**विलापगीत 2 पर आधारित बाइबल कहानी**
**यरूशलेम का पतन और परमेश्वर का न्याय**
एक समय की बात है, जब यरूशलेम नगर अपने चरम वैभव पर था। सोने से मढ़े हुए मंदिर की छटा देखते ही बनती थी, और राजा का महल शक्ति और समृद्धि का प्रतीक था। परन्तु यहूदा के लोगों ने परमेश्वर की आज्ञाओं को ताक पर रख दिया था। उन्होंने मूर्तियों की पूजा की, अन्याय किया, और दीन-दुखियों की पुकार को अनसुना कर दिया। भविष्यवक्ताओं की चेतावनियाँ उनके कानों में पड़ती रहीं, परन्तु उन्होंने उन्हें ठुकरा दिया।
तब प्रभु का कोप भड़क उठा। उसने अपने हाथ उठाए और यरूशलेम पर न्याय की घड़ी आ गई। बाबुल की सेनाएँ, जिन्हें परमेश्वर ने अपने न्याय के लिए उपकरण बनाया, नगर को घेर लीं। उन्होंने दीवारों को तोड़ डाला, मंदिर को जला दिया, और राजमहल को धूल में मिला दिया। वह दिन अंधकारमय था—आकाश काले बादलों से घिर गया, मानो स्वयं सूर्य भी यरूशलेम के दुःख को देखने से कतरा रहा हो।
**प्रभु की कृपा छिन जाती है**
जिस स्थान पर एक दिन परमेश्वर की महिमा विराजमान थी, वहाँ अब केवल धुआँ और राख बचा था। प्रभु ने अपने पवित्र स्थान को त्याग दिया था, मानो उसने अपनी दया की दृष्टि हटा ली हो। याजक लज्जित थे, क्योंकि उनके हाथों में अब कोई बलिदान नहीं था। भविष्यवक्ता चुप थे, क्योंकि प्रभु ने उन्हें कोई दर्शन नहीं दिया। राजा बंदी बना लिया गया, और उसका मुकुट उसके सिर से गिर गया।
नगर की सड़कों पर विलाप की आवाज़ गूँज रही थी। माताएँ अपने बच्चों के लिए रो रही थीं, क्योंकि भूख इतनी भयंकर थी कि उन्होंने अपनी ही संतानों को भोजन के लिए तरसते देखा। युवा और वृद्ध सभी मलिन वस्त्र पहने, धूल में बैठे हुए थे। उनके मुँह से केवल एक ही शब्द निकलता था—”क्यों? हे प्रभु, तूने हमें इतना क्यों दण्ड दिया?”
**परमेश्वर का उद्देश्य**
परन्तु प्रभु का न्याय निष्क्रिय क्रोध नहीं था। वह एक पिता की तरह था, जिसने अपने बच्चों को अनुशासन दिया था, ताकि वे फिर से उसकी ओर लौट आएँ। भविष्यवक्ता यिर्मयाह, जो इस सबके साक्षी थे, ने लोगों से कहा—
“हे यरूशलेम, तेरा पतन इसलिए हुआ क्योंकि तूने प्रभु को भुला दिया। परन्तु यह अंत नहीं है। प्रभु की करुणा अमर है। यदि तू अपने हृदय को तोड़े और उसके सामने नम्र हो, तो वह तुझे फिर से उठाएगा।”
और तब, उसी विध्वंस के बीच, एक आशा की किरण दिखाई दी। प्रभु ने अपने लोगों से वादा किया कि वह उन्हें पूरी तरह नहीं त्यागेगा। एक दिन, वह फिर से उनकी सुनेंगा और उन्हें बहाल करेगा।
**सबक**
यरूशलेम का दुःख हमें यह सिखाता है कि परमेश्वर पवित्र है और पाप को सहन नहीं करेगा। परन्तु वह दयालु भी है, और जो कोई उसके पास पश्चाताप के साथ आता है, उसे वह क्षमा कर देता है। हमें चाहिए कि हम उसकी आज्ञाओं पर चलें और उसकी करुणा के लिए धन्यवाद दें।
इस प्रकार, विलापगीत 2 की कहानी हमें न्याय और आशा दोनों का सन्देश देती है—यह बताती है कि प्रभु का प्रेम उसके न्याय से बड़ा है, यदि हम उसकी ओर मुड़ें।