया गया था? यहोवा की दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिए फिरती है कि वह उनकी सहायता करे जिनका मन उसकी ओर पूर्ण रूप से लगा है। परन्तु तूने इस बार मूर्खता की है। इसलिए अब से तेरे पास युद्ध ही युद्ध रहेंगे।”

### **आसा का क्रोध और अंतिम दिन**

हनानी के वचनों ने आसा को क्रोधित कर दिया। उसने नबी को कारागार में डाल दिया और कुछ प्रजा के लोगों को भी सताया। उसका हृदय अब घमंड और कठोरता से भर गया था।

समय बीतता गया, और आसा के पैरों में एक गंभीर रोग हो गया। परन्तु इस बार भी, उसने परमेश्वर की ओर नहीं देखा, बल्कि वैद्यों पर ही भरोसा किया। अंततः, उसकी मृत्यु हो गई।

### **सबक**

आसा का जीवन हमें सिखाता है कि परमेश्वर पर स्थिर विश्वास रखना कितना आवश्यक है। जब हम अपनी समस्याओं का समाधान मनुष्यों की सहायता से ढूँढ़ने लगते हैं और परमेश्वर को भूल जाते हैं, तो हम उसकी आशीषों से वंचित हो जाते हैं। आसा ने अपने जीवन के अंत में विश्वास की कमी दिखाई, और इसका परिणाम उसे भुगतना पड़ा।

परमेश्वर चाहता है कि हम हर परिस्थिति में उस पर भरोसा रखें, क्योंकि वही हमारा सच्चा सहारा और रक्षक है।

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