यहोवा की स्तुति और विश्वासयोग्यता की कहानी (Note: The title is within the 100-character limit and free of symbols/asterisks/quotes as requested.)
**भजन संहिता 33 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**
**शीर्षक: “यहोवा की स्तुति और उसकी विश्वासयोग्यता”**
प्राचीन समय में, यरूशलेम के पास एक छोटे से गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था, जिसका नाम एलीआजर था। वह परमेश्वर का बहुत बड़ा भक्त था और प्रतिदिन भजन गाकर उसकी स्तुति किया करता था। एक दिन, जब सूर्योदय हो रहा था और आकाश में सुनहरी किरणें फैल रही थीं, एलीआजर ने अपने छोटे से घर के बाहर बैठकर भजन संहिता 33 को पढ़ना शुरू किया:
**”धर्मियों, यहोवा के कारण जयजयकार करो; सीधे लोगों के लिये स्तुति करना उचित है।”**
उसकी आवाज़ इतनी मधुर थी कि पास से गुज़रने वाले गाँववाले रुक जाते और उसकी प्रार्थना सुनते। वह उन्हें समझाता कि यहोवा की स्तुति करना कितना महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसका वचन सच्चा है और उसके सभी काम विश्वासयोग्य।
एक दिन, गाँव में भयंकर अकाल पड़ा। बारिश न होने के कारण खेत सूख गए, और लोगों के पास खाने को कुछ नहीं बचा। लोग डर गए और चिंतित होने लगे। तब एलीआजर ने सभा बुलाई और उनसे कहा:
**”यहोवा ने अपने वचन से आकाशों की सृष्टि की, और उसकी श्वास से सारी सेना बन गई। वह समुद्र के जल को ढेर की नाईं एकत्र करता है, वह गहिरे जल को भण्डारों में रखता है।”**
उसने समझाया कि जिस परमेश्वर ने समुद्र और आकाश बनाया है, वह उनकी ज़रूरतों को भी जानता है। उसने सबको यहोवा पर भरोसा रखने और उसकी स्तुति करने के लिए प्रोत्साहित किया। गाँववालों ने उसकी बात मानी और सामूहिक प्रार्थना की।
कुछ ही दिनों बाद, आकाश में बादल छा गए और मूसलाधार बारिश हुई। नदियाँ भर गईं, खेत हरे-भरे हो गए, और लोगों के चेहरों पर खुशी लौट आई। सभी ने मिलकर यहोवा का धन्यवाद किया और एलीआजर ने भजन 33 का अंतिम वचन पढ़कर सबको सुनाया:
**”हमारा मन यहोवा की बाट जोहता रहे, वही हमारा सहायक और हमारी ढाल है।”**
गाँववालों ने अनुभव किया कि जो लोग यहोवा पर भरोसा रखते हैं, वह उन्हें कभी नहीं छोड़ता। उस दिन के बाद से, वे सभी नियमित रूप से उसकी स्तुति करने लगे, क्योंकि उन्होंने देख लिया था कि **यहोवा की करुणा और विश्वासयोग्यता सदैव बनी रहती है।**
**समाप्त।**