यीशु का चमत्कार: पक्षाघातग्रस्त का उद्धार (Note: The title is 49 characters long in Hindi, within the 100-character limit, and free of symbols/quotations.)
**एक विस्तृत कहानी: यीशु और पक्षाघातग्रस्त व्यक्ति (मरकुस 2)**
एक दिन, कफरनहूम के छोटे से गाँव में सुबह की धूप धीरे-धीरे फैल रही थी। लोग अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त थे, कुछ मछुआरे झील पर जाल डालने जा रहे थे, तो कुछ व्यापारी बाजार की ओर चल पड़े थे। परंतु उस दिन कुछ असाधारण होने वाला था। यीशु, जिनके चमत्कारों और शिक्षाओं की चर्चा पूरे गलील में फैल चुकी थी, एक घर में विराजमान थे। वहाँ उनके चारों ओर लोगों की भीड़ जमा हो गई—कुछ उनकी बातें सुनने आए थे, तो कुछ रोगियों को लाए थे, आशा थी कि वह उन्हें चंगा कर देंगे।
घर के अंदर इतनी भीड़ थी कि दरवाजे तक खड़े होने की जगह नहीं बची थी। लोग खिड़कियों से झाँक रहे थे, यहाँ तक कि छत पर भी कुछ लोग खड़े थे। यीशु उन्हें परमेश्वर के राज्य की शिक्षा दे रहे थे, और लोग मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे। तभी अचानक छत से कुछ हलचल हुई। कुछ लोगों ने ऊपर देखा—चार व्यक्ति एक पक्षाघातग्रस्त मित्र को खाट पर लिटाए हुए थे। वे उसे यीशु के पास लाना चाहते थे, परंतु भीड़ के कारण अंदर प्रवेश नहीं कर पा रहे थे।
उन चारों ने हार नहीं मानी। उन्होंने छत की मिट्टी और फूस को हटाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उन्होंने इतनी जगह बना ली कि वे अपने मित्र की खाट को रस्सियों से बाँधकर नीचे उतार सकें। लोग हैरान होकर देख रहे थे—कुछ ने आश्चर्य से सिर हिलाया, तो कुछ ने इस साहसिक कार्य की प्रशंसा की।
जब खाट यीशु के सामने उतारी गई, तो उनकी नज़र उस पक्षाघातग्रस्त व्यक्ति पर पड़ी। उसकी आँखों में विश्वास और आशा की चमक थी। यीशु ने उसके विश्वास को देखा और मुस्कुराते हुए कहा, **”हे पुत्र, तेरे पाप क्षमा हुए।”**
यह सुनकर कुछ धर्मशास्त्री और फरीसी, जो वहाँ बैठे थे, मन ही मन सोचने लगे, **”यह व्यक्ति कौन है जो ईश्वर के समान पापों को क्षमा करने का दावा करता है? यह तो ईश-निंदा है!”**
यीशु ने उनके मन के विचारों को तुरंत जान लिया। उन्होंने उनकी ओर देखते हुए पूछा, **”तुम अपने मन में यह क्यों सोच रहे हो? क्या करना आसान है—यह कहना कि ‘तेरे पाप क्षमा हुए,’ या यह कहना कि ‘उठ, अपनी खाट उठा और चल फिर’? परंतु इसलिए कि तुम जान लो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है…”**
इतना कहकर यीशु ने पक्षाघातग्रस्त व्यक्ति की ओर मुड़कर आज्ञा दी, **”मैं तुझसे कहता हूँ, उठ, अपनी खाट उठा और अपने घर जा!”**
और तुरंत वह व्यक्ति उठ खड़ा हुआ। उसने अपनी खाट उठाई, जिस पर वह सालों से पड़ा रहता था, और सबके सामने चलने लगा। लोग अवाक् रह गए। उनकी आँखों में आश्चर्य और भय था। वे परमेश्वर की स्तुति करने लगे और कहने लगे, **”हमने आज तक ऐसा कुछ नहीं देखा!”**
इस चमत्कार ने न केवल उस रोगी को नया जीवन दिया, बल्कि उपस्थित सभी लोगों के हृदयों में यीशु के प्रति विश्वास को और गहरा कर दिया। यह घटना उस सत्य की गवाही थी कि यीशु न केवल शारीरिक रोगों को चंगा करने आए थे, बल्कि मनुष्यों के पापों को क्षमा करने और उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता देने के लिए भी आए थे।
और इस तरह, कफरनहूम के उस छोटे से घर में, यीशु ने एक बार फिर सिद्ध किया कि वही मसीह है, जिसे परमेश्वर ने संसार के उद्धार के लिए भेजा है।